क्या महाविद्यालय और विश्वविद्यालय पुनर्गठित होंगे?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-दो (उच्च शिक्षा)

प्रो. उमेश कुमार सिंह

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के पहले भाग ‘स्कूल शिक्षा’ में इस नीति की प्रारंभिक बातों को आप सबने पढ़ा। अब देखें यह नीति ‘उच्च शिक्षा’ पर क्या कहती है-
सरकार का संकल्प– पहले समझें नीति क्या है? नीति अर्थात एक ‘विज़न’। यह शिक्षा के क्षेत्र में एक ‘दृष्टिपथ’ है। सामान्यत: दृष्टिपथ मार्गदर्शी होते हैं और आवश्यक नहीं कि उनका अक्षरशः पालन भी हो। यह सरकारों के संकल्प पर निर्भर करता है। इसलिए पिछली सरकारों की कई नीतियां संकल्प के भाव में लागू नहीं हो पाईं, किन्तु जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी कहते हैं कि ‘यह कोई सर्कुलर नहीं बल्कि महायज्ञ है।’ तो समझना होगा भारत सरकार इसे लागू करने को संकल्पित है। भारत सरकार की कैबिनेट ने इसे पास भी कर दिया है, विश्वास रखना होगा की संसद में पास होते ही राज्य अपनी विधान सभाओं में पास कर, जो उनके क्षेत्र का है वे लागू करेंगे, शेष भारत सरकार करेगी। माना जा सकता है की यह नीति कैलेंडर वर्ष 20-21 से अपने कुछ हिस्सों के साथ देश भर में लागू हो सकती है।

(नीति) दृष्टिपथ (vision) और उससे प्राप्ति क्या होगी –
दृष्टिपथ (vision) क्या है-“नए देश की नींव रखना और एक नई सदी तैयार करना। देश को ‘अच्छे छात्र और नागरिक’ देना। इसके लिए ‘नए शिक्षक’ तैयार करना। विद्यार्थियों को ‘अपनी जड़ों से भी जुड़ा ग्लोबल सिटीजन’ बनाना।’’

जरा नए देश और नई सदी को भी समझते चलें- एक ओर हम अपनी प्राचीनत़ा पर गर्व करते हैं तो दूसरी ओर नए देश की बात करते हैं? प्रश्न स्वाभाविक है किन्तु इसका उत्तर भी इसी नीति में और प्रधानमंत्री जी के उद्बोधन में आया है,“देश को अच्छे विद्यार्थी और नागरिक देना। जो अपनी जड़ों (सनातन संस्कृति) से भी जुड़ा हो और ग्लोबल सिटीजन (वसुधैव कुटुम्बकम) भी हो।’’ यह ‘नित्य नूतन चिर पुरातन’ की कल्पना है। अर्थात भारत अपनी शिक्षा के माध्यम से सभी क्षेत्रों में ‘नवीन ऊर्जा के साथ नई सदी का ‘जगत गुरु’ बने।’

नीति से उठते कुछ प्रश्र-
नीति-2020 और पुरानी नीतियों में अंतर क्या है? क्या इससे शिक्षा का भगवाकरण होगा? क्या राज्यों के अधिकार कम होंगे? क्या शिक्षा का क्षेत्र सीमित हो जायेगा? क्या घोषित बज़ट प्राप्त हो सकेगा? क्या शिक्षा का व्यवसायीकरण बढेगा? क्या महाविद्यालय और विश्वविद्यालय पुनर्गठित होंगे? क्या यह शिक्षा स्वावलंबी और रोजगारमुखी सिद्ध होगी, रोजगार के कितने अवसर मिलेंगे?

क्या यह नई सदी की चुनौतियों समूचे समाज की आकांक्षाओं, आग्रहों और सोच को संतुष्ट कर पाएगी? त्रिभाषा फार्मूले का क्या होगा?  क्या प्रत्येक तकनीकी, गैर-तकनीकी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सभी मनचाहे विषय पढ़ाने वाले शिक्षक होंगे? क्या विदेशी विश्वविद्यालयों का हस्तक्षेप बढेगा यदि हाँ तो इसे कैसे रोका जायेगा? विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश से स्वदेशी विश्वविद्यालयों का भविष्य क्या होगा? क्या इससे अमीर-गरीब के बच्चों की खाई खत्म होगी?

महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में ऑटोनोमी किस स्तर तक रहेगी? पाठ्य सामग्री निर्माण और परीक्षा संचालन में कितनी ऑटोनोमी रहेगी? बनने वाले विभिन्न आयोग/परिषदें इन सब बातों को किस प्रकार नियंत्रित कर पाएंगे? क्या विश्वविद्यालयों को परीक्षा से मुक्त कर केवल शोध के लिए आगे बढ़ाया जायेगा या पुरानी व्यवस्था अनुसार दोनों काम एक साथ चलेंगे? क्या शिक्षकों की भर्ती के लिए कोई राष्ट्रीय आयोग बनेगा, या सभी प्रदेश और विश्वविद्यालय स्वयं भर्ती करेंगे?

क्या मेरिट के आधार पर प्रवेश बंद हो जायेंगे? सभी विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा कैसे सम्भव होगी? क्या विद्यालयीन शिक्षा की तरह शासकीय/अशासकीय शिक्षकों के लिए नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फॉर टीचर्स शिक्षा नीति ‘नेशनल काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (NCTE)’ की तरह एक समान मानक तैयार होगा? क्या नेशनल ‘प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फॉर टीचर्स’ का पैरामीटर यहाँ भी होगा? पूरे देश में ‘एक जैसे शिक्षक और एक जैसी शिक्षा’ पॉलिसी पर काम किस तरह किया जायेगा? क्या विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को भी 360 डिग्री होलिस्टिक रिपोर्ट कार्ड’ दिया जाएगा? क्या इसके द्वारा विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को ‘बोर्ड ऑफ़ गवर्नर’ के जि़म्मे झोंक दिया जायेगा? ऐसे अनेक प्रश्न हैं।

प्रश्नों के समाधान तथा अपेक्षित परिणामों हेतु नीति को देखना होगा–
NEP-2020 में ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ (Ministry of Human Resource Development-MHRD) अब ‘शिक्षा मंत्रालय’ (Education Ministry) हो गया है। ‘शिक्षा मंत्रालय’ करने का उद्देश्य ‘शिक्षा और सीखने’ (Education and Learning) पर पुन: अधिक ध्यान आकर्षित करना है। नीति में शिक्षा की पहुँच,  समानता, गुणवत्ता, वहनीय शिक्षा और उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। इस शिक्षा नीति में छात्रों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय और नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया है। ‘चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा’ को छोडक़र पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एकल निकाय के रूप में ‘भारत उच्च शिक्षा आयोग’ (Higher Education Commission of India-HECI) होगा।

वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा में नामांकन अनुपात प्रतिशत (GER (Gross Enrolment Ratio) 50 फीसदी पहुँचाने का लक्ष्य है, जो कि वर्ष 2018 में 26.3 प्रतिशत था। इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा। यूनिवर्सिटी एंट्रेंस एग्जाम्स के लिए (एन.टी.ए) ‘नेशनल टेस्टिंग एजेंसी’ एक हाई क्वालिटी ‘कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट’ आयोजित करेगी, जिसके माध्यम से स्टूडेंट्स का चयन होगा। कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट के साथ ही स्पेशलाइज्ड कॉमन सब्जेक्ट एग्जाम्स जैसे साइंस, ह्यूमैनिटीज़,  आर्ट्स, वोकेशनल सब्जेक्ट्स आदि भी एन.टी.ए. ही आयोजित करेगी।

नीति में ‘मल्टीपल एंट्री और एग्जिट ऑप्शंस’ को शामिल किया गया है। इसके तहत ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि विभिन्न कोर्सेस के किसी भी स्टेज पर स्टूडेंट अपनी एलिजबिलिटी और च्वॉइस के हिसाब से कोर्स ज्वॉइन कर लें या कोई खास स्टेज पूरा होने पर उसे वहीं छोड़ दें। विद्यार्थी के पाठ्यक्रम के क्रेडिट को ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स’ के माध्यम से सुरक्षित स्थानान्तरित किया जाएगा। इस शिक्षा नीति में ‘स्पेशली ऐबल्ड स्टूडेंट्स’ के लिए विशेष प्रबंध किए जाएंगे, जिसके अंतर्गत फंडामेंटल स्टेज से लेकर हायर एजुकेशन तक हर स्टेज पर उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इसमें टेक्नोलॉजी बेस्ड टूल्स, सपोर्ट मैकेनिज्म, रिसोर्स सेंटर का निर्माण, असिस्टिव डिवाइसेस का प्रबंध आदि शामिल होगा।

