29 मई को सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने 10वीं के नतीजे जारी किए। इन नतीजों के मुताबिक कुल 86.70 फीसद बच्चे पास हुए, जो पिछले साल के मुकाबले 4.25 फीसद कम हैं। छात्रों के मुकाबले छात्राएं 3.35 फीसद अधिक पास हुईं।
खास बात यह रही कि मेरिट लिस्ट में चार बच्चे पहले स्थान पर हैं। ये हैं गुड़गांव के प्रखर मित्तल, बिजनौर की रिमझिम अग्रवाल, शामली की नंदिनी गर्ग और कोच्चि की श्रीलक्ष्मी। इन सभी ने 500 में से 499 अंक हासिल किए। यानी पूर्णांक से सिर्फ एक नंबर कम।
परिणाम की एक और उल्लेखनीय बात यह रही कि इसमें 27 हजार 476 बच्चों ने 95 फीसदी से ज्यादा नंबर स्कोर किए हैं। जबकि 90 फीसदी से ज्यादा नंबर स्कोर करने वाले बच्चों की संख्या एक लाख 31 हजार 493 है।
इससे पहले 26 मई को सीबीएसई की 12 वीं की परीक्षा का परिणाम आया था और उसमें गाजियाबाद की दो बच्चियों मेघना श्रीवास्तव और अनुष्का चंद्र ने पहला और दूसरा स्थान पाया था। मेघना को 500 में से 499 और अनुष्का को 498 नंबर मिले थे। उस परीक्षा में कुल 83.01 फीसद बच्चे पास हुए थे।
मेरिट में तीसरे स्थान पर आने वाले छात्रों की संख्या 7 थी और इन सभी को 500 में से 497 अंक प्राप्त हुए थे। इस परीक्षा में लड़कियों का पास प्रतिशत 88.31 रहा जबकि 78.99 फीसद लड़के पास हुए है।
उल्लेखनीय बात यह रही कि 12 वीं में 72 हजार 599 परीक्षार्थियों ने 90 प्रतिशत या उससे ऊपर अंक हासिल किए। जबकि 95 या उससे ऊपर अंक हासिल करने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या 12,737 थी।
इस वर्ष कुल 28 लाख विद्यार्थियों ने सीबीएसई की 10 वीं और 12 वीं की परीक्षा दी थी। इनमें से 10 वीं के लिए 16,38,428 और 12वीं के लिए 11,86,306 विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया था।
अब जरा 12 वीं की परीक्षा में मेरिट लिस्ट में पहले व दूसरे नंबर पर आई दोनों लड़कियों के विषयवार अंक भी जान लीजिए-
मेघना श्रीवास्तव: इंग्लिश कोर-99, इतिहास-100, भूगोल-100, अर्थशास्त्र-100, मनोविज्ञान-100 कुल 499
अनुष्का चंद्रा: इंग्लिश कोर-98, इतिहास-100, राजनीति विज्ञान-100, अर्थशास्त्र-100, मनोविज्ञान-100 कुल 498
आप सोच रहे होंगे कि कॉलम लिखता लिखता अचानक मैं ये 35 साल पहले क्यों पहुंच गया जब मैं इस तरह के परीक्षा परिणामों आदि की रिपोर्टिंग किया करता था और प्रावीण्य सूची में आने वाले छात्र छात्राओं से इंटरव्यू कर उसे छापा करता था। आपको भी लग रहा होगा कि ऊपर मैंने जो इंतनी लंबी चौड़ी जानकारी दी है उसमें नया क्या है। यह तो सब छप चुका है।
यदि आप ठीक ऐसा ही सोच रहे हैं तो जरा रुकिए… ऊपर दी गई जानकारी को दुबारा पढि़ए, दुबारा पढ़ने में भी आपको कोई चौंकाने वाली बात न लगे तो फिर से पढि़ए। ना.. ना.. मैं आपके साथ कोई खेल नहीं खेल रहा… बल्कि आपको उस खेल के बारे में समझाने की कोशिश कर रहा हूं जो हमारी समूची शिक्षा व्यवस्था और इससे निकलने वाले बच्चों के साथ हो रहा है या फिर होने वाला है…
