मध्यप्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष कमलनाथ की 7 मई को भोपाल में हुई ‘मीट द प्रेस’ के प्रसंग को मैंने अपनी ओर से समाप्त मान लिया था। मुझे जो कुछ लिखना था मैं उसी दिन लिख चुका था लेकिन… मंगलवार को मेरे लिखे हुए पर जो प्रतिक्रियाएं आईं और उस सभागार से मेरे चले आने के बाद वहां जो कुछ हुआ उसने मुझे ‘मीट द प्रेस’ पार्ट टू लिखने को मजबूर किया है।
मैंने कल कहा था कि कमलनाथ ने जिस कालखंड में मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभालते हुए पार्टी को राज्य विधानसभा का अगला चुनाव जिताने की जिम्मेदारी ओढ़ी है, उस कालखंड में मीडिया की पीढ़ी और टूल्स दोनों बदल गए हैं। नाथ मीडिया की जिस पीढ़ी से वाकिफ रहे हैं वह आज 70+ की होने जा रही है।
ऐसे में उन्हें पुरानी पीढ़ी के महत्व और नई पीढ़ी की उपयोगिता में तालमेल बैठाकर चलना होगा, अन्यथा वे रोज विवादों में घिरे रहेंगे और रोज ही उनका बहुत सारा समय और श्रम ऐसे ही जरूरी या गैर जरूरी मुद्दों पर सफाई देने में ही जाया होगा। आज के मीडिया को रोज बाइट चाहिए और कमलनाथ को खुद को रोज ऐसे ‘कटवाने’ (बाइट) की आदत नहीं है।
कई लोगों ने मुझसे कहा कि कमलनाथ उन नेताओं में से हैं जिनका मीडिया मैनेजमेंट बहुत तगड़ा और मारक माना जाता है। वे सीधे अखबारों या मीडिया संस्थानों के मालिकों और संपादकीय कर्ताधर्ताओं से संबंध रखते हैं और इसीलिए मीडिया में उनके खिलाफ कोई कैम्पेन संभव नहीं हो पाता।
मैं भी कमलनाथ को 1982 से जानता हूं और मानता हूं कि इन सारी बातों में सचाई रही है। लेकिन मेरी दलील यह है कि मीडिया मैनेजमेंट के अपने पुराने फार्मूले के तहत आप फलां अखबार या फलां चैनल के मालिक या उसके ब्यूरो चीफ या कि उसके रिपोर्टर को तो मैनेज कर लोगे पर उस ‘चंदू चटखारे’ का क्या करोगे जो वाट्सएप, फेसबुक या ट्विटर पर जब मन आया कोई नई सनसनी पटक देता है।
ऐसे लोगों की न तो कोई सही पहचान है और न ही उन तक कोई सटीक पहुंच। उन्हें कैसे मैनेज किया जा सकेगा? और आज के चुनाव में यही ‘अनमैनेजेबल हथियार’ सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। यह वैसा ही है जैसे बचपन में कोई सिर पर धौल मारकर छुप जाता था और हम ढूंढते ही रह जाते थे कि वो कौन था जो टाट पर टोल मार गया।
कांग्रेस या कमलनाथ का जिस राजनीतिक बिरादरी से मुकाबला होने वाला है वह हर मोर्चे पर मुस्तैद है। वहां ऐसे मामलों में छुईमुई एप्रोच की गुंजाइश ही नहीं है। आप यदि एक पत्थर फेंकेंगे तो जवाब में आप पर सौ या हजार पत्थर आ गिरेंगे। दूसरी बात आपके संवेदनशील होने की है। खुद कमलनाथ ने ‘मीट द प्रेस’ में जिस तरह सोशल मीडिया की चर्चाओं पर क्षोभ जताया वह बताता है कि उन्हें ऐसे हमले झेलने की आदत नहीं है।
इन चुनावों में तो आपको कंकर, पत्थर, कीचड़, गोबर सब कुछ अपने बदन पर झेलने के लिए तैयार रहना होगा। सामने वाले को यदि लग गया कि यह आपकी कमजोरी है तो उसकी राह और आसान हो जाएगी। ऐसे चटखारे पूरे चुनाव में आपकी चिढ़ावनी बनाकर चलाए जाते रहेंगे। अपनी कॉरपोरेट स्टाइल के चलते हो सकता है आप दिल्ली या मुंबई से सोशल मीडिया को चलाने वाली कोई टीम बुलाकर भोपाल में बैठा लें।