‘इंडियन साइन लैंग्वेजेस’ को अब पूरे भारत में मानकीकृत किया जाएगा। इसके लिए देश और राज्य के स्तर पर और ‘स्टडी मैटीरियल’ बनाया जाएगा ताकि वे विद्यार्थी जिन्हें सुनने में समस्या है, इसका इस्तेमाल कर पर्याप्त मैटीरियल के साथ अपनी पढ़ाई आसानी से कर सकें। शिक्षा, मूल्यांकन, योजनाओं के निर्माण और प्रशासनिक क्षेत्र में तकनीकी के प्रयोग पर विचारों के स्वतंत्र आदान-प्रदान हेतु ‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’ (National Educational Technology Forum- NETF) नामक एक स्वायत्त निकाय की स्थापना की जाएगी।

भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिये एक ‘भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान’ (Indian Institute of Translation and Interpretation-IITI), ‘फारसी, पाली और प्राकृत के लिये राष्ट्रीय संस्थान (या एकाधिक संस्थान)’  [National Institute (or Institutes) for Pali, Persian and Prakrit] स्थापित करने के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों में भाषा विभाग को मज़बूत बनाने एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन के माध्यम के रूप में मातृभाषा/स्थानीय भाषा को बढ़ावा दिये जाने का सुझाव है।

उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा की बाध्यता नहीं होगी। नेशनल साइंस फाउंडेशन के तर्ज पर ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ लाया जाएगा जिससे पाठ्यक्रम में विज्ञान के साथ सामाजिक विज्ञान को भी शामिल किया जाएगा। देश में आई.आई.टी (IIT) और आई.आई.एम. (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Research Universities- MERU) की स्थापना की जाएगी।

ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NTTF) बनाया जायेगा, जिसके लिए ‘वर्चुअल लैब’ विकसित की जा रही हैं। तकनीकी शिक्षा, भाषाई बाध्यताओं को दूर करने, दिव्यांग छात्रों के लिये शिक्षा को सुगम बनाने आदि के लिये तकनीकी के प्रयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है।

एजुकेशन मिनिस्ट्री, ‘नेशनल कमेटी फॉर द इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन’  (NCIVE)  का निर्माण करेगी ताकि भारत में जरूरी ‘वोकेशनल नॉलेज’ को ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा सके। इसे ‘लोक विद्या’ नाम दिया गया है। वर्तमान समय में ऑनलाइन एजुकेशन और बढ़ते हुए ई-कंटेंट की लोकप्रियता और उपयोगिता को देखते हुए अब ई-कंटेंट केवल हिंदी और इंग्लिश भाषा में नहीं बल्कि फिलहाल 8 मुख्य क्षेत्रीय सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में उपलब्ध कराया जायेगा ।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ‘एक्सटर्नल कमर्शियल बोर्रोविंग और विदेशी निवेश (एफडीआई)’ के लिए कदम उठाए जाएंगे। सरकार युवा इंजीनियरों को इंटर्नशिप का अवसर देने के शहरी स्थानीय निकायों के साथ कार्यक्रम शुरू करेगी। साथ ही ‘राष्ट्रीय पुलिस यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी’ का भी विचार है। वहीं टॉप 100 यूनिवर्सिटीज पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम शुरू सकेंगी ।

तब और अब में प्रमुख परिवर्तन क्या हैं-
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग समाप्त होगा। HECI के कार्यों के प्रभावी और प्रदर्शितापूर्ण निष्पादन के लिये चार संस्थानों/निकायों का निर्धारण किया गया जायेगा। महाविद्यालयों की संबद्धता 15 वर्षों में समाप्त हो जाएगी और उन्हें क्रमिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिये एक चरणबद्ध प्रणाली की स्थापना की जाएगी।

