कभी कभी कुछ खबरें ऐसी होती हैं जिनका विषय तो कुछ और होता है लेकिन उनके बहाने निशाना बहुत मारक तरीके से किसी और पर लग जाता है। रविवार को ऐसी ही एक खबर दिखी जो कहती है कि सड़कों पर गलत दिशा से आने वाले लोग बड़ी संख्या में दुर्घटनाओ का कारण बन रहे हैं और ऐसी दुर्घटनाओं में प्रतिदिन 24 लोगों की जान जा रही है।
यह खबर पढ़ने के बाद मैं सोचने लगा कि क्या ऐसा सिर्फ हमारी सड़कों पर ही हो रहा है? मुझे तो लगता है कि जीवन के हर क्षेत्र पर यह बात लागू होती है। चाहे व्यक्ति हो या परिवार, समाज हो या देश, गलत दिशा से आने वाले लोग और गलत दिशा में ले जाने वाले लोग दुर्घटनाओं का सबब बन रहे हैं। गलत दिशा से आने वाले लोगों के कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वालों का आंकड़ा तो फिर भी सामने आ गया लेकिन देश की राह में गलत दिशा से आने वाले लोगों या उसे गलत दिशा में ले जाने वालों के कारण कितनी जिंदगियां तबाह हो रही हैं इसका कोई हिसाब ही नहीं है।
जिस खबर का मैंने जिक्र किया वह दरअसल 2018 की सड़क दुर्घटना रिपोर्ट है जिसे सड़क परिवहन मंत्रालय ने पिछले शुक्रवार को जारी किया। इसके मुताबिक 2018 में राजमार्गों पर गलत दिशा से आने वालों के कारण हुई दुर्घटनाओं के अलावा हादसों का दूसरा बड़ा कारण सड़क किनारे पार्क किए जाने वाले वाहन रहे हैं। इनकी वजह से 4800 लोगों की जानें गईं।
सड़क दुर्घटनाओं के कारण 2018 में डेढ़ लाख लोग मारे गए। दुर्घटनाओं के कारणों में सबसे बड़ा कारण वाहनों की अनियंत्रित गति रहा। इसकी वजह से 97588 लोगों की जान गई। गलत दिशा में वाहन चलाने से 8764 लोगों की, नशा करके गाड़ी चलाने से 4188 लोगों की, सड़क पर पार्क कर दिए गए वाहनों से टकराने के कारण 4780 लोगों की, मोबाइल पर बात करते हुए वाहन चलाने से 3707 लोगों की और रेड लाइट तोड़ने से 1545 लोगों की मौत हुई।
दुर्घटनाओं के इन आंकड़ों में ध्यान देने वाली बात यह है कि 2017 की तुलना में, हादसे के कुछ कारणों से मरने वालों की संख्या में, कमी आई है। जैसे अनियंत्रित गति से होने वाली दुर्घटनाओं के कारण मरने वालों की संख्या एक प्रतिशत कम हुई है तो नशा करके गाड़ी चलाने की वजह से हुई दुर्घटना में मरने वाले 12 फीसदी कम हुए हैं। इसी तरह गलत दिशा में वाहन चलाने और लाल बत्ती सिग्नल तोड़ने की वजह से होने वाले हादसों में मरने वालों की संख्या में क्रमश: 8 फीसदी और 15 फीसदी की कमी हुई है।
लेकिन दो क्षेत्र ऐसे हैं जिन्होंने 2017 की तुलना में 2018 में लोगों की ज्यादा जानें ली हैं। इनमें सड़क किनारे पार्क की जाने वाली गाडि़यों के कारण मारे जाने वाले लोगों की संख्या 106 फीसदी बढ़ी है तो मोबाइल पर बात करते हुए वाहन चलाने से हुई दुर्घटनाओं में 17 फीसदी लोग ज्यादा मारे गए। ये दोनों ही कारण इस मायने में चिंताजनक हैं क्योंकि एक तो मोबाइल हमारे जीवन का ऐसा हिस्सा हो गया है जिसे हम जान का खतरा मोल लेकर भी खुद से अलग नहीं करना चाहते। सड़क सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियों की तमाम चेतावनियों के बावजूद, मोबाइल पर बात करते हुए वाहन चलाने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
