इस भवन का नाम पढ़िये और नाम के ऊपर लिखी समाहरणालय, पटना की तख्ती को भी पढ़िये। और फणीश्वरनाथ रेणु जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत के मौके पर बिहार सरकार की इस अजीबोगरीब कहानी को समझिये। वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर जी ने इस कहानी की तरफ हम सबका ध्यान आकृष्ट किया है।
महान लेखक फणीश्वरनाथ रेणु के नाम पर बना यह भवन महज एक इमारत नहीं एक साहित्यकार राजनेता का सपना था। वे जाबिर हुसैन थे, बिहार विधान परिषद का सदस्य रहते हुए 1996 में उन्होंने यह सपना देखा था कि बिहार में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिये एक भवन हो, जहां राज्य की दूसरी भाषाओं और बोलियों के संवर्धन का भी काम चले। उनका विचार इतना दृढ़ था कि उन्होंने उस वक़्त इस काम के लिये अपना सरकारी आवास खाली कर दिया।
बाद के दिनों में उन्होंने सम्भवतः राज्य सभा सदस्य रहते हुए अपनी पूरी सांसद निधि पटना में एक हिंदी भवन बनाने के लिये समर्पित कर दी। 2007 में यह अत्याधुनिक भवन बनकर तैयार भी हो गया। मगर पहले इसे चन्द्रगुप्त प्रबंधन संस्थान को कक्षाओं के संचालन के लिये दे दिया गया। 2015 में अपना भवन बन जाने पर जब संस्थान ने इसे खाली कर दिया तो इसे कभी चुनाव करवाने तो कभी बाढ़ राहत अभियान चलाने के लिये इस्तेमाल किया जाने लगा।
अब पटना जिला का समाहरणालय इस भवन में शिफ्ट हो गया है। जिलाधिकारी महोदय यहां अपने अमले के साथ बैठ रहे हैं। मतलब यह कि यहां हिंदी क्या किसी भाषा या संस्कृति का कोई सिलसिलेवार काम हुआ ही नहीं।
राजधानी के साहित्यकार दबे स्वर में इसका विरोध करते जरूर हैं। मगर कभी लोगों ने एकजुट होकर सरकार से यह नहीं कहा कि यह हमारा भवन है। इसे हमारी गतिविधियों के लिये छोड़ दीजिये। आप अपना तामझाम कहीं और ले जाइए।
आज फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मसदी का वर्ष शुरू हो रहा है। क्या हम इस साल सरकार पर दबाव बनाकर उनके नाम पर बने इस भवन को मुक्त कराने के लिये सोच सकते हैं? सोचना चाहिये।
(पुष्यमित्र की फेसबुक वॉल से)