नियति मिश्रा
संस्कार और सलवार-कमीज का गहरा नाता है। हमारे यहां लड़कियों की तमीज और तहजीब उनके कपड़ों से ही मापी जाती है। अगर किसी लड़की ने सलवार-कमीज पहन रखी है तो वो एक गुणी और सती-सावित्री लड़की होती है। हमारे देश में नेताओं और टॉप रैंक के ऑफिसर्स से लेकर सड़क पर खड़े आम नागरिक की भी लड़कियों को यही सीख दी जाती है। इसी लिस्ट में अब उत्तराखंड के नए नवेले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भी आ गए हैं। लेकिन हमारे देश की अधिकतर लड़किया अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग न करते हुए मुख्यमंत्री के बयान का विरोध करने लगीं। अगर मुख्यमंत्री की बात को गौर किया जाए तो हो सकता है भारत की अधिकांश जनता उनसे सहमत होती।
बहुत सारी लड़कियां फटे जींस पहनकर फोटो पोस्ट कर रही हैं और विरोध कर रही हैं। वे लड़कियां उन घरों की हैं जो देर रात तक पब से लौटती हैं। वाचमैन गेट खोलता है, बॉयफ्रेंड को हग करती हैं और अपने कमरे में जाकर सो जाती हैं। माँ बाप को यह भी नहीं पता कि उनकी बेटी कब घर लौटी। वे लड़कियां फटी जींस पहनें या फटा टॉप, कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन इन्ही फटी जींस वाली लडकियों की नकल उतारकर जब मध्यमवर्गीय लड़कियां आधुनिक बनने की कोशिश करती हैं तो माँ बाप का सिर झुक जाता है। कौन ऐसे माँ-बाप होंगे जो अपनी लड़की का अंग प्रदर्शन देखकर खुश होते होंगे?
हर धर्म में कपड़े पहनने का सलीका बताया गया है। आज विपक्ष के जो नेता राजनीति के लिए सीएम का विरोध कर रहें हैं, वे पहले अपनी बेटी का उसी फटी जींस में फोटो सोशल मीडिया पर डालें फिर विरोध जताए। रावत का विरोध सिर्फ इसलिए नहीं होना चाहिए की वे भाजपा के हैं। उन्होंने सच ही कहा, एनजीओ चलाकर बच्चों के बीच जाने वाली फटी जींस की लड़की कौन सा संस्कार देगी बच्चों को! यह बच्चे पब वालों, बार वालों, फटे संस्कार वालों के बच्चे नहीं हैं बल्कि यह बच्चे मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय हैं। जो लोग रावत का विरोध कर रहे हैं क्या वे अपनी बेटी को इतनी आजादी देने के पक्ष में हैं?
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
—————-
नोट- मध्यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्यमत की क्रेडिट लाइन अवश्य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।– संपादक