कल रात एक ऐसा वाकया हुआ जिसने मेरी ज़िन्दगी के कई पहलुओं को छू लिया।
शाम के करीब 7 बजे होंगे, मोबाइल बजा। उठाया तो उधर से रोने की आवाज…।
मैंने शांत कराया और पूछा कि भाभीजी आखिर हुआ क्या?
उधर से आवाज़ आई- आप कहाँ हैं और कितनी देर में आ सकते हैं?
मैंने कहा:-“आप परेशानी बताइए!” और “भाई साहब कहाँ हैं? माताजी किधर हैं?” “आखिर हुआ क्या?”
लेकिन उधर से केवल एक रट कि आप आ जाइए, मैंने आश्वासन दिया कि कम से कम एक घंटा लगेगा। जैसे तैसे घबराहट में मैं वहां पहुँचा। देखा तो भाई साहब (हमारे मित्र, जो जज हैं) सामने बैठे हुए हैं। भाभीजी रोना चीखना कर रही हैं, 13 साल का बेटा भी परेशान है। 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है।
मैंने भाई साहब से पूछा कि आखिर क्या बात है।
भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे थे।
फिर भाभी जी ने कहा ये देखिए ये तलाक के पेपर, ये कोर्ट से तैयार कराके लाये हैं, मुझे तलाक देना चाहते हैं…
मैंने पूछा- ये कैसे हो सकता है। इतनी अच्छी फैमिली है। दो बच्चे हैं। सब कुछ सेटल्ड है। पहली नजर में मुझे लगा ये मजाक है।
फिर मैंने बच्चों से पूछा दादी किधर हैं, तो बच्चों ने बताया पापा ने उन्हें 3 दिन पहले नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट कर दिया है। मैंने घर के नौकर से कहा मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ, कुछ देर में चाय आई। बहुत कोशिश की भाई साहब को चाय पिलाने की लेकिन उन्होंने नहीं पी।
कुछ ही देर में वो एक मासूम बच्चे की तरह फूट फूट कर रोने लगे। बोले मैंने 3 दिन से कुछ भी नहीं खाया है। मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ। पिछले साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें हो गईं कि पत्नी (भाभीजी) ने कसम खा ली कि मैं माँ जी का ध्यान नहीं रख सकती। ना तो ये उनसे बात करती थी और ना ही मेरे बच्चे बात करते थे। रोज़ मेरे कोर्ट से आने के बाद माँ खूब रोती थी। नौकर तक अपनी मनमानी से व्यवहार करते थे।
माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया।। बेटा तू मुझे ओल्ड एज होम में शिफ्ट कर दे। मैंने बहुत कोशिश की पूरी फैमिली को समझाने की, लेकिन किसी ने माँ से सीधे मुँह बात नहीं की।
जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी। मां ने दूसरों के घरों में काम करके मुझे पढ़ाया। मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं जज हूँ। लोग बताते हैं माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं।
उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके आया हूँ। पिछले 3 दिनों से मैं अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ, जो उसने केवल मेरे लिए उठाए।
मुझे आज भी याद है जब… मैं दसवीं की परीक्षा देने वाला था। माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती। एक बार माँ को बहुत तेज बुखार आया। मैं तभी स्कूल से आया था। उसका शरीर तप रहा था। मैंने कहा माँ तुझे तो बुखार है, लेकिन हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गरम है।
उसने लोगों से उधार माँग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई करवाई। मुझे ट्यूशन तक नहीं पढ़ाने देती थीं कि कहीं मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए। कहते-कहते जज साहब रोने लगे… बोले– जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके, तो हम अपने बीवी और बच्चों के क्या होंगे। हम जिनके शरीर के टुकड़े हैं, आज हम उनको ऐसे लोगों के हवाले कर आए, जो उनकी आदत, उनकी बीमारी, उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते… जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं कर सकता तो मैं किसी और के लिए भला क्या कर सकता हूँ।
आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और माँ इतनी बोझ लग रही हैं, तो मैं इन्हें पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ। जब मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे भी पल जाएंगे। इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ, मैं सारी प्रॉपर्टी इन लोगों के हवाले कर उसी ओल्ड एज होम में रहूँगा। कम से कम माँ के साथ रह तो सकता हूँ।
और अगर इतना सब कुछ कर के माँ आश्रम में रहने के लिए मजबूर है, तो एक दिन मुझे भी आखिर जाना ही पड़ेगा। माँ के साथ रहते-रहते आदत भी हो जाएगी। माँ की तरह तकलीफ तो नहीं होगी। वे जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे। बातें करते करते रात के 12:30 हो गए।
मैंने भाभीजी के चेहरे को देखा। उनके भाव भी प्रायश्चित और ग्लानि से भरे हुए थे। मैंने ड्राइवर से कहा अभी हम लोग नोएडा जाएंगे। भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग नोएडा आल्ड एज होम पहुँचे। बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला। भाई साहब ने उस गेटकीपर के पैर पकड़ लिए, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ, चौकीदार ने पूछा- ‘’क्या करते हो साहब…’’, भाई साहब ने कहा- ‘’मैं जज हूँ’’,
चौकीदार बोला- “जहाँ सारे सबूत सामने थे तब तो आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाए, औरों के साथ क्या न्याय करते होंगे साहब।‘’
इतना कहकर वह हम लोगों को वहीं रोककर अन्दर चला गया। अन्दर से एक महिला आई जो वार्डन थी। उसने बड़े कातर शब्दों में कहा- ” दो बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो मैं अपने ईश्वर को क्या जबाब दूंगी..?”
मैंने उस महिला से कहा आप विश्वास करिए। ये लोग बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं।
अंत में किसी तरह वह हमें मां के कमरे में ले गईं। कमरे का जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ। केवल एक फ़ोटो जिसमें पूरी फैमिली थी, उसे अपने सीने से लगाए वे सोई हुई थीं। जैसे किसी बच्चे को सुला रखा हो।
मुझे देखा तो उनको लगा कि बात न खुल जाए, लेकिन जब मैंने कहा हम लोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी। आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब लोग जाग कर आ गए। उनकी भी आँखें नम थीं।
कुछ समय बाद चलने की तैयारी हुई। पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आए। किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाए। सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि शायद उनको भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे… लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की भावनाओं को अपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे। घर आते-आते करीब 3:45 हो गया।
भाभीजी भी शायद समझ गई थीं कि उनकी ख़ुशी की चाबी कहाँ है। मैं भी घर की ओर लौट चला। लेकिन रास्ते भर वो सारी बातें और दृश्य आंखों के सामने घूमते रहे।
कहानी से सबक
माँ तो माँ है। उसे मरने से पहले ना मारें। माँ ही हमारी ताकत है यदि वह बेसहारा और कमज़ोर हो गई तो हमारी संस्कृति की रीढ़ ही कमज़ोर हो जाएगी और बिना रीढ़ वाला समाज कैसा होगा यह कहने की जरूरत नहीं है।
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