खिलाडि़यों की कमाई में भी ‘नाल काटने’ की सरकारी जुर्रत!

अजय बोकिल 
गनीमत है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने राज्य के खेल विभाग के उस मूर्खतापूर्ण आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है, जिसमें सरकार का इरादा खिलाडि़यों के विज्ञापनों और व्यावसायिक स्पर्द्धाओं से कमाए गए पैसों में भी ‘नाल काटने’ का था। अपनी ‘ईमानदारी’ के लिए शोहरत पा चुके राज्य के प्रमुख सचिव खेल डॉ. अशोक खेमका के दस्तखत से जारी इस आदेश में कहा गया था कि राज्य के खिलाड़ियों को विज्ञापनों और प्रोफेशनल स्पोर्ट के जरिए जो कमाई होती है, उसका 33 फीसदी हिस्सा हरियाणा स्पोर्ट्स काउंसिल में जमा करवाएं।

इसके पीछे अजीब तर्क था कि यह पैसा राज्य में खेलों के विकास पर खर्च होगा। आदेश में यह भी कहा गया कि जिन खिलाडि़यों को राज्य सरकार ने स्पोर्ट्स कोटे में नौकरी दी है, वे अगर विज्ञापन या स्पोर्ट्स इवेंट के लिए छुट्टी लेंगे तो उनका वेतन भी काटा जाएगा। लुब्बो-लुआब ये कि आपने खेल के जरिए दो पैसे कमाने की जुर्रत की तो आपकी खैर नहीं! गोया यह खेल की कमाई न होकर किसी खेल तमाशे से होने वाली आमदनी हो।

इस अजब आदेश से राज्य के खिलाडि़यों का भड़कना स्वाभाविक था। जानी-मानी महिला रेसलर बबीता फोगाट ने कहा कि क्या सरकार को पता है कि पैसे के लिए एक खिलाड़ी कितनी कड़ी मेहनत करता है? सरकार इस आमदनी का एक तिहाई हिस्सा कैसे मांग सकती है? ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार ने कहा कि सरकार को अपने इस फैसले की समीक्षा करनी चाहिए। ऐसे फैसले खिलाड़ी का मनोबल कमजोर करते हैं और उनके प्रदर्शन को भी प्रभावित कर सकते हैं।‘

इस बवाल के बाद सरकारी आदेश पर रोक लगाते हुए मुख्यमंत्री खट्टर ने लीपा-पोती के अंदाज में कहा कि खेल क्षेत्र में हमारे खिलाडि़यों के अतुलनीय योगदान पर हमें गर्व है। मैं भरोसा दिलाता हूं कि सभी मुद्दों पर विचार किया जाएगा।
हरियाणा को देश का ‘खेल राज्य’ माना जाता है। यहां के अनेक खिलाडि़यों ने पूरे‍ विश्व में देश का नाम रोशन किया है। खेल हरियाणा में अब संस्कृति बन चुके हैं। राज्य में क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के भी कई खिलाड़ी निकले हैं, जिन्होंने ओलंपिक समेत कई स्‍पर्धाओं में भारत का नाम रोशन किया है। इनमें बॉक्सर विजेंद्र सिंह, पहलवान सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, बबीता फोगाट, गीता फोगाट आदि शामिल हैं।

सरकार के आदेश से इन सभी की आमदनी प्रभावित होती। जबकि हरियाणा की खेल नीति खेलों को हरसंभव प्रोत्साहित करने वाली है। इसी साल अप्रैल में जारी खेल नीति में अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने वाले हरियाणा के खिलाडि़यों को नकद राशि के साथ नौकरी देने का प्रावधान भी किया गया है। ऐसे खिलाडि़यों को हरियाणा पुलिस सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवा में नियुक्ति दी जाएगी। साथ ही कोई खिलाड़ी राज्य में खेल अकादमी खोलना चाहेगा तो सरकार उसे 10 एकड़ तक जमीन भी देगी।

यही नहीं, बताया जाता है कि हरियाणा जैसे छोटे राज्य का खेल बजट भी मप्र जैसे बड़े राज्यों की तुलना में अधिक है। इस साल के बजट में वहां खेल गतिविधियों के लिए 394 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जबकि इस अवधि के लिए मप्र का खेल बजट 224 करोड़ रुपए का ही है। आश्चर्य यही है कि इसके बावजूद हरियाणा सरकार खिलाडि़यों की कमाई में हिस्सेदारी करना चाहती है। और फिर ऐसे कितने खिलाड़ी हैं, जिन्हें (क्रिकेट और टेनिस के अलावा) विज्ञापनों और प्रोफेशनल स्पर्द्धाओं में भारी कमाई होती है।

यह सही है कि खेल गतिविधियों को चलाने के लिए पैसा लगता है, लेकिन वह खिलाडि़यों की जेब काटकर ही क्यों, इसका जवाब हरियाणा सरकार के पास नहीं है। दूसरा मुद्दा सरकारी खर्चे से टीम में आने वाले खिलाडि़यों के विज्ञापन करने और प्रोफेशनल स्पर्द्धाओं में हिस्सेदारी का है। निश्चय ही जो सरकारी पैसे से यह सुविधा उठा रहे हैं, उन पर एक नैतिक बंधन है, लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं कि सरकार कंधा देने वालों से कफन का पैसा भी मांगने लगे।

खिलाड़ी आर्थिक रूप से सम्पन्न होंगे तो खेल और खिलाडि़यों का विकास ही होगा। सरकारें खेलों पर खर्च कर न तो खेलों और न ही खिलाडि़यों पर कोई अहसान करती हैं। यह तो उनका राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह समाज को स्वस्थ रखने और देश का नाम ऊंचा करने के लिए भी जरूरी है।

थोड़ी देर के लिए यह मान भी लिया जाए कि चंद कमाऊ खिलाडि़यों की कमाई में से हरियाणा सरकार अपनी खेल परिषद के लिए कुछ हिस्सा ले भी ले तो उससे क्या बनना है? क्या राज्य सरकार इतनी कंगाल है कि उसके पास परिषद चलाने के लिए भी पैसे नहीं हैं? या सरकार चाहती है कि खिलाड़ी केवल सरकार की कृपा पर ही निर्भर रहें और अपने हुनर से किसी भी प्रोफेशनल स्पर्द्धा में पैसा न कमाएं। वे आर्थिक रूप से सक्षम कभी न हों।

सरकार के पास बबीता फोगाट के इस प्रश्न का भी जवाब नहीं है कि जब खिलाडि़यों की आर्थिक कमाई पर वह वाजिब टैक्स वसूल चुकी होती है तब उसे बचे पैसों में भी हिस्सा क्यों चाहिए? कोई खिलाड़ी स्वेच्छा से आर्थिक सहयोग दे, यह अलग बात है, लेकिन उसकी कमाई में जबरिया हिस्सेदारी तो ‘सरकारी रंगदारी टैक्स’ ही है। सरकार तो छोडि़ए कोई मां बाप भी शादी के बाद बेटी की कमाई में हिस्सा नहीं मांगते।
(सुबह सवेरे से साभार)

 

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