शुक्रवार को 17वीं लोकसभा का चुनाव प्रचार अंतत: समाप्त हो गया। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह चुनाव कई तरह की बातों के लिए जाना जाएगा। लेकिन इनमें जो बात सबसे ज्यादा याद की जाएगी वो इस चुनाव में हुई बातें ही होंगी। देश ने चुनाव अभियान में पार्टियों के अलग-अलग रंगों वाले जितने झंडे नहीं देखे होंगे, उतने इस बार उसने जबान के रंग देखे।
चुनाव की जुबानी जंग खत्म होते होते महात्मा गांधी भी लपेटे में आ गए। भोपाल से भाजपा की उम्मीदवार प्रज्ञासिंह ठाकुर ने गांधी के हत्यारे को लेकर बयान दे डाला कि ‘गोड़से देशभक्त थे, हैं और रहेंगे। उन्हें हिंदू आतंकवादी बताने वाले अपने गिरेबान में झांककर देखें। अबकी बार चुनाव में ऐसे लोगों को जवाब दे दिया जाएगा।’ प्रज्ञा की यह प्रतिक्रिया अभिनेता कमल हासन के उस बयान के जवाब में आई थी जिसमें उन्होंने कहा था-‘’आजाद भारत का पहला आतंकवादी एक हिंदू था और उसका नाम नाथूराम गोडसे था।‘’
तय था कि प्रज्ञा के बयान पर विवाद होना ही है और वह हुआ भी। चौतरफा आलोचना से घिरने के बाद भाजपा के प्रबंधक सक्रिय हुए और आनन फानन में सबसे पहले तो उन्होंने प्रज्ञा के बयान से पल्ला झाड़ा। प्रज्ञा को निर्देश दिया गया कि वे बयान पर माफी मांगें। इस पर प्रज्ञा ने सफाई दी कि ‘’मेरी भावना किसी को कष्ट पहुंचाने की नहीं थी। (मेरी बात से) किसी की भावनाओं को कष्ट पहुंचा है तो मैं माफी मांगती हूं। गांधी जी ने देश के लिए जो भी किया है उसे भुलाया नहीं जा सकता है। मैं उनका बहुत सम्मान करती हूं। मेरे बयान को मीडिया ने तोड़-मरोड़कर पेश किया है। मैं पार्टी का अनुशासन मानने वाली कार्यकर्ता हूं। जो पार्टी की लाइन है वही मेरी लाइन है।‘’
लेकिन इसी बीच मामला तूल पकड़ता रहा। प्रज्ञा की तरह भाजपा के कुछ और नेताओं के बयान उसी लाइन पर सामने आए। विपक्ष जब ज्यादा हमलावर होने लगा तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को आगे आना पड़ा। उन्होंने कहा-‘’पिछले दो दिनों में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, अनंत कुमार हेगड़े और नलिन कटील के जो बयान आए हैं वो उनके निजी बयान हैं, उनसे बीजेपी का कोई संबंध नहीं है। इन लोगों ने अपने बयान वापस लिए हैं और माफी भी मांगी है। फिर भी सार्वजनिक जीवन और बीजेपी की गरिमा और विचारधारा के विपरीत आए इन बयानों को पार्टी ने गंभीरता से लेकर मामला अनुशासन समिति को भेजने का निर्णय किया है।‘’
पर शुक्रवार को ऐसा लगा कि इतने सारे सफाई अभियान के बाद भी पार्टी को महसूस हुआ होगा कि गांधी विरोधी बयान से चुनाव के दौरान नुकसान ज्यादा हो सकता है तो सबसे ऊपर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान आया। उन्होंने एक टीवी चैनल को इंटरव्यू में कहा- ‘’गांधीजी और गोडसे के बारे में जो भी बातें कही गईं या जो भी बयान दिए गए, ये भयंकर खराब हैं। हर प्रकार से घृणा के लायक हैं, आलोचना के लायक हैं, सभ्य समाज के अंदर इस प्रकार की भाषा नहीं चलती है। इस प्रकार की सोच नहीं चलती है। इसलिए ऐसा करने वालों को आगे सौ बार सोचना पड़ेगा। और दूसरा… उन्होंने माफी मांग ली, अलग बात है लेकिन मैं अपने मन से (उन्हें) माफ नहीं कर पाऊंगा।‘’
