अजय बोकिल
क्या भगवा आंतकवाद हैदराबाद की मक्का मस्जिद ब्लास्ट के सभी आरोपियों के बरी हो जाने के बाद स्वत: खत्म हो गया है या फिर ऐसा कोई विचार या सामूहिक प्रयास अस्तित्व में था ही नहीं? ये सारे सवाल फिर से इसलिए जी उठे हैं कि कोर्ट के फैसले के बाद विपक्षी कांग्रेस ने भी यह कहना शुरू कर दिया है कि उसने ऐसे लफ्ज का इस्तेमाल कभी किया ही नहीं। न ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कभी ऐसी बात कही। यहां तक कि आए दिन बीजेपी और आरएसएस को आड़े हाथों लेने वाली कांग्रेस ने मक्का मस्जिद ब्लास्ट के सभी आरोपियों को बरी किए जाने और इस फैसले के बाद सम्बन्धित जज के इस्तीफे पर सधी और ठंडी प्रतिक्रिया जताई।
हालांकि जज के इस्तीफे से भी कई संदेह पैदा हो रहे हैं। मसलन फैसले के तुरंत बाद जज ने त्यागपत्र क्यों दिया? या उन्हें देना पड़ा? अगर इस्तीफा ही देना था तो इस फैसले तक वो क्यों रुके? इसके पीछे कारण जो हो, लेकिन जो आरोपी बरी हुए हैं, उन्हें भगवा आंतकी ब्रिगेड का सिपाही बताया जाता रहा है। कहा यह भी जा रहा है कि सरकारी जांच एजेंसियां पूरे सबूत नहीं जुटा सकीं (या वो जुटाना चाहती ही नहीं थीं), इसलिए आरोपियों को बरी किया गया।
मक्का मस्जिद में इस आतंकी हमले में 7 लोगों की जानें गई थीं। माना गया था कि इ्स्लामी आतंकवाद का यह हिंसक प्रतिशोध था। जांच एजेंसियों ने इस मामले में हिंदू संगठनों से जुड़े कुछ लोगों को आरोपी बनाया था। लेकिन 10 साल चली कार्रवाई के बाद कोर्ट ने सभी आरोपियों को छोड़ दिया। ये आरोपी वास्तव में कोई ठोस सबूत न मिलने के कारण छूटे अथवा उन्हें छोड़ने के पीछे कोई आंतरिक दबाव काम कर रहा था, कहना मुश्किल है।
लेकिन सोचने की बात यह है कि क्या भगवा आंतकवाद जैसा कोई विचार या ‘मैकेनिज्म’ सचमुच काम कर रहा है? कर सकता है? क्या वह प्रति धार्मिक आतंकवाद का कारगर तोड़ हो सकता है? क्या आतंकवाद किसी खास रंग का हो सकता है? क्या आतंकवाद को ‘भगवा’ बताने के पीछे कोई खास राजनीतिक मंशा थी ? या फिर हिंदुओं की उग्रता को पारिभाषित करने ऐसा शब्द गढ़ा गया? ऐसा करने से किसको कितना राजनीतिक फायदा हुआ या घाटा? ये ऐसे सवाल हैं, जिनपर गंभीरता से विचार जरूरी है।
पहली बात तो ‘भगवा आतंकवाद’ जैसा शब्द वजूद में आया कैसे, किसने चलाया? उपलब्ध जानकारी के अनुसार ‘भगवा आंतक’ शब्द का सबसे पहले प्रयोग फ्रंटलाइन पत्रिका ने 2002 में गुजरात के दंगों के संदर्भ में किया था। लेकिन तब उसे खास तवज्जो नहीं मिली। बाद में मक्का मस्जिद ब्लास्ट के सिलसिले में पुलिस ने कुछ हिंदुओं को पकड़ा। 2010 में दिल्ली में राज्यों के पुलिस प्रमुखों की बैठक में तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने ‘भगवा आतंक’ को रोकने की बात कही। इसको लेकर चिदम्बरम के खिलाफ कोर्ट में मानहानि का मामला भी दायर हुआ। जल्द ही सत्तारूढ़ कांग्रेस और कुछ अन्य सेक्युलर पार्टियों ने भाजपा पर हमले करने के लिए इस शब्द को अपना लिया।
