यानी आपकी ‘अयोध्‍या’ भी भेदियों से अछूती नहीं है!

मध्‍यप्रदेश में इन दिनों एक बड़ा मुद्दा अखबारों में लगातार छप रहा है। यह मुद्दा राज्‍य में आईएसआई के लिए काम करने वाले नेटवर्क के भंडाफोड़ और उससे जुड़े लोगों की लगातार हो रही गिरफ्तारियों का है। लेकिन इसी सिलसिले में सोमवार को मीडिया में आई एक दूसरी खबर ने मुझे और भी ज्‍यादा चौंका दिया।

खबर है कि सीबीआई ने छत्‍तीसगढ़ में प्रमुख सचिव स्‍तर के आईएएस अधिकारी बी.एल. अग्रवाल और उनके तीन सहयोगियों के खिलाफ केस दर्ज किया है। आरोप है कि अग्रवाल ने सीबीआई में चल रहे अपने पुराने प्रकरणों को रफा-दफा करवाने के लिए हैदराबाद के एक दलाल के जरिए पीएमओ के अफसरों से ड़ेढ करोड़ रुपये में कोई डील की थी। इस डील के तहत चार किस्तों में 60 लाख रुपये दिए जा चुके थे। पांचवीं किस्त में नकद के बजाय दो किलो सोना देना था और इसी दौरान सीबीआई ने आरोपियों को धर दबोचा।

बात को आगे बढ़ाने से पहले यह जान लें कि ये श्रीमान बी.एल. अग्रवाल कौन हैं? दरअसल जब 2010 में मध्‍यप्रदेश के बहुचर्चित आईएएस अधिकारी दंपती अरविंद जोशी और टीनू जोशी के यहां आयकर का छापा डला था, तो उसी समय छत्‍तीसगढ़ में बी.एल. अग्रवाल के यहां भी छापा मारा गया था। आयकर विभाग ने उनके ठिकानों और बैंक लॉकरों की जांच में 253 करोड़ की संपत्ति तथा 220 बैंक खाते मिलने की बात कही थी। उस वक्त अग्रवाल ने कहा था कि ये लॉकर्स उनके भाई के हैं। इन लॉकरों से बड़ी राशि और जेवर बरामद होने के बाद आयकर ने मामला सीबीआई को सौंप दिया था। अग्रवाल इसी मामले को सुलटवाने में लगे थे।

हालांकि इससे पहले वे अपने यहां डले छापे की कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दे चुके थे और वहां आयकर विभाग द्वारा बरामद की गई रकम आश्‍चर्यजनक रूप से सिर्फ 7.73 लाख रुपए ही बताए जाने के बाद, वे कोर्ट से बरी हो गए थे। लेकिन सीबीआई वाला मामला लटका रहा।

यह पूरा घटनाक्रम भले ही यह तय न करता हो कि अग्रवाल दोषी हैं या उन्‍हें इस मामले में फंसाया गया है, लेकिन इतना तय है कि वे कच्‍चे खिलाड़ी नहीं हैं। ऐसे में यदि सचमुच उन्‍होंने सीबीआई में लटका पड़ा मामला रफादफा करवाने के लिए किसी से सौदा किया होगा तो पूरा ठोक बजाकर ही किया होगा। क्‍योंकि इतनी बड़ी राशि का लेनदेन कोई यूं ही नहीं करता।

और यहीं से भाजपा के लिए गंभीर चिंता की बात शुरू होती है। यदि एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने अपना काम करवाने के लिए, यह देखते हुए किसी को पैसे दिए हैं कि उसकी प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच है और वहां के अफसरों के जरिये वह उनका काम करवा देगा, तो इसके दो ही मतलब निकलते हैं। पहला तो यह कि अब मोदी जैसे प्रधानमंत्री के कार्यालय में भी भ्रष्‍टाचार की गलियां खोज ली गई हैं या फिर यह कि प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम लेकर देश में बड़े-बड़े मामले रफा-दफा करवाने वाले गिरोह काम कर रहे हैं।

सवाल यह है कि मोदी जैसे सख्‍त और न खाऊंगा न खाने दूंगा के सिद्धांत पर चलने वाले प्रधानमंत्री की नाक के नीचे ऐसा कैसे संभव हैआखिर वे कौनसी वजहें हैं जिनके चलते यह धुंआ कहीं न कहीं आग के मौजूद होने का शक पैदा करवा रहा है।  

इससे पहले मध्‍यप्रदेश में फर्जी टेलीफोन एक्‍सचेंज के जरिए आईएसआई नेटवर्क के लिए काम करने वाले जिन आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, उनके भी संबंध राज्‍य में सत्‍तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से निकले हैं।

जो लोग अपराध को समाज की स्‍वाभाविक प्रवृत्ति मानने जैसा तर्क देते हैं उन्‍हें ध्‍यान रखना होगा कि ये सामान्‍य अथवा सहज मानवीय प्रवृत्ति के कारण होने वाले अपराध नहीं हैं, बल्कि सुनियोजित एवं संगठित तरीके से किए जाने वाले अपराध हैं। ऐसे अपराधों का तंत्र तभी विकसित हो पाता है जब समाज या व्‍यवस्‍था में उसके लिए अनुकूल माहौल या जगह मिले।

चाहे छत्‍तीसगढ़ का मामला हो या मध्‍यप्रदेश का, दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। एक जगह सरकार का सीनियर अफसर प्रधानमंत्री कार्यालय तक को आरोपों में लपेटता हुआ पकड़ा जाता है और दूसरी जगह उस पार्टी से जुड़े लोग देशविरोधी गतिविधियों में लिप्‍त पाए जाते हैं।

यानी मतलब साफ है। चाहे देश के भीतर का हो या देश के बाहर का, अपराध तंत्र ने भाजपा के नेटवर्क में घुसपैठ कर ली है और वह इस राजनीतिक जुड़ाव को अपने कवच के रूप में इस्‍तेमाल कर रहा है। इन दोनों मामलों में यह कहने से कोई बचत नहीं हो जाती कि अपराधियों को पकड़ लिया गया है। बल्कि चिंता की बात यह है कि आपकी सरकारों की छाया तले या आपका नाम लेकर ऐसे लोग पनप रहे हैं।

वजह चाहे जो भी हो, ऐसे अपराध और अपराधियों को अपने पनपने लायक अनुकूल माहौल मिल रहा है। अपराध हो जाने के बाद अपराधियों को पकड़ लेना अच्‍छी बात है, लेकिन उससे भी ज्‍यादा जरूरत इस बात की है कि अपराध के ऐसे तंत्र को पनपने ही न दिया जाए। अभी तो ऐसा लग रहा है कि भेदिये लंका में ही नहीं अब अयोध्‍या में भी पनप रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने हाल ही में संसद में यूपीए के भ्रष्‍टाचार को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि बाथरूम में रेनकेट पहनकर नहाने की कला कोई डाक्‍टर साहब से सीखे। मनमोहनसिंह रेनकोट पहनकर नहाए हों या नहीं, लेकिन क्‍या ऐसा नहीं लगता कि कुछ लोग भाजपा का रेनकोट पहनकर गंगास्‍नान जरूर कर रहे है।

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भूल चूक- कल के कॉलम में फणीश्‍वरनाथ रेणु की जिस कहानी का जिक्र हुआ उसका नाम ‘तीसरी कसम’ नहीं मारे गए गुलफाम था। तीसरी कसम फिल्‍म इसी कहानी पर आधारित थी। नाम में हुई इस चूक के लिए खेद है।

 

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