भ्रष्‍ट नौकरशाही की लगाम कौन कसे?

राकेश अचल

आजादी के पचहत्तरवें साल में भी इस देश के आम आदमी को देश की भ्रष्‍ट नौकरशाही से निजात नहीं मिल पायी है। नौकरशाही सत्ता के साथ मिलाकर दोनों हाथों से जनता को लूट रही है। नौकरशाही को लेकर आम आदमी और देश की सबसे बड़ी अदालत की चिंता एक जैसी है। दोनों चाहते हैं कि भ्रष्‍ट नौकरशाहों को जेल के सींखचों के पीछे होना चाहिए, लेकिन सवाल ये है कि भ्रष्‍ट नौकरशाही की नकेल कसे कौन?

देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने ब्यूरोक्रेट्स और पुलिस अफसरों के बर्ताव पर सख्त टिप्पणी की है। जस्टिस रमना ने कहा कि देश में ब्यूरोक्रेट्स और पुलिस अफसर जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं वह बेहद आपत्तिजनक है। सरकार के साथ मिलकर अवैध तरीके से पैसा कमाने वाले अफसरों को जेल के अंदर होना चाहिए। जब जस्टिस रमना ये बात कहते हैं तो मान लेना चाहिए कि पानी सर से ऊपर हो चुका है। जस्टिस रमना हमारे समाज के ही प्रतिनिधि हैं और उन्हें नौकरशाही के चरित्र के बारे में आम आदमी से कहीं ज्यादा जानकारी है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्‍पणी छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गुरजिंदर पाल सिंह द्वारा दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की। जीपी सिंह ने छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से अपने खिलाफ राजद्रोह,  भ्रष्टाचार और जबरन वसूली की तीन प्रथम सूचना रिपोर्ट्स के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमना,  जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान नौकरशाही के चरित्र को लेकर इतनी सख्त टिप्पणी की है। जस्टिस रमना ने कहा ‘देश में स्थिति दुखद है। जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में होता है,  तो पुलिस अधिकारी उस सरकार के साथ होते हैं। फिर जब कोई नई पार्टी सत्ता में आती है,  तो सरकार उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करती है। यह एक नया चलन है,  जिसे रोकने की जरूरत है।’

नौकरशाही के भ्रष्‍टाचार को लेकर जो बात आज देश के मुख्य न्यायाधीश कर रहे हैं वो ही बात इस देश की जनता दशकों से करती आ रही है,  लेकिन सुनता कौन है। नौकरशाही और सत्तारूढ़ दलों के बीच की दुरभि संधि टूटती ही नहीं है, उलटे ये और मजबूत होती जा रही है। केंद्रीय सतर्कता आयोग को वर्ष 2021 में भ्रष्टाचार के संबंध में 37, 208 शिकायतें मिली हैं जो कि पिछले साल की तुलना में 113 फ़ीसदी अधिक हैं।

देश में नौकरशाही का भ्रष्‍टाचार सुरसा के मुख की तरह बढ़ता ही जा रहा है। कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां के नौकरशाह दूध के धुले हों। राज्यों की तो छोड़िये केंद्र सरकार के सचिवालयों में बैठने वाले नौकरशाह तक भ्रष्ट हैं। मुझे याद आता है कि दस साल पहले सीबीआई ने तत्कालीन वित्त मंत्री जी. रामचंद्रन के निजी सचिव आर. पेरूमलस्वामी को उप आयकर आयुक्त अनुराग वर्धन से उनका तबादला करने के लिए कथित तौर पर 4 लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ़्तार किया था। मज़े की बात ये है कि पेरुमलस्वामी के पास 69 लाख रुपए नक़द के अलावा 85 लाख रुपए के ब्लैंक चेक भी मिले थे। ये तथ्य कि भ्रष्ट अधिकारी चेक से रिश्वत लेने के लिए तैयार थे,  बताता है कि भारतीय व्यवस्था में भ्रष्टाचार किस हद तक घर कर गया है।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सार्वजनिक कार्यालय से काम कराने के लिए 62 फ़ीसदी लोगों को रिश्वत देने का अनुभव है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का ही मानना है कि भारत में ट्रक मालिकों को हर साल अपना काम कराने के लिए करीब 22, 500 करोड़ रुपए की रिश्वत देनी पड़ती है। मजे की बात ये भी है कि देश के भ्रष्‍ट नौकरशाहों के नामों की सूची अक्सर जारी होती है लेकिन केंद्र सरकार के साथ ही राज्यों कि सरकारें इन सूचियों की तरफ से आँखें फेर लेती हैं। साल 1996 में उत्तर प्रदेश आईएएस एसोसिएशन के एक सर्वेक्षण में अखंड प्रताप सिंह को कथित रूप से प्रदेश का सबसे भ्रष्ट अफ़सर बताया गया था। उनकी सारी संपत्ति की जाँच कराने की माँग की गई थी,  जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने नामंज़ूर कर दिया था।

