अरुण पटेल
कोरोना महामारी की जंग में भारत सरकार के सबसे कारगर हथियार लॉक डाउन में पहले ही पटरी से उतर रही आर्थिकी को क्या मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा श्रम कानूनों में जो बड़े बदलाव किए गए वह उद्योग जगत को राहत दे पायेंगे? यह एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर आने वाले कुछ माहों के बाद ही पता चल सकेगा। वैसे प्रदेश सरकार ने इस दिशा में जो सकारात्मक प्रयास किए हैं उसका आमतौर पर स्वागत किया गया है, लेकिन इसने एक आशंका को भी जन्म दिया है कि ये केवल मालिकों के हितों की रक्षा में सुरक्षा कवच का काम तो नहीं करेंगे?
श्रमिकों के मन में भी यह आशंका घर कर रही है कि इससे कहीं उनके शोषण के नये दरवाजे तो नहीं खुल जायेंगे और उद्योग इस स्थिति का कोई नाजायज फायदा तो नहीं उठायेंगे। कांग्रेस का केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों पर यह आरोप रहा है कि वह मजदूरों-किसानों की नहीं बल्कि चुनिंदा उद्योगपतियों की परवाह करती है। ऐसे हालात में शिवराज का यह दायित्व हो जाता है कि इस प्रकार की जो शंकायें उठ रही हैं उनका समाधान किया जाए ताकि श्रमिक चिंतामुक्त होकर पूरे मनोयोग से अपने काम में भिड़ जायें। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कहना है कि नये श्रम कानूनों से मजदूरों का शोषण होगा।
जहां तक उद्योग जगत से जुड़े लोगों का सवाल है उन्होंने श्रम कानूनों का स्वागत किया है। वहीं भेल कर्मचारी ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष राम नारायण गिरी का मानना है कि सरकार के एकतरफा निर्णय लेने से श्रमिकों में असंतोष पैदा होता है। जो बदलाव किए गए उनके बारे में भी श्रमिकों से बात नहीं की गयी। उन्होंने जो कहा उसका आशय यही है कि बदलाव के पूर्व श्रमिकों को विश्वास में लिया जाना चाहिए था। लेकिन इस समय लॉक डाउन के हालात में ऐसा करना शायद आसान नहीं होता।
अब चूंकि यह संशोधन हो चुका है इसलिए सरकार को चाहिए कि वह विभिन्न श्रमिक संगठनों व श्रमिक नेताओं को विश्वास में ले, वहीं उद्योग चलाने वाले नियोक्ताओं को भी कहे कि वे अपने श्रमिकों को भरोसे में लेकर उनकी शंकाओं का जल्द से जल्द निराकरण करें, ताकि जिस मंशा से श्रम सुधार किए गए हैं वह पूरी हो सके।
फिक्की स्टेट कौंसिल के अध्यक्ष दिनेश पाटीदार का दावा है कि श्रम सुधारों का सरलीकरण करने से न केवल उद्योगपतियों को बल्कि श्रमिकों को भी फायदा मिलेगा। जो कंपनियां मध्यप्रदेश में निवेश की इच्छुक हैं उन्हें भी इसका लाभ मिलेगा। भोपाल मैनेजमेंट ऐसोसिएशन के उपाध्यक्ष आर.जी. द्विवेदी ने सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए बदलाव का समर्थन करते हुए इसे प्रगतिशील करार दिया है। उनको भरोसा है कि इससे जो उद्योग चीन से बाहर निकलना चाहते हैं उन्हें राज्य में लाने में मदद मिलेगी और नये रोजगार का सृजन होगा।
औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप ऐसोसिएशन आफ आल इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष राजीव अग्रवाल को भरोसा है कि सरकार ने जो घोषणाएं की हैं उसके निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे। मजदूरों को काम मिलने से पलायन रुकेगा। चूंकि उद्योग जगत श्रम कानूनों को श्रमिकों के हित में और रोजगार सृजन वाला मान रहा है तो उसे भी आगे आकर अपने उद्योग और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि उनके हित पूरी तरह सुरक्षित हैं।
दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने आशंका प्रकट की है कि उद्योगों को गति देने के बहाने शिवराज सिंह उद्योगपतियों के हित में निर्णय लेकर मजदूर व श्रमिक विरोधी नियमों को राज्य में लागू कर रहे हैं। दिग्विजय ने शिवराज को लिखे एक पत्र में कहा है कि आपने उद्योगों और कारखाना श्रमिकों के काम का समय आठ घंटे से बढ़ाकर बारह घंटे करने का फैसला किया है। यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानूनों के विरुद्ध होने के साथ ही साथ अमानवीय भी है।
