राकेश अचल
कोरोना-काल में हुई बरबादी से निपटने के लिए 20 लाख करोड़ का विशेष पैकेज देकर भारत भाग्य विधाता बने लोग बाजार का करुण क्रंदन सुनने को तैयार नहीं हैं, जबकि केवल छह दिन में देश का 11 लाख करोड़ रुपया पलक झपकते डूब गया। कहते हैं कि ग्लोबल स्टॉक्स में तेज बिकवाली, कोविड-19 के बढ़ते मामलों और विदेशी फंड में भारी आउटफ्लो से शेयर बाजार में हाहाकार मचा हुआ है। पिछले छह सत्रों में बाजार में लगातार गिरावट आई और इससे निवेशकों की 11 लाख करोड़ रुपये से अधिक की रकम डूब गई है। इन 6 कारोबारी सत्रों में बीएसई सेंसेक्स में करीब 2750 अंक यानी 7 फीसदी गिरावट आई है। लेकिन ड्रग-राष्ट्र में उलझे गोदी मीडिया और सरकार को ये सब दिखाई नहीं देता।
पूरे देश में जब बैंकें लगातार बचत पर मिलने वाले लाभ घटा रही हैं, तब बाजार में आई इस गिरावट से आम आदमी की कमर का टूटना देश में जैसे कोई घटना है ही नहीं। ठीक है कि ये बाजार, दुनिया के बाजारों पर निर्भर हैं, लेकिन कोई ये मानने को राजी नहीं कि इसके पीछे सरकारी नीतियों की नाकामी और देश में सरकार के प्रति बढ़ता अविश्वास भी एक बड़ी वजह है। देश की सरकार ‘एकला चलो’ की नीति पर चलते हुए दावा करती है कि उसकी नीति ‘सबका साथ, सबका विकास’ है लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से देश की संसद में बिना विपक्ष के सारा काम हुआ, उससे जाहिर है कि सरकार का सबको साथ लेकर चलने में कोई यकीन नहीं है।
आप मानें या न मानें लेकिन हकीकत ये है कि कमजोर बाजार धारणा से बीएसई लिस्टेड कंपनियों का बाजार पूंजीकरण घटकर 148.85 लाख करोड़ रुपये रह गया जो 16 सितंबर को 160.08 लाख करोड़ रुपये था। आईआईएफएल सिक्योरिटीज के हेड ऑफ रिसर्च अभिमन्यु सोफट कहते हैं कि, ‘बाजार में और गिरावट आ सकती है। स्कॉटलैंड और ब्रिटेन ने कहा है कि वे लॉकडाउन लगाने पर विचार कर रहे हैं।
आशंका है कि कई और देश लॉकडाउन लगा सकते हैं। इससे बाजार के हाथ-पैर फूले हुए हैं।‘ कोविड को लेकर भारत में भी खबरें निराशाजनक हैं। यहां भी कुछ राज्यों ने दोबारा से ‘लाकडाउन’ का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। जाहिर है कि कोविड के कारण स्थितियां धीरे-धीरे बेकाबू हो रही हैं, और सरकार है कि मोर चुगाने में लगी है।
बाजार के बारे में अपनी जानकारी शून्य है, इसलिए अक्सर हमें सुनी-सुनाई बातों पर ही यकीन करना पड़ता है, लेकिन बाजार में हमारे जैसे असंख्य भारतीयों का पैसा भी लगा है इसलिए हमारी चिंता स्वाभाविक हो जाती है। एलकेपी सिक्योरिटीज के शोध प्रमुख एस. रंगनाथन कह रहे हैं कि, ‘कमजोर वैश्विक रुख के बीच अमेरिका से चिंताजनक आंकड़ों की वजह से बाजारों में गिरावट आई। इसके अलावा कोविड-19 संक्रमण फिर उबरने की चिंता से यूरो क्षेत्र के बाजार टूट गए। भारतीय बाजारों में टीसीएस और इन्फोसिस की अगुवाई में जबर्दस्त नुकसान रहा। इन दोनों कंपनियों के अलावा रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पिछले पांच माह के दौरान बाजार में सुधार लाने में मुख्य योगदान दिया।’