हालांकि चिदम्बरम के बयान पर कांग्रेस में भी मतभेद थे। पार्टी के तत्कालीन महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने बाकायदा चिदम्बरम के ‘भगवा आतंकवाद’ के बयान से असहमति जताई थी। अब कांग्रेस खुद कह रही है कि ‘भगवा आतंकवाद‘ कुछ नहीं होता। कांग्रेस प्रवक्ता पीएल पुनिया ने कहा कि आतंकवाद एक आपराधिक मानसिकता है और इसे किसी धर्म या समुदाय से नहीं जोड़ा जा सकता। उधर बीजेपी ने पलटवार करते हुए राहुल और सोनिया गांधी को देश से माफी मांगने को कहा।
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने इसके कुछ कथित सबूत भी पेश किए। इसके मुताबिक राहुल गांधी ने अमेरिका के तत्कालीन राजदूत को बताया था कि कट्टरवादी हिंदू संगठन लश्कर ए तैयबा से भी ज्यादा खतरनाक हैं। अगर सच में ऐसा था तो कांग्रेस अब भगवा आतंक के अपने जुमले से क्यों बच रही है? उसे सच समझ आ गया है या यह जुमला ही राजनीतिक दृष्टि से उसे सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। इस जुमले ने मोदी को नेता बनाने में जितनी मदद की, उतनी शायद उनकी हिंदूवादी छवि ने भी नहीं की होगी।
कारण साफ है कि चंद हिंदुओं ने मुस्लिम आंतकी संगठनों की तर्ज पर प्रति आंतक फैलाने का दुस्साहस किया होगा, लेकिन हिंदू मानसिकता आंतक के लिए कहीं से भी उपजाऊ नहीं है। जिस तरह इस्लामी आतंकवाद के लिए किसी ने ‘हरा आतंकवाद’ शब्द प्रयोग नहीं किया, उसी तरह भगवा आतंकवाद कहना ठीक नहीं है। क्योंकि आंतक को किसी रंग में रंगना ही पूर्वग्रहग्रस्त सोच की निशानी है। हिंदू अथवा ‘भगवा आतंकवाद’ कहना सियासी जुमला भले हो, लेकिन वह व्यापक हिंदू सोच के खांचे में कहीं फिट नहीं बैठता। हमारी पौराणिक कथाओं में राक्षसी आंतक और अनाचार देव संस्कृति को नकारने के लिए है। लेकिन वहां भी एक निश्चित और संकुचित धार्मिक राजनीतिक उद्देश्य के लिए निर्दोषों की नृशंस हत्या का अतिवाद मान्य नहीं है।
जिस तरह दुनिया के डेढ़ अरब मुसलमानों में से कुछ लाख लोगों द्वारा आंतक का रास्ता अपनाए जाने से इस्लाम को ही आतंकवादी बताना गलत है, उसी तरह चंद हिंदुओं द्वारा की गई अविवेकी प्रतिहिंसा को ‘भगवा आंतक’ बताना भी सही नहीं है। अतिवादी तत्व हर धर्म और विचारधारा में होते हैं, लेकिन वह मुख्य धारा नहीं होती। हिंदुओं के धार्मिक रंग भगवा को आंतकवाद से जोड़ने की नासमझी कांग्रेस को राजनीतिक रूप से भारी पड़ी है। क्योंकि इससे अमूमन हर वो हिंदू भी भीतर से आहत हुआ, जो ‘जीयो और जीने दो’ का ककहरा पढ़ कर ही बड़ा हुआ है।
इसी के चलते वह उस भाव धारा में बह निकला, जो हिंदुस्तान हिंदुओं का मानकर चलती है। सेक्युलरवाद, फासीवाद, साम्यवाद और राष्ट्रवाद की लड़ाई अपनी जगह है, उनके राजनीतिक हित अपनी जगह हैं, लेकिन भगवा आंतकवाद का जुमला गढ़ने वालों ने अनजाने में ही लाखों विरोधी पैदा कर लिए। कांग्रेस को अगर यह बात समझ आ गई है तो अच्छी बात है।
(सुबह सवेरे से साभार)