सिंह के अनुसार राज्य शासन द्वारा ऐसा फैसला लेने से श्रमिक वर्ग के शोषण के साथ ही उनके मानव अधिकारों का उल्लंघन भी होगा। दिग्विजय ने यह भी जानना चाहा कि क्या मजदूर विरोधी ऐसे फैसले लेने से पहले आपने श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों से कोई चर्चा की थी। आश्चर्य है कि 6 मई 2020 को प्रदेश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों से चर्चा कर ली गई थी और उनकी इच्छा के अनुसार ही नियम व निर्देश बदलने का फैसला किया गया, परन्तु किसी भी श्रमिक संगठन से इतने बड़े फैसले को करने के पूर्व चर्चा करना तक उचित नहीं समझा और उनकी सहमति के बगैर अन्यायपूर्ण कानून लाद दिया गया।
औद्योगिक विवाद अधिनियम को भी 100 मजदूरों की जगह 300 मजदूरों पर लागू कर दिया है जिससे मजदूरों के हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने सुझाव दिया कि मजदूरों का शोषण करने वाली व्यवस्था से बचाने के लिए श्रमिक संगठनों से चर्चा की जाए और काम के घंटे बढ़ाने के निर्णय पर पुनर्विचार कर युक्तियुक्त किया जाए। इसके साथ ही उन सब नियमों को वापस लिया जाए जिनकी आड़ में उन्हें बलपूर्वक काम करने को मजबूर किया जायेगा।
उल्लेखनीय है कि शिवराज सरकार ने आगामी 1000 दिनों के लिए सरकार का जो एक्शन प्लान घोषित किया है उसके अनुसार अब उद्योग संचालक अपने हिसाब से शिफ्ट तय कर सकेंगे और फैक्ट्री लायसेंस का पुनर्नवीनीकरण एक साल की बजाए दस साल में होगा। फेसबुक लाइव के जरिए बदलावों की जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रदेश में दुकानें सुबह 8 बजे से रात 12 बजे तक खोलने की मंजूरी दे दी गयी है। कोरोना के दौरान कारखानों में काम करने की अवधि आठ घंटे से बढ़ाकर बारह घंटे कर दी गयी है बशर्ते कि श्रमिक काम करना चाहे। अठारह प्रकार के पंजीयन एक ही दिन में होंगे। श्रमिकों को 72 घंटे का ओवर टाइम में भी मिलेगा।
इंस्पेक्टर राज से भी छूट दे दी गयी है और अब इंस्पेक्टर जांच पड़ताल करने नहीं जायेगा। 61 की बजाए एक रजिस्टर और 13 की बजाय एक रिटर्न भरना होगा। श्रमिकों को ओवरटाइम देने का प्रावधान किया गया है इसलिए पैसे की तंगी से जूझ रहे श्रमिकों को कुछ अतिरिक्त आय का रास्ता भी खोल दिया गया है। श्रम कानूनों में जो बड़े बदलाव किए गए उनके अनुसार अब ठेकेदारों, दुकानों, बीड़ी निर्माताओं का पंजीयन केवल एक दिन में किया जायेगा। इसके पूर्व विभिन्न श्रम कानूनों के तहत पंजीयन 30 दिन में किया जाता था। लोक सेवा गारंटी अधिनियम में भी संशोधन कर दिया गया है और जो अधिकारी एक दिन में पंजीयन नहीं करेगा उसे जुर्माना भरना होगा और जुर्माना हर्जाने के रुप में पंजीयन कराने वाले को दिया जायेगा।
पचास से कम श्रमिक वाली संस्थाओं को विभिन्न श्रम कानूनों के तहत निरीक्षण से बाहर कर दिया गया है। म.प्र. औद्योगिक अधिनियम के प्रावधानों को आगामी आदेश तक शिथिल कर दिया गया है। श्रमिक संगठन तथा कारखाना प्रबंधक अपनी सुविधा अनुसार विवादों का निराकरण कर सकेंगे और अब श्रम न्यायालय जाने की जरुरत नहीं है। पूर्व से चल रहे उद्योगों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम की दंड की धाराओं में कम्पाउंडिंग का प्रावधान किया जा रहा है ताकि विवादों का निराकरण बिना न्यायालय जाये किया जा सके, इस प्रस्ताव को भारत सरकार को भेजा जा रहा है।
और यह भी
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा चिंतक रघु ठाकुर ने कहा है कि उद्योग जगत की मंदी दूर करने के नाम पर शिवराज सरकार ने अदूरदर्शितापूर्ण कदम उठाये हैं जो भ्रष्टाचार बढ़ायेंगे और मजदूर विरोधी साबित होंगे। पचास से अधिक मजदूरों वाले उद्योगों को श्रम कानूनों की निरीक्षण परिधि से बाहर करना एक ओर जहां मजदूरों को बंधुआ बनायेगा वहीं दूसरी ओर संविधान की भावना के विपरीत होगा। इससे छोटे उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों का शोषण बढ़ जायेगा।
फैक्ट्रियों में थर्ड पार्टी निरीक्षण की व्यवस्था से भ्रष्टाचार का एक नया काउंटर खुल जायेगा और इसमें केवल इतना अंतर होगा कि सरकारी कर्मचारी की जगह पैसा उद्योगपतियों के चहेतों की जेब में चला जायेगा। अच्छा होता कि सरकार श्रम अधिकारी, मजदूर नेता और सामाजिक कार्यकर्ता की समिति बनाकर उसे जांच का काम सौंपती। इन तथाकथित सुधारों को मुख्यमंत्री वापस लें और पुनर्विचार करें ताकि मजदूर सुरक्षित रहें और उद्योगों को भी सुविधा हो।
————————————-
निवेदन
कृपया नीचे दी गई लिंक पर क्लिक कर मध्यमत यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।
https://www.youtube.com/channel/UCJn5x5knb2p3bffdYsjKrUw
टीम मध्यमत