वे गलतियां जिन्होंने इंदौर में कोरोना फैलने का मौका दिया

 हेमंत पाल 

देश का सबसे साफ शहर इंदौर, कोरोना वायरस के हॉटस्पॉट के रूप में उभरा है, ये सबसे बड़ी विडंबना है। केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार तीन बार यह शहर देश का सबसे स्वच्छ शहर घोषित हुआ और इस बार भी ‘फाइव स्टार’ लेकर चौथी बार दौड़ में है। इन चार सालों में नगर निगम ने कचरा डंपिंग को खत्म कर दिया और शत-प्रतिशत घरेलू-कचरा पृथक्करण सुनिश्चित किया है।

लेकिन, ये भी सच्चाई है कि इदौर कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों में भी देश में जगह बना चुका है। एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रशासन ने शुरू में विदेश से लौटने वालों और महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात के रास्ते इंदौर आने वालों की स्क्रीनिंग पर ध्यान नहीं दिया। यह एक बड़ी गलती थी। क्योंकि, इंदौर ऐसा शहर है जहाँ रोज हजारों लोग सड़क और रेल से आते-जाते हैं। इन लोगों की स्क्रीनिंग नहीं की गई। इसके अलावा इंदौर जैसे घनी आबादी वाले शहर में लॉक डाउन की घोषणा मार्च के शुरू से की जानी चाहिए थी।

इंदौर में कोरोना संक्रमण ज्यादा क्यों हुआ? इसका निष्कर्ष यही है कि कुछ नासमझ लोगों ने इस बीमारी की गंभीरता को नहीं समझा और प्रशासन ने भी कई गलतियां की। अब ये सारी खामियाँ शहर के लोगों पर भारी पड़ रही हैं। शुरू में प्रशासन ने इसे एक समुदाय विशेष तक फैली बीमारी समझा और तब्लीगी जमात पर सारा दोष मढ़कर बाकी शहर पर से नजर हटा ली।

एक कारण यह भी था कि टाटपट्टी बाखल में पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों पर पथराव हुआ तो ये मान लिया गया कि कोरोना इसी कोने में छुपा है। सारा ध्यान वहीं केंद्रित हो गया और सख्ती भी दिखाई दी। लेकिन, ऐसे में कोरोना दूसरे इलाकों में पसरता रहा। जिस टाटपट्टी बाखल को खलनायक समझा गया था, वहाँ ये महामारी लगातार कम होती गई। साथ ही एक समुदाय विशेष पर उठे कोरोना संक्रमण फैलाने के आरोप भी ठंडे पड़ गए।

प्रशासन की खामी रही कि वो संक्रमण फैलने का सही रास्ता नहीं खोज सका और ऐसे काम में उलझा रहा जो उसका काम नहीं है। प्रशासन पर पर्याप्त टेस्ट न कराने और समय पर रिपोर्ट न देने के भी आरोप लगे। एक समय ऐसा भी आया जब 9 हज़ार सैम्पल इकठ्ठा हो गए, जिनकी जाँच दिल्ली में कराई गई।

कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या तीन हज़ार के पार होने के साथ ही अब इंदौर संक्रमितों के मामले में देश का 7वां शहर हो गया। संक्रमण किस तेजी से बढ़ रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 12 दिन में एक हजार से ज्यादा नए मरीज सामने आए हैं। जबकि, शुरु में मरीजों की संख्या एक हजार तक आने में 30 दिन लग गए थे।

एक से दो हजार का आंकड़ा पहुँचने में 18 दिन लगे। लेकिन, दो से तीन हज़ार होने में समय और कम हो गया। ऐसे में सारे सरकारी दावे ख़ारिज हो जाते हैं कि इंदौर में स्थिति लगातार सुधर रही है। अभी इंदौर न तो सामान्य है और न ऐसे कोई आसार नजर आ रहे हैं। इंदौर में कोरोना संक्रमित पहला मरीज 24 मार्च को मिला था। उसके बाद से आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। पिछले 12 दिन का औसत देखा जाए तो शहर में रोज 83 से 85 मरीज मिल रहे हैं।

यहाँ बने क्वारंटाइन सेंटरों से अभी तक 2700 से ज्यादा लोगों को डिस्चार्ज किया जा चुका है। लेकिन, मरने वालों के आंकड़े का भी शतक हो गया। कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या को देखते हुए इंदौर देश का सातवां शहर बन गया है, जहाँ सबसे ज्यादा मरीज सामने आ रहे हैं। अब तक करीब 30 हज़ार लोगों की सैम्पलिंग की गई, जिसमें करीब 8 फीसदी की दर से पॉजिटिव मरीज मिले हैं।

