इंदौर में ‘पतंजलि’ के कोरोना ‘ड्रग ट्रायल’ की अंतर्कथा।

हेमंत पाल

आयुर्वेदिक दवाइयों के क्षेत्र में देश में ‘पतंजलि’ एक बड़ा नाम है। आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव की ये कंपनी कई आयुर्वेदिक दवाइयां और अन्य उत्पाद बनाती है। कोरोना के इस दौर में जब सारी दुनिया की दवा कंपनियां इस संक्रमण की दवा खोजने में लगी हैं, ‘पतंजलि’ ने भी एक आयुर्वेदिक काढ़ा बनाया। वो इस काढ़े का इंदौर के कोरोना संक्रमित मरीजों पर ‘ट्रायल’ करना चाहता था।

शुरुआती कोशिश में उन्हें इंदौर कलेक्टर ने अनुमति भी दे दी। लेकिन, जब इस अनुमति के खिलाफ आवाज उठी तो उसे निरस्त कर दिया गया। बताते हैं कि वास्तव में ये ‘ड्रग ट्रायल’ ही था। आयुर्वेद में काढ़ा दवा ही है। कलेक्टर को ऐसी कोई अनुमति देने का अधिकार भी नहीं है। इसके लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है और इसके नियम-कायदे काफी कड़े हैं। ‘ड्रग ट्रायल’ मामले में इंदौर वैसे भी बदनाम हो चुका है। ऐसे में यदि ‘पतंजलि’ का काढ़ा उलटा असर कर जाता तो मामला विवादस्पद बन सकता था।

कोरोना संक्रमण दवा को लेकर दुनिया भर में अनुसंधान चल रहे हैं। ज्यादातर कोशिश एलोपैथी के क्षेत्र में वैक्सीन बनाने को लेकर हो रही है। लेकिन,  आयुष मंत्रालय के आयुर्वेदिक काढ़े के उपयोग की एडवायजरी जारी होने के बाद आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव भी कोरोना की आयुर्वेदिक दवा बनाने में जुट गए। बताते हैं कि उन्होंने काढ़ा बना भी लिया। लेकिन, ये कितना कारगर है, इसका प्रयोग मानव पर करने के लिए उन्होंने इंदौर को चुना, जहाँ कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या सर्वाधिक है।

‘पतंजलि’ ने दावा किया है कि उनके बनाए आयुर्वेदिक काढ़े का प्रभाव तत्काल नजर आता है। बताते हैं कि आचार्य बालकृष्ण ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह से बात करके इंदौर में इस काढ़े के ट्रायल प्रस्ताव रखा था। मुख्यमंत्री से क्या आश्वासन मिला, यह तो पता नहीं चला, पर गुरुवार को ‘पतंजलि’ के मुखिया आचार्य बालकृष्ण ने इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह और इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) के सीईओ विवेक श्रोत्रिय से इस बारे में बात की और काढ़े के ट्रायल का प्रस्ताव रखा।

प्रशासन को भेजे प्रस्ताव में दस्तावेजी प्रमाण के साथ कई दावे किए जाने की जानकारी मिली है। ये भी बताया गया कि इस आयुर्वेदिक काढ़े की टेस्ट रिपोर्ट जयपुर में भी हो चुकी है। सवाल उठता है कि जयपुर में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम करता है, तो फिर इंदौर को ड्रग ट्रायल के लिए क्यों चुना गया। जयपुर का संस्थान देश में अपनी तरह का पहला राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का आयुर्वेद संस्थान है, जिसका लक्ष्य एवं उद्देश्य ही आयुर्वेद दवाइयों के विभिन्न पहलुओं के अनुसंधान करवाना है।

इंदौर कलेक्टर को भेजे प्रस्ताव में तीन कैटेगरी में कोरोना संक्रमित मरीजों का चुनाव कर आयुर्वेदिक काढ़े का उन पर प्रयोग किया जाना था। बताते हैं कि ये काढ़ा अश्वगंधा और गिलोय से बना है। पतंललि ने इस काढ़े से मरीजों के ठीक होने का भी दावा किया।

लेकिन, जब ये जानकारी बाहर आई कि ‘पतंजलि’ को उसकी दवा का इंदौर के कोरोना मरीजों पर प्रयोग करने की अनुमति मिली है, तो इसका विरोध शुरू हो गया। कई संगठनों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। क्योंकि, ड्रग ट्रायल मामले में इंदौर पहले ही दुनिया भर में बदनाम हो चुका है। यहाँ के कई नामी डॉक्टर्स इस मामले में फंस गए थे। ऐसे में कलेक्टर ने ‘पतंजलि’ को किस आधार पर अनुमति दी, इस बारे में कोई खुलासा नहीं हुआ।

नियम के मुताबिक  किसी भी तरह की दवा के ट्रायल की अनुमति का एक निर्धारित प्रोटोकॉल है। उसके तहत एक प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। उस प्रक्रिया में कलेक्टर को इसकी अनुमति देने का अधिकार नहीं होता। किसी भी दवा के क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति इंडियन कॉउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) देती है। उसके आधार पर ही संबंधित राज्य की सरकार क्लिनिकल ट्रायल का फैसला करती है।

ग्वालियर दक्षिण के कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने भी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को ‘पतंजलि’ के इस ड्रग ट्रायल के खिलाफ पत्र लिखा था। मुख्यमंत्री के निर्देश पर कलेक्टर ने ये अनुमति दी, तो फिर इसे निरस्त करने का कोई कारण समझ नहीं आया। क्या मरीजों को काढ़ा पिलाने के प्रस्ताव से अलग जाकर ‘पतंजलि’ कोई ऐसा प्रयोग करना चाह रही थी, जिसकी जानकारी प्रस्ताव में नहीं थी।

इस मामले पर इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह का कहना है कि मेडिकल कॉलेज से प्राप्त प्रस्ताव में आयुर्वेदिक दवा मरीजों को काढ़े की तरह देने की बात कही गई थी। अनुमति भी दवा बांटने के लिए दी थी, ट्रायल की नहीं। उनका ये भी कहना है कि आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक दवाइयों के क्लीनिक ट्रायल नहीं होते। इन सभी तथ्यों को देखते हुए आवेदन पर अनुमति देने के बाद निरस्त कर दी गई।

जबकि, मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. ज्योति बिंदल का कहना है कि प्राप्त आवेदन में आयुर्वेदिक ड्रग कोरोना संक्रमित मरीज को देने और परिणाम को टेस्ट करने की बात लिखी थी, इसलिए आवेदन प्रमुख सचिव को भेजा था। इन दोनों की बात में समानता नहीं होने से लगता है कि कुछ तो ऐसा है, जो छुपाया जा रहा है।

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टीम मध्‍यमत

 

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