रमेश रंजन त्रिपाठी
‘हेलो! कोरोना लाइफ रिसेट कंसलटेंसी सर्विस में आपका स्वागत है। हमारा ऐप डाउनलोड करने के लिए धन्यवाद। कोरोना ने सबकी लाइफ को रिसेट मोड में डाल दिया है। जिंदगी तीन सौ साठ डिग्री घूम रही है। विलासिता के कई प्रोग्राम डिलीट हो रहे हैं, मेमोरी से कई मैसेज उड़ने लगे हैं। अनेक मनपसंद ऐप इरेज हो चुके हैं, महज बेसिक फंक्शन शेष हैं जिन्हें बचाने के लिए भी जतन करने पड़ रहे हैं। अधिकांश गतिविधियों का रिमोट कंट्रोल कोरोना के हाथ में पहुंच गया है। इन्हीं समस्याओं से निजात दिलाने के लिए हमारा ऐप आपकी सेवा में हाजिर है। हमने आपके मोबाइल पर आठ डिजिट का एक सीक्रेट कोड भेजा है। कृपया उसे कीपैड पर टाइप करें ताकि यह बातचीत जारी रहे।’
उधर से आवाज आई तो मैंने सीक्रेट कोड बता दिया। कन्फर्मेशन के बाद वही स्वर फिर उभरा-‘आपने हमारी नॉर्मल सेवाओं को सब्सक्राइब किया है। आप चाहें तो हमारी प्रीमियम सेवाओं का लाभ भी उठा सकते हैं।’
‘मैं नॉर्मल सेवा से काम चला लूंगा।’ मेरा स्वर बुझा-बुझा सा था- ‘यह भी कौनसा सस्ता है?’
‘कोई बात नहीं।’ दूसरी ओर से आवाज आई- ‘आप रेड जोन में रहते हैं। हमने अगले दो हफ्तों के लिए कुछ खास प्रोग्राम तैयार किए हैं।’
‘तो देर किस बात की है?’ मैं अधीर हो उठा- ‘शुरू हो जाइए।’
‘हमारा कामवाली बाई और शेफ वाला प्रोग्राम आपके बड़े काम का है।’ वही स्वर गूंज रहा था- ‘इससे आपको घर में झाड़ू-पोंछा लगाने, कपड़े धोने और चाय-नाश्ता तैयार करने में आनंद आने लगता है। इन कामों में आपका उत्साह बनाए रखने और बोरियत दूर भगाने के लिए हम गीत-संगीत भी बजाते रहते हैं। पत्नी की झिडकियां और डांट बुरी नहीं लगती।
एक और कार्यक्रम है एक्सरसाइज का। इसके जरिए हम लॉकडाउन के दौरान काम के बोझ से घटने वाले बजन को रेगुलेट करते हैं। अनेक लोग इसे अपने वेट-लॉस के लिए अपना रहे हैं। इस प्रोग्राम में पत्नी के पैर दबाने की कसरत शामिल की गई है जो लॉकडाउन के दौरान चौबीसों घंटे साथ रहने के बावजूद पति-पत्नी के बीच प्यार की उड़ान को बहुत ऊंचा नहीं जाने देता।’
‘क्या आपके पास ऐसा कोई रुआब नहीं है जिसे पत्नी पर झाड़ा जा सके?’ मैंने धीमे स्वर में पूछा।
‘हमारी प्रीमियम सर्विस में ऐसा रुआब उपलब्ध है।’ आवाज ने सूचना दी- ‘परंतु वह आपके किसी काम का नहीं है क्योंकि आपकी पत्नी ने उसका ऐंटीडोट पहले ही ले रखा है। उन पर यह असर नहीं करेगा।’
‘मेरी घरवाली ने और कितने प्रोग्राम खरीद लिए हैं?’ मैं झुँझलाया- ‘बताओ तो सही!’
‘आपकी धर्मपत्नी हमारी प्रीमियम प्रोग्राम की मेम्बर हैं। हम प्राइवेसी पॉलिसी के तहत उनकी कोई जानकारी आपके साथ साझा नहीं कर सकते। उन्होंने इसके लिए विशेष फीस अदा की है। यहां तक कि आपको उनके मोबाइल में हमारा ऐप भी दिखाई नहीं देगा। लेकिन हमारे प्रीमियम जासूसी प्रोग्राम का चार्ज भरकर आपको प्रभावित करनेवाली जानकारी आप ले सकते हैं।’
‘आपकी फीस तो मेरे क्रेडिट कार्ड से ही भरी गई होगी।’ मेरी झुंझलाहट बढ़ रही थी- ‘फिर मुझे मैसेज क्यों नहीं आया?’
‘आपकी पत्नी ने प्रीमियम सर्विस ले रखी है जिसमें पति को पत्नी की कोई, विशेषकर खर्च वाली बात, बुरी नहीं लगती! इसीलिए आपने मैसेज को इग्नोर कर दिया होगा।’ दूसरी ओर से बताया गया।
‘आपकी सारी सेवाएं पेड हैं या कोई मुफ्त भी है।’ मैंने पूछ ही लिया।
‘हमारी एक सेवा फ्री है।’ आवाज थोड़ा गंभीर हो गई- ‘परंतु उस प्रोग्राम को किसी ने सब्सक्राइब नहीं किया है।’
‘क्या है वह?’ मैंने पूछने में तत्परता दिखाई- ‘शायद मेरे काम का हो।’
‘लॉकडाउन में धर्मस्थल बंद हैं।’ स्वर की संजीदगी और बढ़ गई- ‘आप पूजा-पाठ या इबादत के लिए कहीं नहीं जा सकते। हमने इसी कमी को पूरा करने के लिए अपने कस्टमर के हृदय में उसके मनपसंद भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा का प्रोग्राम डिजाइन किया है। परंतु अभी तक किसी ने मुफ्त में भी इस सुविधा का लाभ नहीं उठाया।’
‘ऐसा क्यों?’ मुझे बात समझ में नहीं आई।
‘हृदय में ईश्वर की प्राण-प्रतिष्ठा होते ही आपका शरीर देवालय बन जाता है।’ आवाज गूंजी- ‘आपको तन-मन से देवालय के नियमों का पालन करना पड़ता है। आपके शरीर में अपवित्रता और बुराइयों के लिए कोई स्थान नहीं बचता। आपको दुर्व्यसनों का त्याग करना पड़ता है। इतने कठोर नियम मानने के लिए कोई तैयार नहीं है। सभी का मत है कि खुद को देवालय बनाने से अच्छा है कि कभी-कभी समय निकालकर मंदिर हो आएंगे, कम से कम चौबीसों घंटे भलमनसाहत का बंधन तो नहीं रहेगा।’
उसकी बात सुनकर मैं भी चुप हो गया। स्वर पुनः उभरा- ‘क्या आप अपने मन में भगवान को स्थान देने के लिए तैयार हैं?’
मैं क्या जवाब दूं? मार्गदर्शन करें।
(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)