60 दिन में 3000 मरीज मिलने का सीधा आशय है कि रोज के 50 पॉजिटिव मरीज। शुरुआत में सैंपलिंग बहुत कम हो रही थी, इसलिए पॉजिटिव मरीजों की दर भी 21 फीसदी से अधिक थी। अब ज्यादा सैंपलिंग होने से ये दर घटकर 8 फीसदी के आसपास आ गई।

इंदौर में कोरोना संक्रमण क्यों फैला, कहाँ से फैला और इसे काबू में क्यों नहीं किया जा सका, इसे लेकर कई तरह के तर्क-कुतर्क किए जा सकते हैं। पर,  वास्तव में जनता और प्रशासन दोनों तरफ से कई ऐसी गलतियां हुई हैं, जिन्हें समय रहते रोका जा सकता था। इसमें सबसे बड़ी खामी 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का खुला मखौल उड़ना था। शाम पांच बजे जब जनता कर्फ्यू ख़त्म हुआ तो राजवाड़े पर ऐसा जश्न मना, जैसे कोरोना भाग गया हो। सोशल डिस्टेंसिंग की भी जमकर धज्जियां उड़ाई गईं।

फिर एक दिन ऐसा भी आया जब प्रशासन ने शहर में तीन दिन के लिए दूध बंद कर दिया। शहर में त्राहि-त्राहि मच गई। अंत में दबाव में आकर उसी दिन शाम 5 बजे दूध की सप्लाय शुरू की गई। तब भी सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ी। देखने और सुनने में बात भले छोटी लगे, पर उस दिन पूरा शहर दूध के लिए जिस तरह उमड़ा, वो भी संक्रमण फैलने का एक कारण है।

बाहर से शहर में आने वाले लोग भी शहर को बीमार करने के दोषी हैं। 25 मार्च को अचानक शहर में 5 नए मरीज मिले। ये सभी बाहर से आए थे। इनमें दो ने वैष्णोदेवी और हिमाचल की यात्रा की थी। जब ये इंदौर आए तो उन्हें हल्का बुखार आया। 23 मार्च को उन्हें बॉम्बे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जांच में दोनों में कोरोना के लक्षण मिले। बाद में दोनों स्वस्थ भी हो गए।

26 मार्च को मरीजों की संख्या 10 हो गई। 27 मार्च को आंकड़ा 14 पहुंचा और 5 दिन में इंदौर 44 मरीजों के साथ देश के सबसे संक्रमित शहरों की सूची में आठवें नंबर पर पहुंच गया। बाद के तीन दिनों में ये आंकड़ा 80 के ऊपर निकल गया और इंदौर टॉप-थ्री शहरों में आ गया। जागरूकता का अभाव भी एक बड़ा कारण है। 28 मार्च को एक संक्रमित मरीज एमआर टीबी अस्पताल से चोरी-छुपे भाग गया। अस्पताल से वो अपने घर गया, जहाँ उसने अपने 3 बच्चों के अलावा अन्य 12 लोगों को संक्रमित किया।

इंदौर जिले के हॉट स्पॉट बनने की बात दिल्ली से हफ्ते भर के लिए इंदौर आई केंद्र सरकार की टीम ने भी स्वीकारी। केंद्रीय टीम ने कहा कि इंदौर में मामले बढ़ने का कारण है कि यहां के लोगों ने लॉक डाउन के नियमों का सही ढंग से पालन नहीं किया। प्रशासन की तरफ से भी कहीं न कहीं चूक हुई है।

इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर है, तो यहां के लोग यह मानकर संतुष्ट हो गए कि यहां बीमारी नहीं फैलेगी। जबकि, जांच में सामने आया कि लॉक डाउन के बावजूद यहां लोग सड़कों पर थे, जिनके कारण वायरस का संक्रमण बड़े स्तर पर तेजी से फैला। प्रशासन ने भी इस बात को स्वीकारा है कि कोरोना के खिलाफ तैयारी काफी पहले से ही शुरू कर देनी चाहिए थी, जो नहीं की गई।

जब मार्च में महामारी शुरू हुई, तब कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरने की कगार पर थी। ऐसे में राजनीतिक अनिश्चितता का तीन हफ्ते का लम्बा दौर चला और इसी में वायरस के प्रकोप से निपटने की पर्याप्त तैयारी नहीं हो सकी।

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टीम मध्‍यमत

 

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