सवाल ये है कि जब बाजार की हालत इतनी खराब है तो सरकार निवेशकों को भरोसा दिलाने के लिए आगे क्यों नहीं आ रही? इस गंभीर संकट के समय हमारी वित्त मंत्री मौन साधकर क्यों बैठीं हैं? क्या सरकार का दायित्व नहीं बनता कि इस संकट के समय उसकी तरफ से कुछ ऐसी घोषणाएं की जाएँ जिससे बाजार की तबियत कुछ तो सुधरे।
जानकार बताते हैं कि भारत समेत दुनियाभर में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे हैं। ‘कोविड-19 इण्डिया ओआरजी’ के मुताबिक भारत में कोरोना के कुल मामले 57 लाख से ज्यादा हो गए हैं। दुनिया भर में यह आंकड़ा 3.21 करोड़ के पार पहुंच गया है। ऐसे में बिजनेस ग्रोथ के आंकड़े में सुधार के कम ही आसार हैं। केयर रेटिंग्स ने अनुमान जताया है कि इकोनॉमी में ग्रोथ चालू वित्त वर्ष के अंत तक शायद ही दिखाई दे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वित्त मंत्रालय को भी इस वित्त वर्ष में इकोनॉमी की ‘वी’ शेप रिकवरी की कम ही उम्मीद है।
कोढ़ में खाज वाली बात ये है कि सरकार उपभोक्ताओं के साथ खड़े होने के बजाय निर्माताओं के साथ खड़ी है। उनके पक्ष में श्रम क़ानून सुधारे जा रहे हैं, उनके पक्ष में कृषि क़ानून बदले जा रहे हैं। जानकार बताते हैं कि अगर आप इस फेस्टिवल सीजन में टेलीविजन खरीदने का प्लान बना रहे हैं तो आपको यह महंगा पड़ सकता है। टीवी के दामों में अगले सप्ताह से इजाफा हो सकता है। सरकार एक अक्टूबर से टीवी के ओपन सेल के आयात पर 5 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगाएगी। इससे टीवी की कीमत में वृद्धि होने की पूरी संभावना है। वैल्यू एडिशन संग लोकल मेन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने हेतु सरकार ने यह कदम उठाने का फैसला किया है।
बहरहाल सरकार को न छोटे निवेशकों की फ़िक्र है, न बाजार की। उसे फ़िक्र है बिहार जीतने की, उसे फ़िक्र है मध्यप्रदेश में त्तख्ता पलट से बनी सरकार को बचाये रखने के लिए उप चुनावों की। जनता को बाजार की चिंता छोड़कर सरकार की चिंता में शामिल होना चाहिए, आखिर सरकार भी तो जनता ने ही बनाई है। जनादेश को ध्वनिमत में बदलने वाली सरकार की आँख जब खुलेगी, तब खुलेगी। फिलहाल तो चौतरफा हाहाकार है जो ध्वनिमत में किसी को सुनाई नहीं दे रहा।
बाजार की खराब हालत के कारण डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर 73.89 पर आ गया है जो पिछले एक महीने का निचला स्तर है। लेकिन सरकार कुछ बोलने वाली नहीं है। आखिर बोले भी तो क्या बोले? स्थितियां बेकाबू जो होती जा रहीं हैं। सरकार को सूझ नहीं रहा कि इस संकट से कैसे निपटा जाये?
मजे की बात ये है कि बाजार के साथ सोना, चांदी और क्रूड सबके भाव नीचे जा रहे हैं लेकिन आम जनता को कोई राहत नहीं मिल रही। जनता की बजाने वाली थाली में आने वाली चीजें चुपचाप महंगी हो रही हैं, आटा, दाल, चावल ही नहीं अब तो आलू, प्याज, टमाटर के दाम भी चोरी-चोरी, चुपके-चुपके रोजाना बढ़ते जा रहे हैं, क्योंकि सरकार ने रोजमर्रा की तमाम चीजों को आवश्यक वस्तु मानने से इंकार करते हुए इन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है। अब आप जानें और आपका काम जाने। वैसे जागरण के लिए यही सही समय है, जाग जाइये अन्यथा सोते रहिएगा और रटते रहिएगा।