प्रचार किसका चाहिए, उत्‍पाद का या जिस्‍म का…?

यह संतोष का विषय है कि पिछले कई दिनों से जनमानस में चर्चा का केंद्र बने हुए एक विषय पर सरकार का ध्‍यान गया है। वैसे यह समय और इस समय की सारी सरकारी व गैर सरकारी गतिविधियां गुजरात चुनाव के नाम ही समर्पित हैं, लेकिन गुजरात की राजनैतिक व्‍यस्‍तताओं से समय निकालकर सरकार ने एक ऐसे विषय पर फैसला किया है जिस पर ध्‍यान देने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी।

सरकार ने टीवी चैनलों पर कंडोम के वि‍ज्ञापन दिखाए जाने के समय को लेकर नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनके मुताबिक टीवी चैनलों पर कंडोम के वि‍ज्ञापन सुबह 6 बजे से रात 10 के बीच नहीं दि‍खाए जा सकेंगे। यानी प्राइम टाइम और उन समयखंडों में जब लोग परिवार के साथ टीवी देखते हैं, ऐसे विज्ञापनों का प्रसारण नहीं हो सकेगा। सरकार ने यह फैसला करके एक तरह से ऐसे विज्ञापनों को सेंसर की भाषा में ‘ए’ सर्टिफिकेट वाला घोषित कर दिया है।

एडवरटाइजिंग स्टैंडर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) के अनुसार बच्चों के लि‍ए इस तरह के वि‍ज्ञापन देखना ठीक नहीं है इसलि‍ए इन पर दि‍न के समय में पाबंदी लगनी चाहि‍ए। ताजा फैसला उन सरकारी नियमों पर आधारित है, जिनके मुताबिक ऐसा कोई भी विज्ञापन जो बच्चों की सुरक्षा को खतरे में डालता हो और गलत बातों में उनकी रुचि पैदा करता हो, उसे इजाजत नहीं मिलनी चाहिए।

बताया जाता है कि हाल ही में आए सनी लि‍योनी और बिपाशा बसु के कंडोम विज्ञापनों पर काफी वि‍वाद खड़ा हो गया था, कई संगठनों ने इन विज्ञापनों की प्रस्‍तुति के तरीके को लेकर आपत्ति जताई थी जि‍सके कारण इन पर रोक लगाई गई है। महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग ने भी कंडोम के विज्ञापनों को लेकर आई शिकायतों पर एडवरटाइजिंग स्टैंडर्स काउंसिल ऑफ इंडिया को इनकी समीक्षा करने के लिए कहा था।

दरअसल यह पहली बार नहीं है जब गर्भनिरोधक सामग्री के विज्ञापनों को लेकर बवाल मचा हो। पहले भी ऐसे कई विज्ञापनों पर विवाद हो चुका है। 90 के दशक में मार्क रॉबिन्सन और पूजा बेदी ने काफी उत्‍तेजक अंदाज में ‘कामसूत्र’ का विज्ञापन किया था। उस दौर का यह सबसे बोल्ड विज्ञापन था। इसे टीवी पर दिखाए जाने का कई संगठनों ने विरोध किया था।

विवादास्‍पद अभिनेत्री राखी सावंत ऐसे ही एक विज्ञापन को लेकर विवाद में आई थीं। उसमें राखी ने एक वीडियो शेयर करते हुए अपने फेवरेट फ्लेवर कंडोम के बारे में बताया था। वेस्‍ट इंडीज के चर्चित क्रिकेटर क्रिस गेल को भी कंडोम के एक विज्ञापन के कारण विरोध का सामना करना पड़ा था। इसमें गेल अभद्र और विवादास्‍पद शब्‍दों का इस्‍तेमाल करते हुए दिखाए गए थे।

