12 मार्च 2018
‘’मां, क्या बेटी होना कलंक है? … और लगा ली फांसी’’
13 मार्च 2018
‘’बच्ची के साथ अश्लील हरकत से डिप्रेशन में थी मां, बेटी सहित तालाब में कूदकर दी जान’’
13 मार्च 2018
‘’छेड़छाड़ से तंग आकर 9 वीं की छात्रा ने जहर खाकर दी जान’’
—————-
ये मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के अखबारों की पिछले दो दिनों की कुछ हेडलाइंस हैं। और ये बता रही हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद राज्य में महिलाएं या लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। हालांकि मध्यप्रदेश ऐसा पहला राज्य है जिसने 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म और सामूहिक दुष्मर्क जैसे अपराधों पर फांसी की सजा का कानून बनाया है। लेकिन लगता है कि फांसी अपराधियों के नहीं बल्कि मासूम बच्चियों या महिलाओं के नसीब में ही लिखी है।
आगे बात करने से पहले जरा उन खबरों की थोड़ी तफसील जान लीजिए जिनके शीर्षकों का जिक्र मैंने ऊपर किया है। पहली खबर भोपाल की है जिसके मुताबिक दुर्गा नगर में रहने वाली 19 वर्षीय आरती रॉय ने एक युवक की लगातार छेड़छाड़ से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। आरती बीकॉम द्वितीय वर्ष की छात्रा थी।
इस मामले में आरोपित दानिश नाम का युवक है जो आरती को लगातार एक महीने से परेशान कर रहा था। आरती इतनी दहशत में थी कि उसके रिश्तेदार और पड़ोसी उसे कॉलेज छोड़ने जाते थे। शनिवार को भी युवक ने आरती से छेड़खानी कर मारपीट की थी। वह रोते रोते घर पहुंची थी। लगातार हो रही छेड़छाड़ से परेशान आरती अक्सर अपनी मां से पूछती थी ‘’मां, क्या लड़की होना कलंक है’’ और आखिर उसने तंग आकर खुद ही जान दे दी।
आरती की मां ने मीडिया को बताया कि आरोपित युवक एक माह से आरती को परेशान कर रहा था। उसने लड़की का घर से निकलना मुश्किल कर दिया था। लड़की की शिकायत के बाद परिवार के लड़के और पड़ोसी उसे कॉलेज छोड़ने जाते थे। परिवार वालों को साथ देख आरोपित युवक कुछ दिन सामने नहीं आया। लेकिन बेटी की 24 घंटे निगरानी या उसे घर में कैद रखना परिवार को मंजूर नहीं था। इसके चलते जैसे ही मौका मिला दानिश ने आरती को फिर परेशान करना शुरू कर दिया। लड़की की मां के अनुसार शनिवार को दानिश ने उसके साथ मारपीट भी की और उसके पैर पर एक्टिवा चढ़ा दी थी।
दूसरी घटना भोपाल के पड़ोसी जिले विदिशा की है। वहां त्योंदा तहसील के ग्राम धनसिंहपुर चक की नौंवीं कक्षा की एक छात्रा ने भी पड़ोसी युवक की छेड़छाड़ से तंग आकर रविवार को जहर खाकर जान दे दी। मृतका की मां ने पुलिस को बताया कि उनके पड़ोसी का बेटा पिछले कुछ दिनों से उसकी बेटी से छेड़छाड़ कर रहा था। रविवार को भी उसकी बेटी ने पड़ोसी मलखान की हरकतों से परेशान होकर जान देने की बात कही थी। माता-पिता के जाने के बाद उसने कीटनाशक पीकर खुद को खत्म कर लिया।
तीसरा मामला प्रदेश के सबसे समृद्ध और जागरूक जिले इंदौर का है। वहां तीन साल की बेटी के साथ हुई अश्लील हरकत से डिप्रेशन में आई मां ने बेटी के साथ तालाब में कूदकर जान दे दी। वह रविवार से ही घर से लापता थी। सोमवार सुबह दोनों के शव सिरपुर तालाब में मिले। कुछ माह पहले बच्ची के साथ महिला के ही एक रिश्तेदार ने अश्लील हरकत की थी।
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो मध्यप्रदेश महिला उत्पीड़न के मामले में देश में काफी बदनाम है। नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक 2014 में यहां महिलाओं के खिलाफ 28756 अपराध हुए थे, 2015 में यह संख्या 24231 और 2016 में 26604 थी। इसी तरह 2014 में राज्य में दुष्कर्म के 5076 मामले हुए, 2015 में यह संख्या 4391 और 2016 में 4882 थी।
सवाल यह उठता है कि सरकार की ओर से महिलाओं और बेटियों के सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं चलाने के बावजूद वे यौन हिंसा और यौन प्रताड़ना का शिकार क्यों हो रही हैं? ऐसा माहौल क्यों नहीं बन पा रहा जिसमें महिलाएं और बच्चियां अपने आप को सुरक्षित महसूस करें। उन्हें आए दिन होने वाली यौन हिंसा और छेड़खानी के चलते खुद की जान देने की नौबत क्यों आ रही है?
मेरे विचार से इस मामले में बच्चियों को सिर्फ सरकार या समाज के भरोसे बैठने के बजाय खुद को ही मजबूत बनाना होगा। भोपाल की आरती रॉय की खुदकुशी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भोपाल की ही बेटी शक्ति (परिवर्तित नाम) ने सही कहा है कि मनचलों से डर कर आत्महत्या करना समस्या का हल नहीं है। लड़कियों को पूरी हिम्मत से इनका मुकाबला करना चाहिए।
शक्ति वो लड़की है जिसके साथ राजधानी में ही पिछले साल 31 अक्टूबर को कुछ लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था। उसका कहना है कि ‘’जब मेरे साथ वारदात हुई तो मैंने डरने के बजाए दरिंदों को सजा दिलाने का संकल्प लिया और ऐसा करके दिखाया भी। जब तक लड़कियां खुद हिम्मत नहीं करेंगी उनकी कोई मदद नहीं कर सकता। ये लड़ाई लड़कियों को खुद ही लड़नी होगी, बस थोडी सी हिम्मत दिखानी है फिर देखिए मनचले कैसे रास्ते पर आते हैं।‘’
और वास्तविकता भी यही है। बच्चियों को खुद ही इतना समर्थ और ताकतवर बनना होगा कि वे दूसरों का मुंह ताकने के बजाय स्वयं ही ऐसी परिस्थितियों का डटकर मुकाबला कर सकें। ऐसे मामलों में उन्हें परिवार, पास-पड़ोस और समाज की मदद लेने के साथ ही संचार के आधुनिक टूल्स का उपयोग करना भी सीखना होगा। ताज्जुब है कि भोपाल में छेड़खानी से जान देने वाली बच्ची ने अपने साथ होने वाली घटनाओं को मां और कुछ सहेलियों से शेयर किया लेकिन उसने कानूनी या महिला हेल्पलाइन जैसे प्लेटफार्म की मदद नहीं ली।
मुझे लगता है स्कूल और कॉलेज में इस बात की नियमित ट्रेनिंग दिए जाने की जरूरत है कि यदि आप ऐसे हालात में फंस जाएं तो उससे बचने या बाहर निकलने के लिए किसकी मदद लें या कि ऐसे हालात में कौन कौन आपका मददगार हो सकता है। जान देने का खयाल मन में लाने की तो कभी सोचें ही नहीं, अगर मामला जान पर बन ही आए तो जान देने के बजाय जान ले लेने का रास्ता चुनने में भी कोई हर्ज नहीं है।