नमक और अचार पर आखिर कौन करे विचार?

मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में उठी मांग ने देश की उस बुनियादी समस्‍या की ओर ध्‍यान दिलाया है जिसकी लगातार अनदेखी से हमारी अर्थव्‍यवस्‍था पर गंभीर असर हो रहा है।

भारतीय किसान संघ ने मांग उठाई है कि सरकार यह तो तय करे कि अचार और नमक जैसी चीजें बनाने का काम टाटा और अंबानी की कंपनियां न करें। युवा किसान उद्यमी कार्यशला में संगठन के राष्‍ट्रीय महामंत्री दिनेश कुलकर्णी ने कहा कि टाटा और अंबानी की कंपनियां हवाई जहाज बनाएं, स्‍टील बनाएं हमें कोई आपत्ति नहीं, लेकिन छोटे काम तो दूसरों के लिए छोड़ दें।

कुलकर्णी ने खुदरा क्षेत्र में एफडीआई का विरोध करते हुए कहा कि वॉलमार्ट और अलीबाबा जैसी कंपनियों ने छोटे व्‍यापारियों का धंधा चौपट कर दिया है। इसी तरह खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग में भी किसानों को बढ़ावा और संरक्षण मिलना चाहिए।

कुलकर्णी ने जो मुद्दे उठाए हैं, वे न तो नए हैं और न ही यह कहा जा सकता है कि ये देश या प्रदेश में सत्‍ता संचालन करने वालों की निगाह में न हों। छोटे व्‍यापारियों, कुटीर उद्योगों, खादी एवं ग्रामोद्योग और हस्‍तशिल्‍प कारीगरों की हालत क्‍या होती जा रही है यह बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन कथनी और करनी में कोई तालमेल न होने से इन वर्गों की स्थिति दिन पर दिन दयनीय हो रही है। एक समय अचार, बड़ी और पापड़ जैसी वस्‍तुओं का उत्‍पादन कुटीर या लघु उद्यमियों के पास हुआ करता था। इस उत्‍पादन से स्‍थानीय स्‍तर पर लोगों को रोजगार मिल जाता था। लेकिन अब रोजमर्रा के उपयोग की ऐसी कोई भी चीज नहीं बची है, जो बड़े घराने या कॉरपोरेट न बना रहे हों।

तर्क दिया जा सकता है कि किसी भी उद्यमी को चाहे वह छोटा हो या बड़ा, किसी भी चीज के निर्माण से रोका कैसे जा सकता है। लेकिन इसके समानांतर यह तो सोचना ही होगा कि इस काम में लगे छोटे और गरीब तबके को संरक्षण कैसे मिले। यह बात बिलकुल सही है कि अचार और पापड़ बनाने का काम भी टाटा, अंबानी और अडाणी करने लगेंगे तो छोटे लोग कहां जाएंगे? उनके लिए तो अपना रोजमर्रा का खर्च चलाना ही मुश्किल है, वे इन भीमकाय उद्योग घरानों का मुकाबला कैसे कर पाएंगे?

छोटे कामों में बड़े घरानों और कॉरपोरेट के कूद पड़ने से बाजार का पूरा दृश्‍य ही बदल गया है। जिस तरह से उत्‍पादों के विज्ञापन और मार्केटिंग पर करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, उसके चलते लघु और कुटीर उद्योगों का मरना तय है। और यह सब उस सरकार के समय हो रहा है जो विपक्ष में रहते हुए स्‍वदेशी वस्‍तुओं के लिए आंदोलन चलाती रही है।

आज का पूरा दृश्‍य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को भी चोट पहुंचाने वाला है। हम धीरे धीरे स्‍वदेशी और स्‍थानीय स्‍तर पर आत्‍मनिर्भर इकाइयों को ही खत्‍म करते जा रहे हैं। यही हाल खुदरा व्‍यापार का है। वॉलमार्ट जैसी बहुराष्‍ट्रीय रिटेल कंपनियों और ऑन लाइन शॉपिंग जैसी नई व्‍यवस्‍थाओं ने परंपरागत खुदरा व्‍यापार को जबरदस्‍त धक्‍का पहुंचाया है। बाकी रही सही कसर चीन से आने वाले माल ने पूरी कर दी है। आज हालत यह है कि हमारा कोई भी त्‍योहार बगैर चीनी माल के मनता ही नहीं।

एक और बड़ी समस्‍या बिचौलियों की है। चाहे किसान हों या छोटे कारीगर, उन्‍हें उनकी उपज अथवा शिल्‍प या उत्‍पाद का उचित दाम भी नहीं मिल पा रहा। कई बार तो उनकी लागत तक नहीं निकल पाती। पिछले दिनों गणेशोत्‍सव के दौरान बिकने वाली मूर्तियों को लेकर हमने इसी कॉलम में लिखा था कि बाजार ने किस तरह हमारे परंपरागत कारीगरों के रोजगार को खा लिया है।

इन सब विपरीत परिस्थितियों का मिलाजुला असर यह हो रहा है कि उत्‍पादन या निर्माण क्षेत्र से विमुख होकर लोग सेवा क्षेत्र की ओर जा रहे हैं। गांवों में, कस्‍बों में, परंपरागत शिल्‍प या व्‍यापार की संभावना खत्‍म होने के कारण धड़ल्‍ले से शहरों की ओर पलायन हो रहा है। इसने हमारे ग्रामीण और शहरी दोनों जगहों के नियोजन को प्रभावित किया है।

छोटे उद्यमी हमारे सिस्‍टम से भी लगातार शोषण और प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं। ज्‍यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है, जल्‍दी ही त्‍योहारों का मौसम आने वाला है। पिछले कुछ सालों की तरह इस बार फिर से बाजार में वही खेल होगा। कहा जाएगा कि परंपरागत मिठाइयों में मिलावट होती है। इस मिलावट के नाम पर जगह जगह छापे मार जाएंगे। इसका फायदा कॉरपोरेट उठाएगा। टीवी पर लुभावने विज्ञापन देकर लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाएगा कि वे स्‍थानीय हलवाई के हाथ की बनी मिठाइयों या अन्‍य खाद्य पदार्थों के बजाय बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों अथवा बड़े कॉरपोरेट द्वारा निर्मित डिब्‍बाबंद चीजों को खरीदें। और ऐसा होगा भी। अभी तक हमारे बड़े त्‍योहार कई लोगों के लिए साल भर घर चलाने लायक आमदनी जुटा लेने का जरिया होते थे। लेकिन अब तो दीवाली पर घरों की पुताई के लिए भी मशीनें और कॉरपोरेट टीम आ गई है। जो लोग कूची और रंग लेकर घरों को पोता करते थे, हालात ने उनकी किस्‍मत पर ही काला रंग पोत दिया है। सच में बहुत कठिन समय है…

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