अजय बोकिल
भारत सरकार द्वारा कोरोना की दो वैक्सीनों को दी गई आपाती इस्तेमाल की मंजूरी पर विपक्षी दलों द्वारा की जा रही राजनीति का कोई औचित्य नहीं जान पड़ता, सिवाय इस आशंका के कि कहीं मोदी सरकार इसका भी राजनीतिक फायदा न उठा ले। दोनों वैक्सीनों को स्वीकृति के एक दिन पहले ही सपा नेता और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि वो वैक्सीन नहीं लगवाएंगे, क्योंकि उनका भाजपा की कोरोना वैक्सीन पर भरोसा नहीं है। अखिलेश के बयान का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा कि विपक्ष को इस सरकार की मंशा पर भरोसा नहीं है।
रविवार को कांग्रेस के दो बड़े नेताओं ने सवाल उठाए कि दोनों वैक्सीनों को जल्दबाजी में और पूरे ट्रायल के बगैर डीसीजीआई (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) द्वारा मंजूरी दी गई है, जो कि घातक हो सकती है। जबकि भाजपा ने कहा कि विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे सवाल देश के वैज्ञानिकों का अपमान है। यह अफवाह भी फैली कि स्वीकृत वैक्सीन नपुंसकता का कारण बन सकती है, जिसे डीसीजीए ने सिरे से खारिज कर दिया। उधर प्रधानमंत्री ने भारत में तैयार दोनों वैक्सीनों पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह देश के वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि है।
चूंकि हमारे देश में किसी भी मुद्दे पर राजनीति हो सकती है, इसलिए वैक्सीन उससे बची रहे, यह नामुमकिन ही है। इसकी शुरुआत भी खुद भाजपा ने ही बिहार विधानसभा चुनाव में राज्य में ‘फ्री वैक्सीनेशन’ का वादा करके की। तब विपक्षी दलों का आरोप था कि भाजपा मुफ्त वैक्सीन का प्रलोभन देकर लोगों से वोट पाना चाहती है। उसके बाद मप्र सहित कई राज्यों ने ताबड़तोड़ तरीके से अपने-अपने राज्यों में नागरिकों के मुफ्त वैक्सीन के वादे कर डाले। इस बीच यह असमंजस भी फैला कि सरकार सभी को मुफ्त वैक्सीन नहीं लगाएगी। हालांकि अब सरकार कह रही है कि वैक्सीन सभी को फ्री मिलेगी, लेकिन चरणबद्ध तरीके से।
ध्यान रहे कि भारत सरकार ने दो वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड तथा भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को इमर्जेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी है। अर्थात आपातस्थिति में ही इन वैक्सीनों का उपयोग किया जा सकता है। तकनीकी तौर पर इमर्जेंसी अप्रूवल एक तरह की अंतरिम स्वीकृति है। चूंकि वैक्सीन बनाना और उनके पूरी तरह सफल संतुष्टिकारक होने तक चलने वाले चरणबद्ध परीक्षण एक लंबी प्रक्रिया है। ऐसे में सरकारें कुछ वैक्सीनों को बुनियादी शर्तें पूरी करने के बाद इमर्जेंसी अप्रूवल देती हैं कि विशिष्ट और अत्यंत गंभीर स्थिति में इन वैक्सीनों का प्रयोग किया जा सकता है।
यह अप्रूवल भी एक निश्चित प्रक्रिया और संतुष्टि के बाद ही मिलता है। इस बीच अंतिम परीक्षण सफल होने तक वैक्सीन ट्रायल प्रक्रिया जारी रहेगी और उनके नतीजों की डीसीजीए समीक्षा करेगा। सभी मानदंडों पर खरी उतरने के बाद दोनों वैक्सीनों को पूरी मंजूरी मिलेगी। सभी तरह के टीकों और दवाइयों को अंतिम रूप से मंजूरी भारत सरकार की संस्था सीडीएससीओ (सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन) देता है। इसके अलावा जायडस कैडिला की वैक्सीन ‘जाइकोव-डी’ को तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के लिए मंजूरी मिल गई है।
वैसे भी वैक्सीन के मामले में तो परीक्षण के हर चरण के बाद स्वीकृति लेनी होती है। लेकिन विपक्षी दलों ने अभी से हल्ला मचाना और उसे भाजपा की वैक्सीन बताने का जो उपक्रम शुरू किया है, वह समझ से परे है। जो रहा है, वह अर्द्धसत्य का खेल ज्यादा है। इसमें परोक्ष रूप से श्रेय लेने की भी जल्दी है और किसी को श्रेय न लेने देने की राजनीतिक जल्दबाजी भी है। शायद इसीलिए वैक्सीन को मंजूरी मिलने से पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा नेता अखिलेश यादव ने भाजपा पर तंज कसा कि जो सरकार ताली और थाली बजवा रही थी, वो वैक्सीनेशन के लिए इतनी बड़ी चेन क्यों बनवा रही है?
