गिरीश उपाध्याय
इन दिनों सोशल मीडिया और ओटीटी प्लैटफार्म के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर आम जनता में, अलग अलग स्तरों पर बहस चल रही है। इस बहस को मामले की गंभीरता और वस्तुनिष्ठता के साथ देखना बहुत जरूरी है। दरअसल सोशल मीडिया के भस्मासुर होते जाने को लेकर उठ रहे गंभीर सवालों के बीच ही ओटीटी प्लैटफार्म पर परोसी जाने वाली सामग्री ने इस पूरे मामले को और ज्यादा संगीन बना दिया है।
पिछले दिनों ओटीटी प्लैटफार्म पर जारी वेबसीरीज ‘तांडव’ को लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और कोर्ट ने भी सरकार से कहा है कि वह डिजिटल मीडिया पर प्रसारित होने वाली सामग्री के बारे में कायदे कानून बनाए क्योंकि इन प्लैटफार्म पर बहुत सी ऐसी आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित की जा रही है जो समाजहित में नहीं है।
केंद्र सरकार ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में तो अपना पक्ष रखा ही है साथ ही समानांतर रूप से सोशल मीडिया और ओटीटी प्लैटफार्म के विनियमन के लिए कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों के अंतर्गत ऐसे सभी प्लेटफार्म्स को अपने यहां कंटेट की निगरानी, आपत्तिजनक कंटेट के प्रसार को रोकने और ऐसे कंटेट को लेकर आने वाली शिकायतों का निराकरण करने के लिए एक मैकेनिज्म बनाना होगा।
सरकार के दिशानिर्देश बहुत व्यापक और विस्तृत हैं और चूंकि ये अभी-अभी जारी किए गए हैं इसलिए इन्हें लेकर उठने वाली शिकायतों, गलतफहमियों और इनके दुरुपयोग का मसला तभी सार्थक रूप से सुलझाया जा सकेगा जब व्यावहारिक रूप से उससे जुड़े सारे पहलू सामने आएंगे। लेकिन दिशानिर्देश जारी होते ही यह कह देना ठीक नहीं है कि ये संविधान के तहत दी गई अभिव्यक्ति की आजादी को बाधित करने वाले हैं।
इस मामले में भारत में संपादकों की सर्वोच्च संस्था एडिटर्स गिल्ड ने सरकार को हाल ही में जो चिट्ठी लिखी है उससे लगता है कि वरिष्ठ मीडियाकारों ने भी या तो बहुत जल्दबाजी में या फिर किसी पूर्वग्रह के चलते इन नियमों को पूरी तरह खारिज करते हुए इन्हें वापस लेने की मांग कर डाली है। गिल्ड का कहना है कि ये नियम बगैर न्यायिक हस्तक्षेप के केंद्र सरकार को किसी भी कंटेट को खत्म कर देने के अधिकार देते हैं। इन्हें बनाने से पहले संबंधित पक्षों से सलाह मशविरा नहीं किया गया।
जबकि मीडिया में नए दिशानिर्देशों को लेकर जो खबरें छपी हैं वे कहती हैं कि 2021 के इन नियमों को अंतिम रूप देते समय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और सूचना व प्रसारण मंत्रालय दोनों ने आपस में विस्तृत विचार-विमर्श किया, ताकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ-साथ डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म आदि के संबंध में एक सामंजस्यपूर्ण एवं अनुकूल निगरानी व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।
खबरों के मुताबिक डिजिटल मीडिया से जुड़ी पारदर्शिता के अभाव, जवाबदेही और उपयोगकर्ताओं के अधिकारों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आम जनता और हितधारकों के साथ विस्तृत सलाह-मशविरा करने के बाद, भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 अधिसूचित किए हैं। इनमें सबसे प्रमुख बात यह है कि सोशल मीडिया व अन्य प्लेटफार्म को उपयोगकर्ताओं या पीड़ितों से मिली शिकायतों के समाधान के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना अनिवार्य होगा। ऐसी शिकायतों का एक समयसीमा में निराकरण करना होगा और देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को हानि पहुंचा सकने वाले कंटेट को हटाना होगा।
सोशल मीडिया और ओटीटी प्लैटफार्म पर दिखाई जा रही अतिशय हिंसा और यौनाचार को लेकर भी इन निर्देशों के तहत कार्रवाई की बात है। इनमें कहा गया है कि उपयोगकर्ताओं विशेष रूप से महिला उपयोगकर्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए सोशल मीडिया व अन्य प्लेटफार्म को ऐसे कंटेंट की शिकायत मिलने के 24 घंटों के भीतर उसे हटाना होगा या उस तक पहुंच निष्क्रिय करनी होगी। इसमें वह कंटेट शामिल है जो किसी व्यक्ति के निजी क्षेत्रों को उजागर करते हों, किसी व्यक्ति को पूर्ण या आंशिक रूप से निर्वस्त्र या यौन क्रिया में दिखाते हों या बदली गई छवियों सहित छद्मरूप में दिखाए गए हों। ऐसी शिकायत या तो किसी व्यक्ति द्वारा या उनकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई जा सकती है।
मोटे तौर पर दिशानिर्देशों में जो प्रावधान किए गए हैं उनकी जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है। खुद सुप्रीम कोर्ट ने तांडव प्रकरण में टिप्पणी की है कि कुछ ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म पर कई बार ‘अश्लील कंटेंट’ दिखाया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों को स्क्रीन करने के लिए एक मैकेनिज्म (तंत्र) होना चाहिए। अश्लील सामग्री जैसे विषय पर एक संतुलन कायम करना होगा।’
यानी सुप्रीम कोर्ट ने भी कंटेट की निगरानी और उसके आपत्तिजनक पाए जाने पर उसे लेकर कार्रवाई की जरूरत बताई है। ऐसे में बिना मामले को गहराई से सोचे विचारे आनन फानन में प्रतिक्रिया देते हुए दिशानिर्देशों को वापस लेने की मांग करना एक तरह से एडिटर्स गिल्ड जैसी संस्था की साख को धक्का पहुंचाना ही है। वैसे भी सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, कई बार सार्वजनिक रूप से यह राय जाहिर कर चुके हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने का सवाल ही नहीं उठता। और आपत्तिजनक कंटेट की निगरानी व कार्रवाई का काम भी मीडिया को स्वयं करना चाहिए।
ऐसे में जरूरी हो जाता है कि मीडिया और मीडियाकारों से जुड़ी संस्थाएं और संगठन पूरे मामले पर बैठकर गंभीरता से विमर्श करें। होना तो यह चाहिए था कि ऐसे मामलों में ये संस्थाएं खुद पहल करके पुख्ता मैकेनिज्म बनाने के लिए आगे आतीं। पर ऐसा नहीं हुआ। अब जब सरकार ने इस दिशा में पहल की है तो उसे सिर्फ नकारात्मकता के साथ देखने के बजाय वस्तुनिष्ठता से देखते हुए मीडिया को साफ सुथरा बनाने में मिलजुलकर प्रयास किए जाने चाहिए। सरकारों को अवसर तभी मिलता है जब हम उसे अवसर देते हैं। सोशल मीडिया और ओटीटी का मामला भी इससे अलग नहीं है।