भोपाल/ मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव की सुगबुगाहट से पहले शिवराज सरकार ने मतदाताओं को लुभाने के लिहाज से एक बड़ा फैसला किया है। इस फैसले के तहत यदि किसी व्यक्ति ने अपने प्लॉट पर निर्धारित FAR (फ्लोर एरिया रेश्यो) से 30 फीसदी से अधिक निर्माण कर लिया है, तो उसे वैध कराया जा सकेगा। इसके साथ ही शिवराज कैबिनेट ने प्रदेश की 6,876 अवैध कॉलोनियों को वैध करने संबंधी विधेयक अध्यादेश के माध्यम से लागू करने की भी मंजूरी दे दी है, जल्दी ही इसके नियम जारी किए जाएंगे।
नगरीय क्षेत्रों में 30 फीसदी अवैध निर्माण को कंपाउंडिंग के जरिये वैध करने का सरकार का फैसला ऊपरी तौर पर भले ही राहत देने वाला लग रहा हो लेकिन कोरोना काल में यह प्रदेश के नगरीय निवासियों के लिए बहुत बड़ा आर्थिक धक्का साबित हो सकता है। सरकार के फैसले में राहत की बात यह बताई जा रही है कि अब तक सिर्फ 10 फीसदी अवैध निर्माण को ही कंपाउंडिग फीस देकर वैध कराया जा सकता था। नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने अवैध निर्माण पर कंपाउंडिंग की व्यवस्था को 10 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करने का प्रस्ताव किया था लेकिन चर्चा के बाद इसे 30 फीसदी तक बढ़ा देने का फैसला हुआ। इसका मतलब ये हुआ कि अब एक निश्चित शुल्क देकर कोई भी व्यक्ति अपने प्लॉट पर निर्धारित नक्शे से 30 फीसदी अधिक तक के अवैध निर्माण को भी वैध करा सकेगा।
दरअसल नगरीय प्रशासन विभाग ने अपने सर्वे में पाया था कि अधिकतर मकानों में नक्शे या FAR से ज्यादा निर्माण किया गया है। वर्ष 2017 में इस समस्या पर विचार के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी जिसने सिफारिश की थी कि अवैध निर्माण को वैध करने की सीमा बढ़ा दी जाए। अब सरकार ने इस पर फैसला तो कर लिया है लेकिन इस बात की आशंका है कि इसके बाद नगरीय निकायों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई से लोगों की मुसीबत बढ़ सकती है। कोरोना काल में जहां वैसे ही लोगों का रोजगार और काम धंघे छिन गए हैं वहां यदि उन्हें कंपाउंडिंग फीस भरने की बाध्यता झेलनी पड़ती है तो यह उन पर एक कोढ़ में खाज की तरह आया हुआ अतिरिक्त बोझ होगा। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनके कथित अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलने की तलवार हमेशा उन पर लटकी रहेगी। दूसरी बात चाहे कंपाउंडिंग कराने का मामला हो या फिर कथित अवैध निर्माण का, दोनों ही स्थितियों में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वे नगरीय निकाय के अमले द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार का शिकार बनने को भी मजबूर होंगे।
नए फैसले के तहत राजधानी भोपाल का ही उदाहरण लें तो फैसले में कई झोल नजर आते हैं। सबसे पहली बात तो यही है कि एफएआर के सरकारी नियम ही उपभोक्ताओं के हित में नहीं हैं। अपनी मेहनत की कमाई से जैसे तैसे तो कोई भूखंड खरीदकर मकान बनवाता है और उस पर भी उसे भूखंड का 40 से 50 फीसदी तक का हिस्सा खाली छोड़ना पड़ता है। चूंकि इतना हिस्सा छोड़ने के बाद उसकी जरूरत का मकान बनना संभव ही नहीं होता इसलिए वह एफएआर से अधिक का निर्माण करने को मजबूर होता है। खुद सरकारी एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में लगभग 80 फीसदी मकान ऐसे होंगे जिनमें एफएआर से अधिक निर्माण किया गया हो।
राजधानी भोपाल का ही उदाहरण लें तो सरकार के फैसले से कई सवाल उठते हैं जो न सिर्फ व्यवस्था से जवाब मांगते हैं बल्कि लोगों को परेशान करने वाले भी हैं, खासतौर से उस समय जब लोग कोरोना संकट के चलते बदतर आर्थिक हालात से गुजर रहे हैं। ऐसे ही कुछ सवाल हैं-
