पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से लेकर कांग्रेस पार्टी के कई दिग्गज नेता गुरुवार को जब टूजी घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा सारे आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले पर खुशी मनाते हुए मोदी सरकार और भाजपा पर आरोप मढ़ रहे थे, उसी समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस के एक विधायक को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए मीडिया की मदद लेना पड़ रही थी।
मामला मध्यप्रदेश विधानसभा के दिवंगत नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के बेटे हेमंत कटारे से जुड़ा है। पिता के निधन के बाद कांग्रेस ने भिंड जिले की अटेर विधानसभा सीट से हेमंत कटारे को टिकट दिया था और कटारे उपचुनाव में वहां से जीतकर आए हैं। वे पहली बार विधायक बने हैं और उनकी छवि अपने पिता की तरह ही एक जुझारू व्यक्ति की है।
किस्सा यह है कि हेमंत कटारे ने इलाके के पुलिस अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओपी) इंद्रवीरसिंह भदौरिया पर आरोप लगाया था कि वे रेत माफिया को संरक्षण दिए हुए हैं और उनसे अवैध वसूली करते हैं। कटारे ने इससे संबंधित एक स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो मुख्य सचिव को भी भेजा था। इस आरोप से बौखलाए भदौरिया ने कटारे को न सिर्फ एक मामले में आरोपी बना डाला बल्कि बगैर उच्च अधिकारियों को सूचना दिए, उन्हें फरार घोषित कर उनके खिलाफ कोर्ट में चालान भी पेश कर दिया।
अब इसे न्यायिक अधिकारी की सतर्कता कहिए या अफसरों व सत्तारूढ़ दल के बुरे दिनों की आहट कि न्यायालय ने केस से संबंधित कागजात देखने के बाद उस पर आपत्ति लेते हुए संबंधित चार्जशीट पुलिस को लौटा दी। अदालत ने पुलिस को इस बात के लिए फटकार भी लगाई कि उसने बगैर नियम प्रक्रियाओं का पालन किए मामला दर्ज कर लिया।
कटारे को जिस मामले में आरोपित किया गया वह खेरी गांव में किसी कल्याणसिंह जाटव के साथ हुई मारपीट का है। जब मामला पुलिस के उच्च अधिकारियों को पता चला तो एसपी ने केस की फाइल अपने पास बुला ली। उधर विभाग में भी हरकत हुई और आनन फानन में एसडीओपी इंद्रवीरसिंह को इलाके से हटाते हुए उन्हें पुलिस मुख्यालय में पदस्थ कर दिया गया।
जैसाकि तय था इस मामले पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया जताई। नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह ने हेमंत कटारे को साथ लेकर प्रेस कान्फ्रेंस की और आरोप लगाया कि राजनीतिक रूप से कमजोर होते जाने के कारण भाजपा बौखला रही है और कांग्रेस के नेताओं पर बदले की भावना से मामले दर्ज किए जा रहे हैं। हेमंत कटारे का आरोप था कि चूंकि उनके पिता ने सरकार के खिलाफ व्यापमं मामले को पूरी ताकत से उठाया था इसलिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
सवाल यह है कि भाजपा विपक्ष में रहते हुए जिन बातों को लेकर कांग्रेस की आलोचना करती रही है, क्या अब वह खुद ही उन्हीं रास्तों पर चल पड़ी है। सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं को बदनाम या प्रताडि़त करना सरकारों का पुराना हथकंडा रहा है। सरकार में दल कोई भी रहा हो ऐसे हथकंडों का इस्तेमाल वह हमेशा से करता आया है। हेमंत कटारे के मामले में भी यही बात दिखाई देती है।
लेकिन चाहे सरकार हो या राजनीतिक दल, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति सी-सॉ के खेल की तरह है। इसमें कभी कोई ऊपर तो कभी कोई नीचे आता ही है। ऊपर रहने वाला सत्ता में रहने के दौरान जैसे हथकंडे अपनाता है, उसे याद रखना चाहिए कि एक न एक दिन वैसा ही व्यवहार उसके साथ भी होगा। मध्यप्रदेश में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जो अच्छा संकेत नहीं है।
वह तो सराहना करनी होगी हमारे न्याय तंत्र की जिसने समय रहते मामले की नजाकत को भांप लिया और कटारे के खिलाफ चार्जशीट को लौटा दिया वरना आगे चलकर इस मामले में भी अदालत में पुलिस की वैसी ही फजीहत होनी थी जैसी टूजी मामले में हुई। चिंता की बात यह है कि जब एक विधायक के खिलाफ इस तरह की हरकत सरेआम हो सकती है तो फिर सामान्य आदमी के साथ क्या क्या नहीं होता होगा।
मध्यप्रदेश में रेत के अवैध कारोबार का मामला कोई नया नहीं है। प्रदेश के उन सभी इलाकों में जहां रेत उपलब्ध है, भ्रष्टाचार का पूरा अलग साम्राज्य विकसित हो गया है। इससे न सिर्फ अपराधी तत्व जुड़े हैं, बल्कि पुलिस, प्रशासन और राजनीतिक क्षेत्र के लोगों की भी इसमें सक्रिय भागीदारी है। यह अपराधियों का ऐसा गठजोड़ है जिसकी सरकार से अलग सत्ता चलती है।
सरकार ने नर्मदा और चंबल जैसी बड़ी नदियों से रेत के अवैध उत्खनन को रोकने के कई प्रयास किए हैं, लेकिन रेत के अवैध कारोबार से जुड़े माफिया ने हर बार सरकार को नीचा ही दिखाया है। चूंकि इसमें ऊपर से लेकर नीचे तक सबकी भागीदारी है, इसलिए जितनी कोशिश अपराधियों को पकड़ने की नहीं होती, उससे कहीं ज्यादा दबाव अपराधियों को न पकड़ने और पकड़ में आ जाने वाले लोगों को छुड़ाने में दिखाई देता है।
भिंड के जिस एसडीओपी के खिलाफ कार्रवाई की गई है उसके रेत माफिया से जुड़ा होने का सबूत देने वाला कथित वीडियो बहुत साफ साफ तरीके से पूरे अपराध तंत्र को उजागर करने वाला है। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि कार्रवाई का दिखावा करते हुए तंत्र ने उस अफसर को भी एक तरह से बचा लिया है। उस वीडियो के आधार पर दंडात्मक कार्रवाई को लेकर कोई सुगबुगाहट अभी तक नहीं है।
अगर हेमंत कटारे को आरोपी बनाने की गलती एसडीओपी से नहीं होती तो यह मामला दब ही गया होता। जरा सी चूक से मामला उजागर हुआ और सरकार को दिखावे के लिए कदम उठाना पड़ा। लेकिन सवाल यहां विपक्ष के एक विधायक को झूठे मामले में फंसाने भर का नहीं है, जो तंत्र सरेआम रेत के अवैध खनन में लगा हो, जिसकी रेत माफिया से खुली सांठगांठ हो उसे एक जिम्मेदारी से हटाकर दूसरी जगह भेज देना, अंतत: उसे संरक्षण देना ही है। इसी संरक्षण में भ्रष्टाचार बड़े आराम से फलफूल रहा है…