सरकार चाहे जो करे, समाज को स्वदेशी अपनाना ही होगा

मनोज जोशी

कोरोना का दुष्प्रभाव अर्थव्यवस्था पर नजर आने लगा है। मजबूर मजदूर हजारों किमी का सफर तय करके अपने घर लौट रहा है। लेकिन इसके साथ ही एक तबका ऐसा भी है जो बेचारा कहीं भी नहीं जा सकता और उसकी कोई राजनीतिक आवाज भी नहीं है इसलिए उसे राहत की उम्मीद भी नहीं है। पिछले तीन महीनों से निजी क्षेत्र यानी फैक्टरी, कंस्ट्रक्शन और सर्विस सेक्टर से जुड़े संस्थानों में कार्यरत लोगों को या तो वेतन मिला नहीं है या उसमें कटौती हो गई है।

लॉकडाउन खुलने पर पता लगेगा कि इनमें से ज्यादातर बेरोजगार हो गए, क्योंकि बेचारा नियोक्ता ही इस हाल में नहीं होगा कि वह किसी अन्य को वेतन दे दे। और यह आशंका निराधार भी नहीं है। कोरोना के लॉकडाउन का नतीजा है कि अमेरिका में 3.6 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए।

बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि अमेरिका में राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ते के रूप में मोटी राशि देती हैं। महामारी के कारण बेरोजगार हो रहे लोगों को भारत में भी इसी तरह के किसी सीधे लाभ (direct benefit) की जरूरत महसूस हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और वोकल फॉर लोकल की बात करने के साथ 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी। भारी उम्मीदों के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो पैकेज घोषित किया वह बहुत हद तक स्वागतयोग्य है, लेकिन इसमें सीधे लाभ का हिस्सा बहुत कम है।

यदि सरकार के स्तर पर बात करें तो निश्चित रूप से आर्थिक नीतियों में बदलाव की जरूरत है। अनपेक्षित महामारी के कारण बेरोजगार और कंगाल हुए लोगों को सीधे राहत देने की जरूरत है। असंगठित और निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे इन लोगों को इतनी राशि तो दी ही जाना चाहिए कि वे कम से कम छह माह तक अपने घर का नियमित खर्चा चला सकें।

लेकिन जैसे ही मैं यह बात लिखता हूँ तो स्वतः मेरे मन में विचार आता है कि भारत में किसी भी सरकार के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। प्रधानमंत्री ने स्वदेशी और वोकल फॉर लोकल की बात जरुर की है लेकिन 1991 से भारत जिस आर्थिक उदारीकरण के रास्ते पर चल पङा है, जिसमें सब्सिडी खत्म करना भी एक लक्ष्य है, उससे लौटना आसान नहीं है। और वह सरकार की नीतियों में नजर भी आ रहा है।

रिटेल में एफडीआई की पहले ही अनुमति दे दी गई थी, रक्षा में भी एफडीआई बढ़ा कर 74 फीसदी कर दिया गया। सरकार की कुछ मजबूरी हो सकती है। इसीलिए मेक इन इंडिया के नाम पर बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को बुलाया जा रहा है, जो कि स्वदेशी की मूल धारणा के खिलाफ है। लेकिन…

भारत का समाज अपने स्वभाव और संस्कार से आत्मनिर्भर है। इसी मूल स्वभाव को पुनर्जीवित करना होगा। इसके लिए बहिष्कार की नीति को अपनाना होगा। भारत की सरकार हमें किसी कंपनी का प्रोडक्ट खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। हम अपने घर के पास वाली उसी दुकान से सामान लें जो इस कोरोना में हमारी मदद कर रहा है। ऐसे में वह वही सामान रखेगा जो हम खरीदेंगे।

समाज के सम्पन्न लोग अपने कुछ खर्चे घटा कर अचानक बेरोजगार हुए लोगों की आर्थिक मदद करें। कुल मिलाकर सरकार जो कर रही है वह उसकी सोच और समझ है, लेकिन यह समाज हमारा है। यह देश हमारा है।

मुझे 1991 का साल याद आ रहा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने देश की बिगङती आर्थिक स्थिति का हवाला देकर उदारीकरण की शुरुआत कर दी थी। यह वह समय था जबकि देश का सोना भी गिरवी रखना पङा था। राम मंदिर आंदोलन के बीच ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वदेशी का आग्रह शुरू किया।

22 नवम्बर 1991 को नागपुर में पांच राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने बैठक की और स्वदेशी जागरण मंच का गठन किया गया। बैठक में शामिल होने वाले संगठन थे- भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय किसान संघ, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत और सहकार भारती। नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एमजी बोकारे को मंच का पहला राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया।

उस समय स्वदेशी का जो मंत्र घोषित किया गया था वह आज भी प्रासंगिक है।

चाहत से देशी- यानी 15-20 किमी के दायरे में प्रकृति से मिलने वाली वस्तुओं का सेवन- उदाहरण- क्यों न टूथपेस्ट की बजाय नीम का दातून उपयोग किया जाए। या गांव/शहर के मोची से चप्पल बनवाई जाए।

जरूरत से स्वदेशी- यानी देश में, देश के लोगों के द्वारा, देशी संसाधन का उपयोग करते हुए बनी वस्तुओं का उपयोग- स्वदेशी उपभोक्ता वस्तुओं की सूची आज भी उपलब्ध है।

मजबूरी में विदेशी- यानी मजबूरी में विदेशी चीजों का इस्तेमाल। उदाहरण के लिए विदेश में बना यह मोबाइल और यह मजबूरी कम होती चले इसका प्रयास।

जैसे ही हम यह शुरू करेंगे स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ने की शुरुआत हो जाएगी । पूंजी बढ़ने पर स्थानीय और स्वदेशी उत्पादों की क्वालिटी में सुधार आने लगेगा। और यह लोकतंत्र है “जनता के दबाव से सरकारों को भी अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना पङेगा।” सरकार चाहे जो करे, समाज स्वदेशी अपनाए। देश की अर्थव्यवस्था यानी हम सबकी आर्थिक स्थिति में सुधार आ जाएगा।

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टीम मध्‍यमत

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