- भोपाल शहर में ही नियमों में भारी विसंगति है। शहर की सबसे मंहगी रईसों और नौकरशाहों की बस्ती अरेरा कालोनी में FAR 0.75 है, जबकि पूरे शहर में यह 1.25 है। मसलन यदि आपका अरेरा कालोनी में 1000 वर्ग फुट का प्लॉट है तो आप उस पर केवल 750 वर्ग फुट निर्माण कर सकते हैं और बाक़ी शहर में 1250 वर्ग फुट। अरेरा कालोनी में भी (E-1 और E-5 छोड़कर) 1000, 1250, 1800, 2400 वर्ग फुट के छोटे प्लॉट है, मगर कुछ बड़े प्लॉट वालों के दबाव में FAR 0.75 फीसदी ही बना रहा। आश्चर्य की बात यह है कि अधिकांश मकानों में अवैध निर्माण है, क्योंकि नियम ही ग़लत हैं।
- सरकार को यदि पर्यावरण की इतनी ही चिन्ता है तो क्यों नहीं सरकार ने ही हर घर के आसपास MOS छोड़ा? सरकार ही हर घर के सामने, पीछे और दोनों तरफ़ ओपन-स्पेस छोड़कर कालोनियों का विकास करती जिससे न तो इन नियमों की ज़रूरत होती और न ही कोई अवैध निर्माण। मगर सरकार तो उस व्यक्ति से खुली जगह छुड़वाती है जिसने उस ज़मीन के टुकड़े की भरपूर क़ीमत अदा की है।
- 1200 वर्ग फुट के प्लॉट पर सिर्फ़ फ़्रंट और बैक MOS छोड़ने का नियम है, जबकि यदि प्लॉट 1500 का हो तो मकान के चारों तरफ़ खुली जगह छोड़ना अनिवार्य है। नतीजतन 1200 वर्ग फुट प्लॉट वाला 1500 प्लॉट वाले से ज़्यादा निर्माण कर सकता है।
- शहर में पार्किंग बड़ी भारी समस्या है और कोई व्यक्ति अपने मकान के पूरे भूतल पर पार्किंग फ़्लोर बनाना चाहें तो उसका प्लॉट 4500 वर्ग फुट या उससे अधिक का होना चाहिए। छोटे प्लॉट वाले को यह सुविधा उपलब्ध नहीं है, जबकि अधिक आवश्यकता उसी की है। 4500 के या उससे अधिक के प्लॉट मालिक की गाड़ियाँ तो उसके घर में ही आसानी से पार्क हो जाती हैं।
- जब सरकार ने पुराने मकानों से अवैध निर्माण की आड़ में कम्पाउन्डिग फ़ीस की वसूली की तैयारी कर ही ली है तो उससे पहले यह वाजिब प्रश्न उठता ही है कि आख़िर किसने मकानों पर अवैध निर्माण होने दिया? उत्तर भी बड़ा सरल है- नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों/कर्मचारियों ने। अब अगला प्रश्न यह है कि आख़िर उन्होंने ऐसा क्यों किया, इसका जवाब भी बहुत सरल है कि बिना निगम को वैध और अवैध चढ़ावा चढ़ाये कोई भी मकान बनाना संभव ही नहीं।
- रिहायशी मकानों में कामर्शियल गतिविधियों के चलने की बात करने के दौरान इस बात पर भी ध्यान जाना चाहिए कि प्रदेश के माननीय मंत्रियों के बंगलों में, बड़े नौकरशाहों के बंगलों में उनका कार्यालय धड़ल्ले से चल सकता है। पर आम आदमी के यहां नहीं। और जब भी इन सरकारी बंगलों का कोई नया ‘माई-बाप या हुज़ूर’ आता है तो वह बंगले में अपने हिसाब से तोड़फोड़ और नया निर्माण जरूर कराता है और वह भी बिना नगर निगम की परमीशन के। कई सरकारी बंगलों में तो मंदिरों तक का निर्माण कर लिया गया।
- सरकार ने हाल ही में नगर निगम के पानी के शुल्क में प्रतिवर्ष 10 फीसदी वृद्धि का नियम बना दिया है। इसी तरह प्रॉपर्टी टैक्स को भी कलेक्टर गाइड लाइन से लिंक कर दिया गया है, जिससे उसमें हर साल ऑटोमेटिक बढ़ोतरी होती जाएगी। शहर की साफ सफाई का भुगतान तो जनता करती ही है।
- लोगों की परेशानियों को समझने और उनका तार्किक हल निकालने के बजाय कोरोना काल में जनता को और अधिक निचोड़ लेने वाली ऐसे कदमों के पीछे क्या यह संदेश छिपा है कि लोग शहर छोड़कर नगर निगम सीमा से बाहर दूर-दराज के गाँव जंगलों में जाकर रहने लगें? सरकारी नियमों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति कम्पाउन्डिग फीस का भुगतान नहीं कर पाता तो नियमानुसार उसके मकान के अवैध हिस्से को तोड़ दिया जायेगा।
तो क्या सरकार आबाद शहर को खण्डहरों के शहर में तब्दील करना चाहती है?