मप्र उपचुनाव: ऐदल की बादशाहत को अजब चुनौती की तैयारी..!

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सुमावली उपचुनाव

डॉ. अजय खेमरिया 

चंबल की कुछ सीटों का चुनावी चरित्र अभी भी जातियों के प्रभुत्व से आगे नही बढ़ पा रहा है। मसलन भिंड जिले की अधिकांश सीट्स ब्राह्मण बनाम ठाकुरों के मध्य ही तय होती है इसी तरह मुरैना जिले की सुमावली सीट गुर्जर बनाम ठाकुर के चुनावी वर्चस्व की कहानी कहती है। मुरैना शहर से सटी हुई इस सीट पर पिछले तीस बर्षों से दो परिवारों का ही कब्जा चला आ रहा है। एक है गजराज सिंह सिकरवार और दूसरे ऐदल सिंह कंषाना (गुर्जर)।

गजराज सिंह सिकरवार एक दौर के दिग्गज छात्र नेताओं में शुमार रहे है। 1990 में वे इस सीट से जनता दल के टिकट पर जीते थे। 1993 में बसपा के टिकट पर खड़े ऐदल सिंह ने दादा गजराज सिंह को 8754 मतों से शिकस्त दी। तभी से दोनों परिवारों के बीच सीट वर्चस्व का मैदान बन गई। 1998 में ऐदल सिंह फिर से बसपा के टिकट पर जीते, इस बार समाजवादी कुर्ता उतारकर बीजेपी से लड़े दादा गजराज सिंह ने टक्कर तो तगड़ी दी लेकिन 4913 वोट से पीछे रह गए।

यह बसपा के इस अंचल में उभार का चरम दौर भी था। दिग्विजयसिंह अपने दलित एजेंडे को आगे रखकर बसपा की जड़ों में मट्ठा डालने में लगे थे। बसपा के 5 विधायकों को उन्होंने अपनी पार्टी में शामिल कराया जिनमें सुमावली के ऐदल सिंह कंषाना भी एक थे। 2003 तक आते आते दिग्विजयसिंह का तिलिस्म टूट चुका था और जिस बसपा को छोड़कर कंषाना कांग्रेस में शामिल हुए थे वह उनके लिए चुनावी लिहाज से आत्मघाती साबित हुआ। 2003 में गजराज सिंह ने 12395 मतों के भारी अंतर से कंषाना को शिकस्त देकर दोनों चुनावों की हार का बदला ले लिया।

2008 में ऐदल सिंह फिर वापसी में सफल हुए। 2013 में गजराज सिंह ने अपने पुत्र नीटू सिकरवार को टिकट दिलाई और वे 61557 वोट लेकर जीते, वहीं ऐदल सिंह 41189 वोट लेकर तीसरे नम्बर पर खिसक गए। दूसरे नम्बर पर रहे बसपा के अजब सिंह कुशवाहा जिन्होंने 47481 वोट हासिल किये। 2018 में गजराज सिंह के दूसरे बेटे सतीश सिकरवार को बीजेपी ने ग्वालियर पूर्व सीट से टिकट दी इसलिए सुमावली से ऐदल सिंह की राह आसान हो गई। बीजेपी ने यहां से बसपा के टिकट पर दो बार से कड़ी चुनौती दे रहे अजब सिंह कुशवाहा को उतारा लेकिन वह कोई खास चुनौती नही दे पाए।

2018 में सिकरवार परिवार को बीजेपी ने भले यहां मौका नहीं दिया लेकिन इसी परिवार का दूसरा सदस्य मानवेन्द्र गांधी (सिकरवार) बसपा के टिकट पर यहां से मैदान में था। मानवेन्द्र गजराज सिंह के भाई के बेटे है, लेकिन वह भी कोई टक्कर नही दे सके। ऐदल सिंह 65455 वोट लेकर जीते, वहीं बीजेपी के अजब सिंह कुशवाह 52142 और बसपा के मानवेन्द्र 31331 वोट पर सिमट गए। खास बात यह है कि जिन अजब सिंह ने 2013 बसपा के टिकट पर 47481 वोट लेकर सिटिंग एमएलए ऐदल सिंह को तीसरे नम्बर पर धकेला था वह बीजेपी के टिकट पर 2018 में पांच हजार वोट भी नही बढा पाए।

