वैसे तो यह भारत के किसी भी शहर की कहानी हो सकती है, लेकिन चूंकि खबर भोपाल के बारे में हैं और हम भी इसी शहर में बसते हैं,लिहाजा इस पर थोड़ी तफसील से बात करना जरूरी है। खबर यह है कि महिलाओं की सुरक्षा के मामले में भोपाल, संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था के सहयोग से कराए गए टेस्ट में खरा नहीं उतर सका है। और जब राजधानी का सूरते हाल यह है तो सवाल लाजमी है कि बाकी शहरों की गति क्या होगी?
लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को लेकर संयुक्त राष्ट्र की शाखा ‘यूएन वूमन’ के सहयोग से भोपाल में महिला सुरक्षा इंतजामों और मानकों को लेकर जो सुरक्षा ऑडिट किया गया है, वह कहता है कि राजधानी में स्ट्रीट लाइट और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में काफी सुधार की जरूरत है।
रिपोर्ट के मुताबिक वाणिज्यिक केंद्रों के आसपास बेतरतीब विकास और अतिक्रमण ने भोपाल को महिलाओं के लिए असुरक्षित बना दिया है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए मोबाइल एप्लीकेशन के अलावा सूर्यास्त के बाद कई इलाकों का रात दस बजे तक मैन्यूअल ऑडिट भी किया गया। ऑडिट से जुड़े लोगों का कहना है कि इस पूरी कवायद का उद्देश्य शहर में निकलने वाली महिलाओं व लड़कियों में सुरक्षा की भावना जगाना है।
ऑडिट में स्ट्रीट लाइट के बारे में कहा गया है कि इन्हें या तो सड़क के बीच में लगाया गया है या फिर सड़कों के एक ओर, इससे फुटपाथ पर रोशनी या तो रहती ही नहीं या फिर बहुत कम रहती है। सुरक्षा की भावना के लिहाज से रोशनी बहुत मायने रखती है। ऐसे में यदि सड़कों पर अंधेरा हो तो पैदल चलने वाले लोग खुद को हमेशा असुरक्षित महसूस करते हैं।
फुटपाथ को लेकर रिपोर्ट कहती है कि कई सड़कों पर फुटपाथ जैसी चीज ही नहीं है। पैदल चलने वालों के लिए जहां थोड़ी बहुत जगह है भी वह भी चलने लायक नहीं बल्कि उधड़ी हुई है। जहां फुटपाथ बने हैं, वे या तो वाहन पार्क करने के लिए घेर लिए गए हैं या फिर वहां साइन बोर्ड या कोई और अतिक्रमण कर लिया गया है।
एक और महत्वपूर्ण मामला दृश्यता (विजिबलिटी) का है। रिपोर्ट कहती है कि संस्थानों और सार्वजनिक भवनों की चारदीवारी बहुत ऊंची होने के कारण उनके आसपास होने वाली गतिविधियों पर नजर नहीं जा पाती। इससे वारदात होने का खतरा बना रहता है। ऑडिट में सुझाव दिया गया है कि ऐसी कोई भी बाउंड्री वॉल एक मीटर से अधिक ऊंची नहीं होनी चाहिए।
इसी तरह सार्वजनिक परिवहन को लेकर भी स्थिति संतोषजनक नहीं पाई गई है। ऑडिट के दौरान जिन स्थानों का अध्ययन किया गया वहां 33 फीसदी स्थानों पर 150 मीटर के रेडियस में बस स्टॉप पाया गया, जबकि 32 प्रतिशत स्थानों पर 400 मीटर के रेडियस में भी कोई बस स्टॉप नहीं था। सुझाव दिया गया है कि परिवहन सुविधाओं का उपयोग करने वाले लोगों के लिए अंतिम छोर तक बस स्टॉप जैसी व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ ही बस स्टॉप के निकट फुटपाथ और समुचित रोशनी का प्रबंध भी हो।
ऑडिट में स्ट्रीट लाइट के मामले में मौजूदा व्यवस्थाओं को तीन में से 1.6, फुटपाथ के संबंध में 1.4, दृश्यता के मामले में 1.1 और सार्वजनिक परिवहन के संबंध में तीन में से 1.3 अंक दिए गए हैं। ये अंक बताते हैं कि इन सभी मामलों में हालात अच्छे तो कतई नहीं कहे जा सकते।
दरअसल भोपाल का पिछले कुछ सालों में बहुत तेजी से विस्तार हुआ है। यहां नए नए कमर्शिलय सेंटर बने हैं और वहां लोगों की आवाजाही भी अच्छी खासी संख्या में होती है। लेकिन शहर का जिस गति से विस्तार हुआ है उस स्तर पर बुनियादी सुविधाओं का दायरा नहीं बढ़ा है। खासतौर से शहर के बाहरी इलाकों में बनी रिहायशी बस्तियों में न तो ठीक से सड़कें हैं और न ही स्ट्रीट लाइट जैसी व्यवस्था।
और यह अकेले भोपाल की ही हालत नहीं है, प्रदेश के कई शहरों के दायरे में लगातार विस्तार होता जा रहा है लेकिन उसके हिसाब से बुनियादी ढांचा अभी भी पुराना ही है। ऐसे मामलों में सबसे अधिक चिंता महिलाओं व बच्चों की सुरक्षा को लेकर ही होती है। चूंकि बढ़ती आबादी के हिसाब से पुलिस बल की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई है इसलिए कई इलाके तो पुलिस की नियमित निगरानी या गश्त से भी वंचित रहते हैं।
ऐसे सुनसान इलाकों में असामाजिक तत्वों की गतिविधियां खासी बढ़ जाती हैं। वहां से आए दिन किसी न किसी वारदात की खबर आती ही रहती है। स्थिति कितनी बिगड़ गई है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल में गत अक्टूबर माह में शहर के बीचोबीच, व्यस्ततम वाणिज्यिक एवं व्यावसायिक केंद्र महाराणा प्रताप नगर से कुछ ही दूरी पर कोचिंग से लौट रही एक लड़की का रेल पटरी के किनारे गैंग रेप हो गया था।
वह मामला तो उस लड़की की हिम्मत के चलते उजागर हो गया और दोषियों को सजा भी हो गई, लेकिन लड़कियों और महिलाओं को परेशान करने और उनसे छेड़खानी के दर्जनों मामले रोज होते हैं, जिनकी न तो कोई रिपोर्ट होती है और न ही उन पर कोई कार्रवाई होती है। ऐसी घटनाओं की शिकार लड़कियां भी झंझट से बचने के लिए चुपचाप इन अपराधों को सहन करती रहती हैं।
देखने सुनने में ये बहुत छोटी छोटी बातें लग सकती हैं लेकिन लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा करने के लिहाज से ये सभी बिंदु बहुत महत्वपूर्ण हैं। स्मार्ट सिटी की आपाधापी में नगर नियोजकों का फोकस दूसरी दिशाओं में तो जा रहा है, लेकिन जो आम इलाके हैं, जहां से रोज हजारों लाखों लोग गुजरते हैं, वहां बुनियादी जरूरतें भी न हो, यह तो नहीं चल सकता ना…