दूसरा बड़ा कारण सड़क किनारे वाहन पार्क किए जाने का है। विकास की गतिविधियां बढ़ने के चलते देश में बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय राजमार्गों का निर्माण हो रहा है। तमाम कमियों के बावजूद नए जमाने की सड़कें अधिक रफ्तार के लिए मुफीद होती हैं। चूंकि देश में समानांतर रूप से चार पहिया वाहनों की संख्या भी काफी बढ़ी है और लोग यातायात के अन्य साधनों के बजाय खुद के अथवा किराये के वाहनों से सड़क मार्ग से की जाने वाली यात्राओं को प्राथमिकता देने लगे हैं इसलिए सड़कों पर वाहन हादसे भी बढ़े हैं।
अकसर देखा गया है कि लंबी दूरी की यात्रा के दौरान लोग सुस्ताने के लिए अथवा और किसी काम के लिए सड़क किनारे वाहन पार्क कर लेते हैं। इनके अलावा मालपरिवहन में लगे ट्रक या ट्रॉलर ड्रायवर भी थकामन मिटाने अथवा वाहनों में आई खराबी ठीक करने के लिए उन्हें सड़क पर ही पार्क कर देते हैं। और ये ही वाहन तेज गति से चल रहे अन्य वाहनों के लिए दुर्घटना का बड़ा कारण बनते हैं। खासतौर से रात के समय ऐसी दुर्घटनाएं अधिक होती हैं।
दुर्घटनाओं के ये आंकड़े मध्यप्रदेश के लिहाज से भी चिंता में डालने वाले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में मध्यप्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं में 10706 लोग मारे गए। यानी हमारे यहां हर घंटे एक से अधिक व्यक्ति सड़क हादसों में मारा जा रहा है। सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्या के लिहाज से मध्यप्रदेश का स्थान देश में पांचवां है जबकि हादसों की संख्या के लिहाज से हम देश में दूसरे नंबर पर हैं। 2018 में राज्य में 51397 सड़क हादसे हुए।
शहरों की दृष्टि से देखें तो राजधानी भोपाल की सड़कें प्रदेश में सबसे ज्यादा जानलेवा साबित हुई हैं। देश के शहरों की सूची में सड़क दुर्घटनाओं के मामले में भोपाल का स्थान चौथा और इंदौर का पांचवां है। दोनों शहरों में 2017 की तुलना में 2018 में सड़क हादसे भी बढ़े हैं और मरने वालों की संख्या भी। भोपाल में 2017 में जहां 3393 हादसे हुए थे वहीं 2018 में 3508 हादसे हुए। 2017 में जहां राजधानी के सड़क हादसों में 252 लोग मारे गए थे वहीं 2018 में 327 लोग मारे गए। इसी तरह इंदौर में 2017 में जहां 3434 हादसे हुए थे वहीं 2018 में 4513 हादसे हुए। 2017 में जहां प्रदेश की इस व्यापारिक राजधानी के सड़क हादसों में 322 लोग मारे गए थे वहीं 2018 में 391 लोग मारे गए।
सड़क दुर्घटनाओं का कारण यातायात नियमों का पालन न करना तो है ही, इसके साथ ही हमारी बदलती जीवन शैली भी ऐसे हादसों को बढ़ावा दे रही है। वाहनों की तेज गति कई बार दिखावे या प्रतिस्पर्धा के कारण भी होती है। वहीं व्यक्तिगत मोर्चे से लेकर यातायात की जटिलताओं के चलते बढ़ता तनाव भी इस समस्या का एक बड़ा कारण है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जिन सड़कों को हमने आवागमन के लिए बनाया है उन पर कई लोग तनाव का बम लिए घूम रहे है, पता नहीं कब यह बम फट जाए और कौन इसका शिकार हो जाए…