सुमावली का चुनावी इतिहास स्पष्ट रूप से दो सिकरवार और गुर्जर परिवार के बीच विभक्त है। यहां गुर्जर, कुशवाहा, ठाकुर, किरार (मुख्यमंत्री की जाति), जाटव, ब्राह्मण के अलावा ओबीसी और दलित वर्ग की लगभग सभी जातियों के वोटर मौजूद हैं। गुर्जर और सिकरवार ठाकुरों के एक लगायत गांव हैं जिन्हें चंबल में गुर्जर घार और सिकरवारी इलाके के रूप में जाना जाता है।

अब बात आने वाले उपचुनाव की करें। ऐदल सिंह को बीजेपी का झंडा डन्डा पकड़े देखकर लोग हैरान भी होंगे। लेकिन जो जमीनी हकीकत है वह फौरी तौर पर ऐदल सिंह कंषाना के फेवर में प्रतीत होती है। कांग्रेस के पास यहां कोई जमीनी उम्मीदवार है ही नहीं क्योंकि ऐदल सिंह ने यहां किसी को पनपने ही न ही दिया है। कांग्रेस के पास बसपा से लड़े मानवेन्द्र सिकरवार, उनके पिता वृंदावन सिकरवार को उतारने के विकल्प है। एक चर्चा भोपाल डीआईजी रहे रमन सिंह सिकरवार को भी उतारने की है जो मूलतः इसी जिले के रहने वाले हैं।

दो बार बसपा और बीजेपी के टिकट पर पिछला चुनाव लड़े अजब सिंह कुशवाहा को लेकर भी कांग्रेस में विचार चल रहा है। वहीं सिकरवार परिवार के अलावा बीजेपी ने भी यहां 30 साल से किसी को आगे नही किया है इसलिए ऐदल सिंह की कमल दल से उम्मीदवारी का अन्य सीटों की तरह क्लेश सुमावली में नहीं होगा। दो बड़े वोट बैंक ऐदल सिंह के पक्ष में होंगे पहला गुर्जर जो सर्वाधिक है, दूसरा किरार। किरारों के करीब 15 हजार वोट हैं, जो शिवराज सिंह के चलते बीजेपी के उम्मीदवारों को मिलते रहे है, लेकिन अब यहां किरार, गुर्जर का पहली बार गठजोड़ होगा।

ओबीसी का दूसरा बड़ा वोटबैंक यहां कुशवाहा जाति का है। यह सबसे घनघोर लामबंदी वाला जाति समूह है। जिस भी दल से इस जाति का प्रत्याशी आता है यह जाति/समाज उसी की तरफ़ झुक जाता है। अगर कोई जातीय उम्मीदवार नहीं है तो परम्परागत रूप से कुशवाहा बीजेपी को सपोर्ट करते हैं लेकिन यहां गुर्जर औऱ कुशवाहा का सुमेल आसान नही है, क्योंकि 30 साल से ये दोनों जातियां भी चुनावी लड़ाई लड़ती आ रही हैं। गुर्जर यहां दबंग बिरादरी है और उसकी दहशत ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कायम है। जाहिर है बीजेपी को अपने गुर्जर प्रत्याशी के लिए कुशवाहा वोट दिलाना कतई आसान नहीं होगा।

इन सब चुनावी कारकों के बाबजूद ऐदल सिंह सुमावली में मजबूत हैं तो खुद के प्रभाव और अपनी जाति में निर्विवाद स्वीकार्यता के कारण ही। सिंधिया और बीजेपी दो बड़े विरोधियों का साथ भी उन्हें मिलने जा रहा है ऐसे में सुमावली में संकट कांग्रेस के सामने है। फिलहाल बीजेपी तो यहां मजबूत स्थिति में है। केवल मैदानी स्तर पर कार्यकर्ताओं के सुमेलन पर काम करने की चुनौती बीजेपी के सामने बड़ी है।

अलर्ट: अगर कांग्रेस ने बीजेपी के पिछले प्रत्याशी अजब सिंह कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया तो मामला बेहद नजदीकी हो जाएगा। इस स्थिति में कुशवाहा, जाटव, ठाकुर का समीकरण बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी कर देगा। यह भी ध्यान देना होगा कि 30 साल की ऐदल बादशाहत को मिटाने के लिए यहां ब्राह्मण, ठाकुर जैसी जातियों के बहुत लोग मैदान पर सक्रिय है। बसपा उपचुनाव नहीं लड़ती है इसलिए कांटे का पूर्वानुमान कठिन भी नहीं।

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टीम मध्‍यमत

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