लेकिन ऐसी कोई भी टीम यहां आकर तथ्यों और तर्कों पर ही तो बात कर पाएगी। जबकि जो युद्ध लड़ा जाना है वहां तथ्यों और तर्कों की गुंजाइश ही नहीं है। क्या आप सोशल मीडिया पर पत्थरबाजों को जुटा सकेंगे, क्या वहां आपकी ओर से भी गोबर और कीचड़ उछालने वाले तैनात हो सकेंगे, क्या आप गालीगलौज में सिद्धहस्त लोगों को इसके लिए तैयार कर सकेंगे। और हमारे भोपाल में तो गलियां भी खास प्रकार की है…
कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि कमलनाथ अभी तक अजेय भले ही रहे हों लेकिन लोगों ने राजनीतिक रूप से उनका सारा कौशल और मैनेजमेंट सिर्फ छिंदवाड़ा यानी एक लोकसभा क्षेत्र में ही देखा है। छिंदवाड़ा को मैनेज करने और पूरे मध्यप्रदेश को मैनेज करने में जमीन आसमान का अंतर है। उसी तरह दिल्ली और क्षेत्रीय मीडिया की तासीर में भी बहुत फर्क है।
अपने चहेते या मैनेज किए हुए पत्रकारों से लिखवाई गई खबर और सोशल मीडिया पर चलने वाली खबरों में भी ऐसा ही फर्क होता है। वो तो‘मीट द प्रेस’ में कमलनाथ के एक जवाब पर मीडिया का ज्यादा ध्यान नहीं गया, अन्यथा कोई सिरफिरा उसको जरा सा टि्वस्ट कर देता तो लेने के देने पड़ जाते। हुआ यूं था कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुए कमलनाथ ने व्यापमं का हवाला दिया और साथ ही वे मीडिया से यह भी कह गए कि ‘आप लोग उसे सही तरीके से समझ नहीं सके।‘
अब इस बात को दो तरह से तूल दिया जा सकता है। पहला यह कि कमलनाथ ने मध्यप्रदेश के मीडिया को नासमझ कहा। उनकी नजर में मध्यप्रदेश का मीडिया भ्रष्टाचार के गंभीर मुद्दे को सही तरीके से नहीं उठा पाया। और दूसरा अनर्थ यह कहते हुए किया जा सकता था कि कमलनाथ ने इशारा किया कि व्यापमं मामले में मध्यप्रदेश का मीडिया मैनेज हो गया।
मैं बार बार बदले हुए मीडिया की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि उस आयोजन में मैं जितनी देर बैठा मुझे वहां जरूरत से ज्यादा साफगोई से बात करने वाला नेता नजर आया। इतनी साफगोई आज के मीडिया को पचती नहीं है। उसके लिए यह ऐसा गरिष्ठ भोजन है जो उसका हाजमा बिगाड़ देता है। इस बिगड़े हुए हाजमे का ही परिणाम मंगलवार के अखबारों की हेडलाइन और सोशल मीडिया पर पिछले 24 घंटे से चल रही एक वीडियो क्लिप है।
वीडियो क्लिप में मैने जो देखा, उसमें संभवत: कमलनाथ ‘मीट द प्रेस’ की समाप्ति पर उठते-उठते किसी सवाल के जवाब में कह रहे हैं-देखिए शिवराजसिंह जी ने कहा वो मेरे मित्र हैं, पर कोई मित्र लायक होते हैं, कोई नालायक होते हैं… इसके बाद जोरदार ठहाके की आवाज गूंजती है। अब आप तो समझें होंगे कि आपने बहुत लाइट मूड में यह बात कही और उस पर ठहाका लग गया। लेकिन उसने आपकी पूरी बातचीत को धो कर रख दिया है।
मेरी बात गांठ बांधकर रखिएगा, यह ‘नालायक’ शब्द अब पूरे चुनाव भर आपके साथ वैसे ही चिपका रहेगा जैसा गुजरात चुनाव के दौरान मणिशंकर अय्यर का कहा ‘नीच’ शब्द कांग्रेस की चुनावी संभावना पर जोंक की तरह चिपक गया था। शिवराज ने बहुत चतुराई से उसका संयत जवाब देकर इसकी शुरुआत भी कर दी है।
कल भी ‘मीट द प्रेस’ के बहाने कमलनाथ और कांग्रेस के चुनाव अभियान पर थोड़ी और बात करेंगे…