केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा पर शनिवार को भोपाल में एम्स के कुछ छात्रों ने स्याही फेंकी। भोपाल का एम्स अपनी सुविधाओं के लिए नहीं बल्कि अपने असुविधाओं और समस्याओं के लिए ज्यादा चर्चित है। जब केंद्रीय मंत्री का दौरा हुआ तो वहां के छात्रों ने उन्हें संस्थान की समस्याएं बतानी चाहीं लेकिन नड्डा छात्रों की बात को अनसुना कर आगे बढ़ गए। इससे नाराज छात्रों ने अपना गुस्सा उन पर स्याही फेंक कर निकाला।
भारत में यदि किसी को विकास कार्यों की अंतर्कथा लिखनी हो तो भोपाल के एम्स की कहानी उसके लिए आदर्श हो सकती है। इस अस्पताल की नींव सन 2000 में यानी 16 साल पहले रखी गई थी। लेकिन आज भी यह संस्थान अवस्था के लिहाज से किशोर होने के बजाय मध्यप्रदेश के बच्चों की तरह कुपोषित नवजात ही है। नींव रखने के तीन साल बाद यानी 2003 में तो इसका निर्माण शुरू हुआ और उसके दस साल बाद 2013 में यहां काम शुरू होने का औपचारिक ऐलान किया गया। औपचारिक मैंने इसलिए कहा कि अभी तक इसे विशेषज्ञ अस्पताल तो क्या एक पूर्ण कामकाजी अस्पताल भी आप नहीं कह सकते। इसकी हालत किसी बड़ी डिस्पेंसरी से ज्यादा नहीं है। बताया जाता है कि इसके निर्माण के लिए 2009 में जो 682 करोड़ रुपए लागत अनुमानित थी आज वह करीब करीब दुगुनी हो गई है।
एम्स में अस्पताल के साथ मेडिकल कॉलेज भी है। और जो हालत अस्पताल की है वैसी ही हालत मेडिकल कॉलेज की है। यदि अस्पताल की बात करें तो वहां कुल 24 विभाग चालू हैं जिनमें से अभी सिर्फ 13 ही विभाग चालू हो पाए हैं। यहां 960 बिस्तरों वाला अस्पताल प्रस्तावित है और वर्तमान में यहां करीब 190 बिस्तर ही उपलब्ध हैं। इसी तरह आईसीयू में 300 के बजाय सिर्फ 30 बिस्तर ही हैं और 40 ऑपरेशन थियेटर्स में से 6 ही काम कर रहे हैं।
छात्रों ने जो गुस्सा स्वास्थ्य मंत्री नड्डा पर निकाला उसकी वजह यदि आप जानेंगे तो यकीन ही नहीं कर पाएंगे कि जिन संस्थानों को देश में मिसाल माना जाता है क्या वहां ऐसा भी हो सकता है? असलियत जानने के लिए मंत्री के दौरे के समय छात्रों द्वारा की गई कुछ टिप्पणियां सुन लीजिए, आपको खुद ही अंदाज हो जाएगा कि हालात किस कदर बिगड़े हुए हैं। छात्र कहते हैं- ‘’हमारे रिश्तेदार पूछते हैं कि हम आपके एम्स में इलाज कराने आ जाएं? लेकिन हमें तो उन्हें यह बताते हुए भी शर्म आती है कि हमें इंजेक्शन लगाना तक नहीं आता, इलाज तो बहुत दूर की बात है। कॉलेज में कोई प्रैक्टिकल नहीं कराया जाता। हमसे अच्छा इलाज तो एक कंपाउंडर कर लेता है।‘’ …स्त्री रोग विभाग में डिलेवरी की सुविधा तक नहीं है, हमें सिर्फ किताबों के जरिए बताया गया है कि डिलेवरी कैसे होती है। हमें कहा गया था कि स्त्रीरोग विभाग में बेहतर सुविधाएं मिलेंगी लेकिन पिछले पांच सालों में एक भी डिलेवरी नहीं हो पाई है। एमबीबीएस करने के बावजूद हमें मरीजों का चैकअप करना तक नहीं आता।‘’
देश में एम्स जैसे संस्थान से डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाला कोई छात्र यदि यह कहे कि उसे मरीज का चैकअप करना या इंजेक्शन लगाना तक नहीं आता तो लानत है ऐसी व्यवस्था और ऐसे संस्थानों पर। आखिर हमने विकास की बुनियादी जरूरतों को समझ क्या रखा है? स्कूली शिक्षा के बारे में रिपोर्टें कहती हैं कि प्राइमरी कक्षा के बच्चों को अक्षर और अंक पढ़ना या पहचानना नहीं आता। मेडिकल कॉलेज से निकलने वाला छात्र कहता है कि उसे मरीज की नब्ज देखना नहीं आता, तो किस मुंह से हम भारत की तरक्की और उसके कथित‘विश्वगुरु’ बनने का दावा कर रहे हैं।
और देश का भविष्य बनाने या बिगाड़ने वाले इस मुद्दे पर हमारे नीति नियंताओं का क्या बयान है जरा वो भी सुन लीजिए- मंत्रीजी से जब कहा गया कि इतने साल हो जाने के बावजूद भोपाल एम्स में कोई सुविधा विकसित नहीं हो पाई है तो उनका जवाब था- ‘’दिल्ली के एम्स को तैयार होने में 20 बरस लगे थे, भोपाल में तो अभी 13 साल ही हुए हैं, अभी सात साल बाकी हैं, आखिर भोपाल को इतनी जल्दी क्यों है?’’
नहीं मंत्रीजी, भोपाल बिलकुल जल्दी में नहीं है। आप सात क्या 70 साल और ले लीजिए। लेकिन यह भी सोच लीजिए कि उन 70 सालों में आप कहां होंगे, आपकी पार्टी कहां होगी और यह देश कहां होगा।
वैसे इस मामले में अपराधी सिर्फ केंद्र के नेता और वहां का तंत्र ही नहीं है। अपराधी मध्यप्रदेश की सरकार और इस शहर के जनप्रतिनिधि भी हैं। आखिर हमारे जनप्रतिनिधि क्या कर रहे हैं? संस्थानों की घोषणा करवा कर वाहवाही लूटने के बाद क्या उस घोषण को अमली जामा पहनाना उनका दायित्व नहीं है? बड़ी शान से कहा जाता था कि जिस दिन केंद्र और राज्य में हमारी सरकार होगी सारे काम यूं चुटकियों में होंगे। वोट भी इसी आधार पर मांगे गए थे। अब तो दोनों जगह आपकी सरकार है, अब क्यों नहीं हो पा रहे काम? यूपीए सरकार के समय तो बात बात पर धरना प्रदर्शन होने लगता था लेकिन ऐसा लगता है कि अब सभी को सांप सूंघ गया है। जनता को इंतजार है आपकी उस चुटकी का जो कभी तो बजे…