अखिलेश ने कहा कि वो अभी कोरोना की वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। मैं बीजेपी की वैक्सीन पर कैसे भरोसा कर सकता हूं? जब हमारी सरकार बनेगी, तो सभी को मुफ्त वैक्सीन मिलेगी। अखिलेश के बयान का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा कि केंद्र सरकार सीबीआई, आईबी, ईडी, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का इस्तेमाल विपक्ष के खिलाफ कर रही है। वैक्सीन ऐसी चीज है, जिसका आम आदमी के साथ तो ऐसा इस्तेमाल नहीं होगा, लेकिन विपक्ष के नेताओं को डर तो लगेगा, क्योंकि सरकार ऐसे हाथों में है, जो देश के विपक्ष को या तो जेल में देखना चाहते हैं या उनकी राजनीति खत्म करना चाहते हैं।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि ‘भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल अभी तक पूरा नहीं हुआ है। ऐसे में कोवैक्सीन को समय से पहले मंजूरी देना खतरनाक हो सकता है। केन्द्रीय स्वास्थ मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को इस पर अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए और ट्रायल पूरा होने तक इसके उपयोग से बचा जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को इस दौरान एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का इस्तेमाल करना चाहिए। पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि ‘भारत बॉयोटेक पहले दर्जे की कंपनी है, लेकिन यह हैरानी की बात है कि वैक्सीन के फेज-3 के ट्रायल से जुड़े अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत प्रोटोकॉल ‘कोवैक्सीन’ के लिए संशोधित किए जा रहे हैं।
उधर डीसीजीए के निदेशक वीजी सोमानी का दावा है कि अप्रूव्ड वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। भारत में कोरोना वैक्सीन के इमर्जेंसी इस्तेमाल को मंजूरी का विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने भी स्वागत किया है। गौरतलब है कि वैक्सीन कोविशील्ड ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने फार्मा प्रमुख एस्ट्राज़ेनेका के सहयोग से विकसित की है। भारत का सीरम इंस्टीट्यूट इसके परीक्षण में भागीदार है। कोरोना का दूसरा टीका यानी कोवैक्सीन भारत का पहला स्वदेशी टीका है। इसे भारत बॉयोटेक ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के सहयोग से विकसित किया है।
बताया जाता है कि ‘कोविशील्ड’ शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करता है। जबकि कोवैक्सीन एक निष्क्रियताकारक टीका है। ऐसा टीका जो कि बीमारी के कारक सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय कर देता है। इन टीकों की लागत और मूल्य को लेकर स्थिति अभी भी अस्पष्ट है। विपक्ष ने जो सवाल उठाए हैं, उसमें से केवल एक बात में दम है और वो ये कि इन वैक्सीनों को आपाती मंजूरी देते समय क्या अनिवार्य प्रोटोकॉल तथा डेटा के सत्यापन का पालन नहीं किया गया? क्या सच में ऐसा है? अगर है तो इसके पीछे वजह क्या है? इन वैक्सीनों के पूरी तरह कारगर साबित होने तक इस मामले में हमें डीसीजीए के बयान पर भरोसा करना चाहिए।
दूसरे, दोनों वैक्सीनों को पूरी मंजूरी उनके अंतिम चरण के ट्रायल सफल होने के बाद ही मिलेगी। तब तक धैर्य तो रखना होगा। दूसरे, यह वैक्सीन भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा या पार्टी की फैक्ट्री में नहीं बन रही है। वैक्सीन वैज्ञानिक और दवा विशेषज्ञ ही बना रहे हैं। उसकी निश्चित प्रक्रिया है। अगर उसका पालन नहीं होगा तो ऐसी वैक्सीन पर दस सवाल उठेंगे। चीन के मामले में हम देख रहे हैं कि उसकी वैक्सीन पर दुनिया को भरोसा नहीं हो रहा है, क्योंकि उसे बनाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है।
रहा सवाल इस वैक्सीन के तैयार करने का राजनीतिक श्रेय लेने का तो यह बात बिल्कुल साफ है कि यदि स्वीकृत वैक्सीन पूरी तरह कारगर साबित हुई तो देश में भाजपा को इसका राजनीतिक फायदा अपने आप मिलेगा और इस श्रेय को अपने खाते में लिखवा सकने वाला प्रभावी तंत्र भी उसके पास है। पर इसके साथ यह जोखिम भी है कि खुदा-न-खास्ता वैक्सीन सभी मानदंडों पर खरी न उतरी तो बदनामी का ठीकरा भी सरकार के सिर ही फूटेगा। इसलिए कोरोना वैक्सीन पर कोई राजनीति की भी जा रही है तो बहुत सावधानी से की जानी चाहिए। क्योंकि कोरोना वैक्सीन महज करोड़ो डोज की खरीदी या उसे लगवाकर सियासी सेहरा बांधने का खेल भर नहीं है, यह पूरे देश के नागरिकों की सेहत से जुड़ा सवाल है। जो श्रेय लेने अथवा न लेने देने की राजनीति से कहीं बड़ा है।