उत्तरप्रदेश के अखंड प्रताप सिंह इस अखंड भ्रष्ट नौकरशाही के एक प्रतिनिधि भर हैं। और उत्तर प्रदेश की सरकार इस भ्रष्‍टाचार की संरक्षक है। सरकार कोई भी हो, मुख्यमंत्री कोई भी हो लेकिन भ्रष्‍टाचार को संरक्षण देने के मामले में सब एक जैसे होते हैं। जिन अखंड प्रताप को कल्याण सिंह ने बचाया था, उन्हें राजनाथ सिंह ने भी बचाया और मायावती ने भी और मुलायम सिंह ने भी। केंद्र सरकार ने अखंड प्रताप सिंह के ख़िलाफ़ सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार की अनुमति मांगी थी जिसे राजनाथ सिंह सरकार ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद आई मायावती सरकार ने न केवल सीबीआई जांच की एक और मांग ठुकराई बल्कि सिंह के ख़िलाफ़ विजिलेंस के मामले भी वापस ले लिए। मायावती के बाद आए मुलायम सिंह यादव एक कदम आगे गए और उन्होंने अखंड प्रताप सिंह को राज्य का मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया और बाद में केंद्र सरकार की सहमति से उन्हें सेवा विस्तार भी दिया।

भ्रष्‍ट नौकरशाही में केवल आईएएस या आईपीएस ही नहीं बल्कि आईआरएस और आईएफएस अफसर तक शामिल पाए जाते हैं। दुर्भाग्य ये कि इन भ्रष्‍ट अफसरों के नामों की फेहरिस्त खुद इन अफसरों की एसोसिएशनें जारी करती हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। अव्वल तो केंद्र सरकार भ्रष्‍ट अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं देती और अगर दे भी दे तो प्रक्रिया ऐसी है कि किसी भी आरोपी अफसर को जेल नहीं होती, और खुदा न खस्ता कोई जेल भी पहुँच जाये तो उसे सजा नहीं होती और वो आराम से सारी जिंदगी जमानत पर जेल के बाहर रहकर अपना ऐश्वर्य भोग लेता है।

इस देश की नौकरशाही निर्भीक नौकरशाही है। नौकरशाही किसी से नहीं डरती। न क़ानून से न भगवान से। देश के कोई 300 ऐसे नौकरशाह हैं जो क़ानून होते हुए भी अपनी सम्पत्ति की घोषणा नहीं करते। अपवाद के रूप में सीबीआई की एक अदालत ने कुछ साल पहले 1991 बैच के एक आईएएस ऑफिसर को आय के ज्ञात स्रोतों से 3.18 करोड़ की अधिक संपत्ति रखने के जुर्म में चार साल कैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार आज इस हद तक बढ़ गया है कि इससे राष्ट्र के विकास में रुकावट पैदा हो रही है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमना की ही तरह स्पेशल सीबीआई जज भूपेश कुमार ने कहा था कि- ‘आजकल करप्शन समाज में इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है कि इससे राष्ट्र के विकास में बड़ी रुकावट पैदा हो रही है। यह गरीब विरोधी,  आर्थिक विकास विरोधी और राष्ट्र विरोधी है। कुछ पब्लिक सर्वेंट्स की वजह से पूरा समाज भुगत रहा है,  क्योंकि आम जनता ने करप्शन को एक सच और जीने के ढंग की तरह लेना शुरू कर दिया है। इसीलिए,  करप्ट पब्लिक सर्वेंट्स को गैरवाजिब रियायत नहीं दी जानी चाहिए। उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए जिससे अन्य पब्लिक सर्वेंट्स को सबक मिले।’ लेकिन किसी को कोई सबक नहीं मिल रहा।

दुर्भाग्य ये है कि अखिल भारतीय परीक्षाओं में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले नयी पीढ़ी के नौकरशाह तक भ्रष्‍टाचार के दलदल में फंसकर देश की तमाम उम्मीदों पर पानी फेर रहे हैं। भ्रष्‍टाचार की ये कहानी ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ जैसी है। किस्से पढ़ते रहिये, होना जाना कुछ नहीं है। मोदी जी भी हैं लेकिन नौकरशाही को सुधारना उनके लिए भी मुमकिन नहीं है, क्योंकि वे भी आखिर इसी भ्रष्‍ट नौकरशाही के सहारे हैं।(मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर-ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता, सटीकता व तथ्‍यात्‍मकता के लिए लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए मध्‍यमत किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है।
—————-
नोट-मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत मेंमध्‍यमतकी क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here