यह भाषा हमारे लोकतंत्र को शर्मिंदा करती है

समझ में ही नहीं आता कि इन हालात पर क्‍या कहें? चारों तरफ जुबानें बेलगाम होकर दौड़ रही हैं, और दौड़ क्‍या रही हैं तमाम लोकलाज और विवेक को रौंद रही हैं। जिस बात को मामूली आदमी भी कहने से पहले सौ बार सोचे वही बात हमारे प्रतिनिधि खुलेआम, सार्वजनिक मंचों से मंत्रोच्‍चार की तरह बोल रहे हैं। ऐसा कहीं लगता ही नहीं कि बोलने से पहले, बोले गए शब्‍दों को लेकर कुछ सोचा समझा जा रहा हो।

मध्‍यप्रदेश के झाबुआ में विधानसभा का उपचुनाव होने जा रहा है। 30 सितंबर को भारतीय जनता पार्टी के प्रत्‍याशी भानु भूरिया ने इसके लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। उनकी नामांकन रैली में मध्‍यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गोपाल भार्गव ने जो कहा, वह अचंभित कर देने वाला है। और न सिर्फ अचंभित करने वाला है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक के साथ साथ चुनावी कायदों की मर्यादा तोड़ने वाला भी है।

गोपाल भार्गव ने रैली को संबोधित करते हुए कहा- ‘’हमारे भानु भाई हिन्‍दुस्‍तान का प्रतिनिधित्‍व करते हैं और कांतिलाल भूरिया पाकिस्‍तान का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। वे ऐसी ताकतों का प्रतिनिधित्‍व करते हैं जो पाकिस्‍तान को प्रोत्‍साहन देती है। और इसलिए मित्रों मैं कहना चाहता हूं कि आप हाथ उठाकर बताइए कि आप हिन्‍दुस्‍तान के साथ हैं कि पाकिस्‍तान के साथ हैं। आप हाथ उठाइए कि हम हिन्‍दुस्‍तान के साथ हैं…’’

मुझे याद नहीं आता कि इससे पहले मध्‍यप्रदेश के किसी भी चुनाव में इस तरह दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्‍याशियों को सीधे सीधे हिन्‍दुतान और पाकिस्‍तान का प्रतिनिधि बता दिया गया हो। जातीय और सांप्रदायिक तत्‍व चुनाव में मौजूद रहे हैं लेकिन मध्‍यप्रदेश में आज भी चुनाव उस तरह से सांप्रदायिक जमीन पर नहीं होते जिस तरह अन्‍य राज्‍यों में होते हैं। और जब जब भी ऐसी कोशिश हुई है उसे मौटे तौर पर अस्‍वीकार ही किया गया है। विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस अध्‍यक्ष कमलनाथ की मुस्लिम वोटरों से की गई ऐसी ही एक अपील बहुत विवाद का कारण बन गई थी।

मध्‍यप्रदेश का झाबुआ जिला वैसे भी सांप्रदायिक प्रकृति का नहीं रहा है। यह मूलत: आदिवासीबहुल जिला है। यदि मुस्लिमों की संख्‍या को ही देखना हो तो राज्‍य में जिन पांच जिलों में मुस्लिम आबादी सबसे कम है उनमें झाबुआ दूसरे नंबर पर है, पहले नंबर पर डिंडोरी जिला है। झाबुआ के बाद उमरिया, मंडला और आलीराजपुर जिलों का नंबर आता है। और ये पांचों जिले आदिवासीबहुल हैं।

अब चुनाव के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिहाज से भी देखें तो भी गोपाल भार्गव का बयान गैरजरूरी नजर आता है। क्‍योंकि जिस पूरे जिले में मुस्लिम आबादी साढ़े पंद्रह हजार से कुछ अधिक हो वहां संबंधित विधानसभा क्षेत्र में तो और भी कम होगी और किसी सूरत में उसे चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने वाली नहीं कहा जा सकता। फिर ऐसे बयान की आखिर जरूरत ही क्‍या है?

लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा ने देश के माहौल को देखते हुए, आने वाले दिनों में होने जा रहे महाराष्‍ट्र और हरियाणा जैसे राज्‍यों के विधानसभा चुनाव में ही नहीं वरन उपचुनावों तक में भारत-पाकिस्‍तान तत्‍व डाल देने का मन बना लिया है। शायद उसे लग रहा है कि इस समय भारत और पाकिस्‍तान वाला मुद्दा गरम है तो क्‍यों न इसका चुनावी फायदा उठा लिया जाए।

लेकिन मध्‍यप्रदेश में और खासतौर से झाबुआ में मूल जरूरत वहां के आदिवासियों की बुनियादी समस्‍याओं को उठाने की है। उनकी गरीबी और अशिक्षा को दूर करने की है। वैसे भी भाजपा को झाबुआ के लिए डर इसलिए भी नहीं होना चाहिए क्‍योंकि कांग्रेस ने जिन कांतिलाल भूरिया को उपचुनाव में यहां से अपना उम्‍मीदवार बनाया है उन्‍हें भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव में झाबुआ संसदीय क्षेत्र से पराजित कर चुकी है। जिन गुमानसिंह डामोर ने कांतिलाल भूरिया को लोकसभा में हराया था और जिनके सांसद बन जाने के कारण यह उपचुनाव हो रहा है, वे डामोर 2018 के विधानसभा चुनाव में कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया को हरा चुके हैं।

ऐसे में उपचुनाव में भारत पाकिस्‍तान को लाना, क्‍या यूं समझा जाए कि भाजपा खुद को कमजोर समझ रही है और उसे यह उपचुनाव जीतने के लिए अब ऐसे ही किसी सहारे की जरूरत महसूस हो रही है। जिस रैली में गोपाल भार्गव ने यह बात कही उसमें राज्‍य भाजपा के अध्‍यक्ष और सांसद राकेशसिंह के अलावा पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी मौजूद थे। क्‍या ये दोनों वरिष्‍ठ नेता भी इस मामले में गोपाल भार्गव के बयान से सहमत हो पाएंगे?

हालांकि रैली में पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपना भाषण राज्‍य सरकार के कामकाज पर ही केंद्रित रखा। उन्‍होंने कहा कि राज्‍य की सरकार जनता के साथ अन्‍याय और पाप कर रही है। कांग्रेस ने दस दिनों में किसानों का कर्ज माफ करने की बात कही थी पर नौ महीने हो गए यह काम नहीं हो पाया है। राहुल गांधी तो कहते थे कि दस दिन में कर्ज माफ नहीं हुआ तो मुख्‍यमंत्री को बदल दिया जाएगा।

दूसरी ओर प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष राकेशसिंह ने कहा कि यह उपचुनाव जीतने का नहीं बल्कि सरकार बदलने का समय है। यह चुनाव प्रदेश की सरकार को बाहर का रास्‍ता दिखाएगा। 9 माह में प्रदेश और झाबुआ जिले का विकास अवरुद्ध हो चुका है। क्षेत्र की जनता ने पहले विधानसभा चुनाव में और बाद में लोकसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया है और हमें उम्‍मीद है कि उपुचनाव में भी भाजपा को जनता का आशीर्वाद मिलेगा।

ऐसा लग रहा है कि भाजपा के वरिष्‍ठ नेता तक इन दिनों अपने को काबू में नहीं रख पा रहे हैं। पिछले दिनों अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप द्वारा ‘फादर ऑफ इंडिया’ कहे जाने पर उठे विवाद के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्‍य मंत्री जितेंद्रसिंह ने कहा था- ‘‘यह पहली बार है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने किसी भारतीय प्रधानमंत्री या विश्व के किसी अन्य नेता की प्रशंसा इस तरह के शब्दों से की है। यदि किसी को इस पर गर्व नहीं है तो हो सकता है कि वह खुद को भारतीय न मानता हो।’’

कोई भारत के प्रधानमंत्री को ‘फादर ऑफ इंडिया’ का संबोधन दे यह उसकी समझ और विवेक का विषय है। लेकिन यह कहना कि जो लोग इस संबोधन को स्‍वीकार नहीं करते वे भारतीय नहीं हैं, या फिर किसी उपचुनाव में अपनी पार्टी के प्रत्‍याशी को हिन्‍दुस्‍तानी और विरोधी पार्टी के प्रत्‍याशी को पाकिस्‍तानी बताना, भारतीय लोकतंत्र को शर्मिंदा करता है।

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