आप भी कभी न कभी ऐसी ठगी का शिकार हुए होंगे

मध्‍यप्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को सत्‍तारूढ़ दल के विधायक केदारनाथ शुक्‍ल ने एक ऐसा मामला उठाया जो प्रदेश में दुपहिया और चार पहिया वाहन खरीदने वाले हरेक व्‍यक्ति से जुड़ा है। इस मामले का सनसनीखेज पहलू यह है कि प्रदेश में वाहन खरीदने वाला करीब करीब हर व्‍यक्ति जाने अनजाने बड़ी ठगी का शिकार हुआ है।

केदारनाथ शुक्‍ल ने बजट सत्र के अंतिम दिन अपनी ध्‍यानाकर्षण सूचना में कहा कि प्रदेश के ऑटोमोबाइल डीलर्स मोटरयान अधिनियम का उल्‍लंघन करते हुए बिना पंजीयन कराए ग्राहकों को वाहनों की डिलिवरी दे रहे हैं। इतना ही नहीं ग्राहकों से दुपहिया और चार पहिया वाहनों की खरीद पर लॉजिस्टिक, हैंडलिंग, डिपो और अन्‍य चार्ज के नाम पर धोखाधड़ी कर अवैध वसूली की जा रही है। जबकि सुप्रीम कोर्ट इस तरह की वसूली को गलत बता चुका है। देश के अन्‍य राज्‍यों जैसे गुजरात,महाराष्‍ट्र, केरल, तेलंगाना, कर्नाटक, दिल्‍ली आदि में ऐसे मामलों में परिवहन विभाग ने कड़ी कार्रवाई कर डीलर्स के ट्रेड सर्टिफिकेट रद्द किए हैं।

शुक्‍ल ने कहा कि प्रदेश में डीलर्स पाइंट एनरोलमेंट सिस्‍टम लागू होने के बाद भी डीलर्स, वाहन खरीदारों से आर.टी.ओ. प्रोसेसिंग चार्ज के रूप में अवैध वसूली कर रहे हैं। प्रदेश में हर साल होने वाली वाहनों की खरीद के हिसाब से देखें तो लॉजिस्टिक,हैंडलिंग, डिपो और अन्‍य चार्ज के अलावा प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर ग्राहकों से की जाने वाली यह वसूली करोड़ों रुपए में है। इस तरह एक बड़े घोटाले को खुलेआम अंजाम दिया जा रहा है।

चूंकि शुक्रवार को विधानसभा के बजट सत्र का अंतिम दिन था इसलिए अध्‍यक्ष ने कुल 58 ध्‍यानाकर्षण सूचनाओं में से सिर्फ पहली 6 सूचनाओं को ही चर्चा के लिए मंजूर किया। बाकी सूचनाएं सदस्‍यों द्वारा पढ़ी गई मान ली गईं और उन पर मंत्रियों के उत्‍तर भी सदन के पटल पर रखे हुए मान लिए गए। इस कारण शुक्‍ल की ध्‍यानाकर्षण सूचना पर सरकार के जवाब की जानकारी देर शाम तक नहीं मिल सकी थी। इसलिए ठीक ठीक यह नहीं बताया जा सकता कि इसमें सरकार का रुख क्‍या है, लेकिन यह मामला बहुत गंभीर है।

देखने में आ रहा है कि दुपहिया अथवा चार पहिया वाहन खरीदने वाले लोगों से ऑटोमोबाइल डीलर्स लॉजिस्टिक, हैंडलिंग, डिपो और अन्‍य चार्ज के नाम पर दो तीन सौ रुपए से लेकर दो तीन हजार रुपए तक झटक रहे हैं। यह राशि फिक्‍स नहीं होती और इसकी वसूली जैसा ग्राहक फंस जाए उसी हिसाब से की जाती है। ऐसे में यह कहना तो कठिन है कि इस तरह होने वाले लेनदेन में कुल कितने करोड़ का घोटाला हो रहा होगा। लेकिन आंकड़ों को देखें तो 2001-02 में जहां प्रदेश में 2 लाख 61 हजार 537 वाहन रजिस्‍टर हुए थे, वहीं 2014-15 में इनकी संख्‍या बढ़कर 11 लाख 73 हजार 321 हो गई। 2012-13 को छोड़कर इन पंद्रह सालों में प्रदेश में हर साल वाहनों के रजिस्‍ट्रेशन में बढ़ोतरी हो रही है। यदि 2016 तक रजिस्‍ट्रेशन का आंकड़ा 13 लाख माना जाए और प्रति वाहन इस तरह की अवैध वसूली को औसतन व न्‍यूनतम 500 रुपए तक भी सीमित रखा जाए तो भी यह राशि हर साल 65 करोड़ रुपए से अधिक होती है।

ग्राहकों को धोखे में रखकर या उन्‍हें गुमराह करके वसूली जाने वाली इस राशि की लूट तत्‍काल बंद होनी चाहिए। भाजपा विधायक ने तो इस मामले में स्‍पेशल टास्‍क फोर्स गठित कर उससे पूरे मामले की जांच कराने और ग्राहकों से अवैध रूप से वसूली गई राशि उन्‍हें वापस दिलाने तक की मांग की है। शुक्‍ल के आरोपों से इसलिए भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अभी हाल ही में भोपाल में एक ऑटोमोबाइल डीलर के खिलाफ कार्रवाई करते हुए विभाग ने उसका ट्रेड सर्टिफिकेट निरस्‍त किया है। भोपाल का मामला भी इसलिए सामने आ सका क्‍योंकि कुछ लोगों ने इसकी उच्‍च स्‍तर तक शिकायत की थी। खुद केदारनाथ शुक्‍ल ने मध्‍यप्रदेश में हो रही इस अवैध वसूली को रोकने के लिए प्रधानमंत्री, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी व अन्‍य लोगों को विस्‍तृत ब्‍योरे के साथ पत्र लिखा है।

मूल मुद्दा ग्राहकों से धोखाधड़ी का है। आमतौर पर होता यह है कि गाड़ी खरीदने की खुशी में व्‍यक्ति हजार दो हजार का अतिरिक्‍त खर्च नहीं देखता। इसी तरह कानूनी कागजात तैयार करवाने में होने वाली झंझटों से बचने के लिए भी वह डीलर्स या बिचौलियों के जाल में फंस जाता है। मध्‍यप्रदेश के परिवहन विभाग ने राजधानी में कार्रवाई तो की है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि ऐसी कार्रवाइयां हर जगह हों और दोषी डीलर्स के खिलाफ सख्‍त कदम उठाए जाएं। इसके साथ ही ऐसा मैकेनिज्‍म भी विकसित किया जाना जरूरी है जिसमें ग्राहकों को ऐसी धोखाधड़ी से बचाया जा सके। प्रदेश में अपवादस्‍वरूप ही ऐसे ग्राहक रहे होंगे जो ऑटोमोबाइल डीलर्स के इस जाल में फंसकर ठगे न गए हों। जो कंपनियां या डीलर्स उपभोक्‍ताओं को धोखे में रखकर या उन्‍हें सरकारी दावपेंच की जटिलता से डराकर पैसा वसूल चुके हैं, ऐसे उपभोक्‍ताओं को उनका पैसा वापस दिलाया ही जाना चाहिए।

और हां, आप या आपके परिवार में कोई वाहन खरीदने जा रहा हो तो उसे सचेत करना मत भूलिएगा कि इस तरह की कोई भी वसूली अवैध है… 

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