मैनफोर्स कंपनी के ऐसे ही विज्ञापनों में पूर्व पोर्न स्‍टार सनी लियोनी जिस ‘बोल्‍ड‘ अंदाज में सामने आई थीं उसे भी भारत के एक बड़े वर्ग ने नापसंद किया था। गुजरात में नवरात्र के दौरान सनी लियोनी के कंडोम विज्ञापनों के प्रचार प्रसार पर तो खासा बवाल हो गया था और बाद में कंपनी को वे विज्ञापन होर्डिंग्‍स हटाने पड़े थे।

ताजा मामला बिपाशा बसु और करन सिंह ग्रोवर का है। कंडोम के एक विज्ञापन में ये दोनों उत्‍तेजक लोकेशन पर रोमांस करते हुए नजर आए थे। टीवी पर इन विज्ञापनों के जारी होने के बाद कई संगठनों ने नाराजी जताई थी और बाद में ऐसे कुछ विज्ञापन प्रचार अभियान से हटा लिए गए थे।

एक बार तो ऐसे ही एक विज्ञापन ने कारोबार के तौर तरीकों के साथ साथ नस्‍लभेद की भी तमाम हदें पार कर दी थीं। 2015 के क्रिकेट विश्वकप में भारत की पाकिस्तान पर रोमांचक जीत के बाद आए कंडोम के एक विज्ञापन पर खासा विवाद हुआ था। इस विज्ञापन में एक मॉडल सिर्फ हरे रंग के अंडर गारमेंट्स पहने दिखाई गई थी। मॉडल की तस्वीर के नीचे भारत को जीत की बधाई देने वाला संदेश लिखा था-‘‘यह है खेलने का सही तरीका, टीम इंडिया को बधाई!’’

इन सारी घटनाओं और विवादों के चलते समय समय पर कई संगठनों और समाज के अलग अलग वर्गों से ऐसी मांग उठती रही है कि इन विज्ञापनों का प्रसारण रोका जाना चाहिए। विरोध करने वालों का कहना था कि यदि और कुछ न हो सके तो इन्‍हें कम से कम दिन में या उस समय तो न दिखाया जाए जब बच्‍चे या परिवार के लोग साथ में बैठकर टीवी देखते हों। क्‍योंकि कार्यक्रम के बीच में कमर्शियल ब्रेक के दौरान अचानक आ जाने वाले ऐसे विज्ञापन बड़ों के लिए असहज स्थिति पैदा करते हैं, वहीं बच्चों पर इनका अच्‍छा असर नहीं होता।

अब जब सरकार ने ऐसे विज्ञापनों को दिखाए जाने की समयावधि तय कर दी है तो उसका स्‍वागत किया जाना चाहिए। हो सकता है इस पर भी कुछ लोग कुनमुनाएं। जैसे ‘अभिव्‍यक्ति की आजादी’ को लेकर शोर मचाया जाता है उसी तरह विज्ञापन बनाने की कला और कारोबार की आजादी जैसे जुमले बीच में लाकर सरकार के फैसले का विरोध हो, लेकिन सरकार को इस फैसले से पीछे नहीं हटना चाहिए।

एक बात और… जब देश में विज्ञापनों की सामग्री आदि पर निगरानी रखने के लिए एडवरटाइजिंग स्टैंडर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) जैसी संस्‍था मौजूद है तो फिर उसे पहले ही ऐसे मामलों को संज्ञान में ले लेना चाहिए। जिस तरह फिल्‍मों में आपत्तिजनक दृश्‍यों के लिए सेंसर बोर्ड की कैंची रहती है वैसी ही कैंची उत्‍पादों के विज्ञापनों के लिए क्‍यों नहीं होनी चाहिए? और कैंची का सिर्फ मौजूद होना ही काफी नहीं है, उसे चलना भी चाहिए…

प्रश्‍न यह है कि हमें प्रचार किसका करना है, उत्‍पाद का या नारी जिस्‍म काऐसे विज्ञापन नारी गरिमा के भी खिलाफ हैं।

 

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