एम.फिल.को समाप्त किया जायेगा। अब अनुसंधान में जाने के लिये तीन साल के स्नातक डिग्री के बाद एक साल स्नातकोत्तर करके पी.एचडी. में प्रवेश लिया जा सकता है। जो छात्र इंजीनियरिंग कर रहे हैं वह संगीत को भी अपने विषय के साथ पढ़ सकते हैं। संस्थानों को उनके प्रमाणन के आधार पर फीस की एक उच्चतर सीमा तय करने का पारदर्शी तंत्र विकसित किया जाएगा। जिससे निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्धारित सभी फीस और शुल्क पारदर्शी रूप से लिए जाएंगे और किसी भी छात्र के नामांकन के दौरान फीस/शुल्क में कोई मनमानी वृद्धि नहीं होगी।

नयी शिक्षा नीति-2020 का सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट है ‘मल्टीपल एंट्री और एग्जि़ट सिस्टम’ लागू होना। अभी यदि कोई छात्र तीन साल इंजीनियरिंग पढऩे या छह सेमेस्टर पढऩे के बाद किसी कारण से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाता है तो उसको कुछ भी हासिल नहीं होता है। लेकिन अब मल्टीपल एंट्री और एग्जि़ट सिस्टम में एक साल के बाद पढ़ाई छोडऩे पर सर्टिफिक़ेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद पढ़ाई छोड़ने के बाद डिग्री मिल जाएगी। अगर कोई छात्र किसी कोर्स को बीच में छोडक़र दूसरे कोर्स में एडमिशन लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकता है और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकता है और इसे पूरा करने के बाद फिर से पहले वाले कोर्स को जारी रख सकता है। इससे देश में ‘ड्राप आउट रेश्यो’ कम होगा।

विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, जिससे अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके। नई एजुकेशन पॉलिसी-2020 में सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटीज, डीम्ड यूनविर्सिटी और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए समान नियम होंगे। देश में शोध और अनुसन्धान को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका के NSF (नेशनल साइंस फाउंडेशन) की तर्ज पर एक ‘नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन (NRF)’ की स्थापना की जाएगी। NRF का उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध-संस्कृति को बढ़ावा देना है। यह स्वतंत्र रूप से सरकार द्वारा, एक बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स द्वारा शासित होगा और बड़े प्रोजेक्टों की फाइनेंसिंग करेगा।

तात्पर्य यह कि-
प्रथम दृष्टया इतनी बनने वाली परिषदें और संस्थानों ने यदि अपने निर्माण से लेकर नीति के क्रियान्वयन पर जोर दिया तो परिणाम अवश्य निकलना चाहिए। किन्तु जिस तरह से आयोग और परिषदें बन रही हैं क्या 6 प्रतिशत का ज्यादा हिस्सा इन्हीं के स्थापना मद में नहीं जायेगा? इन सभी का नियामक क्या आय.ए.एस. होगा? या सभी अपने में स्वतंत्र और शिक्षाविदों से नियंत्रित होंगे? क्या प्रदेशों में उच्च शिक्षा और तकनीकी, चिकित्सा शिक्षा भी आय.ए.एस. मुक्त होकर तज्ञ प्रतिभाओं के हाथ होगा? यह बिंदु इतना महत्वपूर्ण है कि सम्पूर्ण नीति का धरती पर उतरना इसी पर निर्भर होगा।

वास्तविकता यह है कि सम्पूर्ण शिक्षा हर छह महीनों में बदलने वाले आय.ए.एस. के हाथों की कठपुतली बन कर रह जाती है! अभी तक का यह कटु अनुभव है ।

‘पढ़ाई ही नहीं, वर्किंग कल्चर को डेवलेप किया जायेगा’, ‘व्हाट टू थिंक’ से ‘हाऊ टू थिंक’ की पद्धति के साथ पढ़ना है। शिक्षा में आधुनिक तकनीक के साथ व्यक्तित्व निर्माण (शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास) होगा। संगीत, खेल, योग आदि को मुख्य पाठ्यक्रम में ही जोड़ा जाएगा। यदि ऐसा होता है तो अपनी जड़ों से जुड़ा विश्वमानव तैयार होगा। इसके लिये शिक्षा में ऑटोनामी रहेगी। ‘टैलेंट-टेक्नोलॉजी’ से गरीब व्यक्ति को बढऩे का मौका प्राप्त होगा।