इस चुनाव में कई लोगों ने बड़ा से बड़ा और खराब से खराब बयान दिया है। कई तरह के आरोप प्रत्यारोप हुए हैं लेकिन आप यदि याद करें तो आपको शायद ऐसा कोई प्रसंग याद नहीं आएगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी बयान पर ऐसी प्रतिक्रिया दी हो। और वह भी खुद अपनी ही पार्टी के किसी नेता के बारे में…, एक ऐसे नेता के बारे में जिसे खुद पार्टी ने हिंदू आतंकवाद का नारा देने वालों को करारा जवाब देने के लिए चुनाव मैदान में उतारा हो।
यहां एक और बात उठती है कि जब प्रज्ञासिंह ने माफी मांग ली थी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उनके बयान का मामला पार्टी अनुशासन समिति को सौंप दिया था तो फिर प्रधानमंत्री को इतना कड़ा बयान देने की जरूरत क्यों पड़ी? मुझे लगता है कि इसके पीछे एक कारण राहुल गांधी भी रहे होंगे। याद कीजिए सिख विरोधी दंगों को लेकर दिया गया सैम पित्रोदा का बयान। पित्रोदा ने उन दंगों को लेकर कह दिया था- हुआ तो हुआ… और मोदी ने चुनाव के अंतिम दो चरणों का प्रचार अभियान इन्हीं तीन शब्दों के इर्द गिर्द बुन डाला था।
कांग्रेस को भी अहसास हो गया था कि पित्रोदा के बयान ने उसे बुरी तरह डैमेज किया है। इसलिए राहुल गांधी ने 13 मई कोपंजाब के फतेहगढ़ साहिब की रैली में कहा था कि सिख दंगों को लेकर सैम पित्रोदा ने गलत कहा। ‘’मैंने उनको यह बातें फोन पर कही हैं। मैंने उनसे कहा, जो कुछ भी उन्होंने कहा वह गलत है और उनको इस पर शर्म आनी चाहिए, वह सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।’’
ऐसा लगता है कि प्रज्ञा वाले मामले में राहुल का यह बयान कहीं न कहीं नरेंद्र मोदी के जहन में रहा होगा। वे अंतिम चरण के मतदान से ऐन पहले न तो कांग्रेस को कोई मौका देना चाहते होंगे और न ही जनता में यह संदेश जाने देना चाहते होंगे कि‘हुआ तो हुआ’ पर कांग्रेस को घेरने और कोसने वाले मोदी, गोडसे वाले मामले में चुप क्यों रहे? शायद इसीलिए इस चुनाव में पहली बार नरेंद्र मोदी ने अपनी ही पार्टी की गलती को स्वीकार करते हुए प्रज्ञा को कभी न माफ करने वाली बात कही।
लेकिन इसके बावजूद यह सवाल तो अनुत्तरित ही रहता है कि जब प्रज्ञासिंह ठाकुर के बयान को खुद देश के प्रधानमंत्री घृणा और आलोचना के लायक मानते हैं, उसे सभ्य समाज की भाषा और सोच नहीं मानते हैं, और इन सबसे ऊपर प्रज्ञा सिंह द्वारा माफी मांग लिए जाने के बावजूद यदि वे कहते हैं कि मैं तो उन्हें मन से कभी माफ नहीं कर पाऊंगा, तब ऐसे व्यक्ति को पार्टी ने जनता की नुमाइंदगी के लिए चुना ही क्यों? सवाल यह भी उठता है कि यदि प्रज्ञासिंह ठाकुर भोपाल से चुनाव जीत गईं तो ‘सभ्य समाज की भाषा और सोच’ के विपरीत आचरण करने वाला प्रतिनिधि भोपाल की जनता पर थोपने की जिम्मेदारी कौन लेगा?