दरअसल जब से सीबीएसई की परीक्षाओं के परिणाम आए हैं हमारे दफ्तर में एक ही बात को लेकर बहस चल रही है कि आखिर मानविकी विषयों में पूरे सौ में से सौ नंबर कैसे आ सकते हैं। मेरे कई सहयोगियों और मुझे खुद अपना स्कूली वक्त याद आ रहा है जब प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास करने के लिए जरूरी 60 फीसदी अंक लाना भी कितना…कितना… कठिन हुआ करता था।
उस जमाने में 70-75 फीसदी अंक लाने की भी अव्वल तो कल्पना ही नहीं होती थी और कोई ले आता तो वह सचमुच खुदा हो जाता था। मां-बाप और परिवार वालों के अलावा स्कूल वाले भी उसे सिर पर उठाए घूमते थे। हमें याद है 80 फीसदी के आसपास अक लाने पर संबंधित विषय में डिस्टिंक्शन मिलती थी और उसे हासिल करने वाले छात्र के जलवे ही कुछ और हुआ करते थे।
और आज हालत यह है कि 80 फीसदी वालों को तो कोई कौड़ी के भाव भी नहीं पूछ रहा। हाल ही में मेरे पुराने सहयोगी राजेश चतुर्वेदी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में एक बच्चे का जिक्र किया था जो घर से सिर्फ इसलिए चला गया था कि उसने 95 फीसदी अंक लाने की उम्मीद पाली थी और उसे मिले थे सिर्फ 87 फीसदी अंक।
राजेश ने सवाल उठाया था कि बताइए 87 फीसदी अंक भी कम होते हैं क्या? आज की स्थितियों, बच्चों पर पड़ने वाले दबाव और उनसे लगाई जाने वाले उम्मीदों के साथ साथ उनमें खुद बढ़ती प्रतिस्पर्धा की भावना वाले इस समय में इसका जवाब है- हां… जी, हां!
आज के समय में 87 फीसदी अंक कम ही नहीं बहुत कम हैं… क्योंकि हमने मूल्यांकन के पैमाने और उपलब्धि की सारणी ही ऐसी बना दी है कि उसमें 90 फीसदी से कम अंक लाने वालों की कोई औकात ही नहीं बची है।
यकीन जानिए, मैं यह लिखकर मेरिट में आने वाले बच्चों की मेहनत, उनकी प्रतिभा और योग्यता पर न तो कोई आरोप लगा रहा हूं और न ही यह कटाक्ष है। 90 से लेकर 99 फीसदी से भी अधिक अंक पाने वाले उन बच्चों ने सचमुच कमाल किया है और उनकी इस उपलब्धि को लाख लाख सलाम।
लेकिन मैं जो सवाल उठाने जा रहा हूं वो यह है कि जिस तरह हम सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में असमानता की खाई को दिन रात चौड़ा करते जा रहे हैं, क्या उसी तरह एक खास किस्म की ‘अमीरी’ और ‘गरीबी’ की खाई इन बच्चों के बीच भी पैदा नहीं हो रही?
स्कूली शिक्षा समाप्त होते होते देश में दो वर्ग तैयार हो रहे हैं, एक 90 प्रतिशत और उससे अधिक अंक पाए हुए छात्र-छात्राओं का और दूसरा उससे कम अंक पाने वालों का। इसमें वैसा ‘अमीरी और गरीबी’ का भेद भले ही नहीं है जैसा आर्थिक क्षेत्र में होता है, क्योंकि 90 फीसद से ज्यादा अंक पाने वालों में ऐसे परीक्षार्थी भी हैं जो बहुत ही वंचित पृष्ठभूमि से आए हैं।
लेकिन हम चाहे अनचाहे या अनजाने में ही एक वर्गविभेद की स्थिति तो पैदा कर ही रहे हैं। और यह विभेद सफल और असफल होने वालों के बीच का नहीं है। मैं यहां परीक्षा में फेल होने वालों की तो बात ही नहीं कर रहा। यहां तो वंचितों और हालिसकर्ताओं का भेद उस स्थिति में तैयार हो रहा है जिस स्थिति में सभी सफल यानी सभी पास हैं…
– कल बात करेंगे 90 फीसदी के खतरे की