हिंदी लिखते समय हिंदी के शब्द क्यों नहीं प्रयोग हों?

इंजी. भारतभूषण आर. गाँधी

आज प्रातः लॉक डाउन संगीत सितारे व्हाट्सएप ग्रुप में संगीत के अभ्यास संबंधित गूढ़ जानकारी देने वाली पोस्ट पढ़कर लगा कि इस पर एक प्रतिक्रिया व्यक्त की जानी चाहिए।

संगीत अपने आप में एक अनंत आनंददायी शिक्षा भी है और अनुभूति भी। जब संगीत की सुमधुर तरंगें हमारे कानों के पर्दों को झंकृत करती हैं तब पूरा तन मन आनंदपूर्वक लय में डूब जाता है, उसके परिणाम में अनेक प्रकार के भावों को उद्वेलित करने में भी सहायता मिलती है। जैसे कोई वीररस का गीत संगीत कानों में पड़ता है तो सारा तन एक ऊर्जा से भर जाता है वहीं कोई सुमधुर भजन तन को अत्यंत शांत और भक्ति से परिपूर्ण कर जाता है।

लेकिन जब जब संगीत का विषय आता है और उसके साथ रियाज़ की बात आती है तब तब ये टीस उठती है कि जब संगीत का ज्ञान विश्व के लगभग सभी देशों में उनके देश में बोली जाने वाली भाषा में व्यक्त किया जाता है तब हिंदी में अभ्यास शब्द विद्यमान होने के उपरांत भी रियाज़ शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है। ये भी सही है कि अंग्रेजी भाषा के अनेक शब्दों ने अब हिंदी सहित देश में बोली जानी भाषाओं में इस प्रकार से मेलजोल बढ़ा लिया है कि जो शब्द अंग्रेजी के चलन से पहले कहे जाते थे वो अब चलन में नहीं रह गए हैं।

हमारे देश की क्षेत्रीय भाषाओं या यों कहिए कि मातृभाषा को पुनर्स्थापित करने के लिए अब शिक्षा पद्धति में बड़ा परिवर्तन किया है जिसके अंतर्गत तीसरी कक्षा तक अंग्रेजी भाषा को पाठ्यक्रम से बाहर रखा गया है। सिंधी, मराठी, तमिल, कन्नड़ आदि अनेक भाषाओं का उपयोग उनके समुदाय में पुनर्स्थापित हो सके इसके फ्री ऑनलाइन वीडियो बनाकर प्रशिक्षण देने का काम घर घर स्तर पर किया जा रहा है।

मैंने अत्यंत आदरपूर्वक संगीत की जानकारी संबधी लेख को शेयर करने वाले संगीत प्रेमी से अनुरोध किया है कि वे अब से रियाज़ शब्द की जगह अभ्यास शब्द का प्रयोग करें। मेरी भावना किसी भी अन्य मातृभाषा का प्रयोग करने वाले मित्र को आहत करने की नहीं है, उर्दू अपने आप में बहुत सुंदर भाषा है, जो लिखी फ़ारसी में जाती है और बहुधा हिंदी साहित्य की सगी सहेली और सहायक बनी हुई है। इसने दुष्यंत कुमार जैसे अनेक कवियों/गजलकारों को हिंदी ग़ज़ल और शायरी में विशेष स्थान पर स्थापित किया है। उनके काव्य और ग़ज़ल में अभिव्‍यक्‍त सामाजिक तानेबाने और व्यंग्य के अभूतपूर्व उदाहरणों को अनेक सुधि वक्तागण अपनी अभिव्यक्ति के सटीक प्रदर्शन के लिए अपनाते हैं।

मेरा एक ही निवेदन है कि हम सभी का यही प्रयास हो कि जहाँ तक बन सके हिंदी को सही सम्मान मिले, इसके लिए इसका जितना अधिक सही उपयोग हो उतना अच्‍छा है।

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