लेकिन इसमें जिन शिक्षकों और कुलपतियों, अध्यन मंडलों की (पाठ्य निर्माण में) भूमिका रहेगी उनके नियुक्ति और निर्माण में क्या कोई परिवर्तन आयेगा स्पष्ट नहीं है। क्या भारत के विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों के अखिल भारतीय स्तर पर और कर्मचारियों के प्रदेश स्तर पर स्थानान्तारण किये जायेंगे?  क्या प्रायवेट महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की तरह शिक्षकों की नियुक्ति उनकी सतत योग्यता के आधार पर अनियतकालीन नहीं होनी चाहिए?  एक यक्ष प्रश्न कि कर्मचारी से कुलसचिव और प्राध्यापक से कुलपति, प्राध्यापक से प्राचार्य के बीच की दिशा-दृष्टि समवेत कैसे होगी? सरकारी तंत्र से कितनी अपेक्षा की जा सकती है यह सुधी जन निर्णय लें।

महाविद्यालयों की संबद्धता 15 वर्षों में समाप्त हो जाएगी और उन्हें क्रमिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिये एक चरणबद्ध प्रणाली की स्थापना की जाएगी। लेकिन जब नीति ही दस वर्ष की होगी तो इसकी गारंटी कौन लेगा? फिर विश्व विद्यालयों की आमदनी का क्या होगा? क्या विद्यालयीन शिक्षा की तरह महाविद्यालय और विश्वाविद्यालयों में भी छात्र–शिक्षक अनुपात 30:1 और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में छात्र–शिक्षक अनुपात 25:1 तय किया जायेगा? क्या यहाँ भी हेल्थ कार्ड इश्यू होगा जिससे उनकी सेहत की मॉनीटरिंग की जा सके?

क्या महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में भी 360 डिग्री होलिस्टिक रिपोर्ट कार्ड दिया जाएगा जिसमें सब्जेक्ट्स मार्क्स के साथ दूसरी स्किल्स और मजबूत बिंदुओं को रिपोर्ट कार्ड में जगह दी जाए। क्‍या अयोग्य शिक्षक हटाए जाएंगे? राजनीतिक सुविधाओं को देखते हुए राज्य सरकारों द्वारा खोले गए महाविद्यालय क्‍या बंद किए जाएंगे?  स्थायी चयनित शिक्षक स्तरहीन हैं यह कैसे पहचाना जायेगा?

उच्चतर प्रदर्शन करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को अन्य देशों में परिसर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसी तरह दुनिया के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों को भारत में संचालन की अनुमति दी जाएगी। इसके लिए एक वैधानिक फ्रेमवर्क तैयार किया जाएगा। इसमें भारतीय विश्वविद्यालय कहां ठहरेंगे? एक बात और, विदेशी विश्वविद्यालयों में अर्जित किए गए क्रेडिट देश में मान्य होंगे और यदि वह उच्चतर शिक्षण संस्थान की आवश्यकताओं के अनुसार हैं तो इन्हें डिग्री प्रदान करने के लिए भी स्वीकार किया जाएगा।

कुल मिलकर अनेक किन्तु परन्तु के बाद भी यदि इन सब बातों पर व्यावहारिक चिंतन कर केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा अपने-अपने हिस्से को लागू किया जाता है तो इस नीति से शिक्षा में ही नहीं राष्ट्रीय चिंतन में बड़ा बदलाव आने वाला है। इसमें व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दिया गया है, जिससे विद्यार्थी पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होंगे। प्रत्येक विद्यार्थी को नौकरी व स्वरोजगार के लिए पूर्ण प्रशिक्षण देने का भी प्रावधान है। इससे आने वाले समय में देश से बेरोजग़ारी खत्म होगी और अच्छे नागरिक प्राप्त होंगे, जिनके अंदर विश्वमानव बनाने की क्षमता होगी।

इस शिक्षा नीति में स्पष्टता से यह कहीं नहीं आया कि संस्थानों में आरक्षण का क्या होगा? साथ ही बिना भगवाकरण के आरोप के यदि यह शिक्षा नीति प्रभावी और परिणामकारी हो कर सामने आ पाती है तो निश्चित ही परिवर्तन होगा।

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