राकेश दुबे

भारत में आयकर देने वालों की संख्या घट रही है। आयकर विभाग के अनुसार इतने बड़े देश में 8.27 करोड़ लोग ही इस टैक्स का भुगतान कर रहे हैं। इस अरुचि का कारण सरकार की नीति है। प्राप्त आकंडे कहते हैं वसूले गए भारी-भरकम टैक्‍स, का एक बड़ा हिस्‍सा सरकारें राजनीतिक फायदे के लिए इस्‍तेमाल करती रही हैं।

राहत के नाम पर बड़ी संख्‍या में लोगों को मुफ्त का सामान-सुविधा मुहैया कराने पर भारी-भरकम रकम खर्च हो रही है। साल 2022-23 में 17 दिसंबर तक सरकार ने 11,35,754 करोड़ रुपए प्रत्‍यक्ष कर के तौर पर वसूले। वित्‍त वर्ष 2021-22 में यह रकम 9,47,959 करोड़ रुपए थी। अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 तक गरीबों को मुफ्त राशन देने पर ही करीब चार लाख करोड़ खर्च हुए।

इनकम टैक्‍स विभाग की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक देश के 132 करोड़ में से 8.27 करोड़ लोग ही आयकर भरते हैं। यहां इन आंकड़ों के साथ यह भी बताया गया है कि अमेरिका की 45 प्रतिशत आबादी टैक्‍स देती है। भारत में टैक्‍स देने वालों की कम संख्‍या होने के पीछे देश में ‘टैक्‍स कल्‍चर’ का अभाव है। टैक्‍स को बोझ समझने की मनोवृत्‍त‍ि बढ़ती जा रही हैं।

सरकार का तर्क है कि भले ही भारत में अमेरिका, ब्रिटेन जैसे कई विकसित देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा व स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं नहीं मिलती हों, लेकिन नागरिकों को इस मुद्दे को बड़े परि‍प्रेक्ष्‍य में देखना चाहिये और इस बात की सराहना करनी चाहिये कि यहां सरकार को शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, सब्‍स‍िडी जैसी कई तरह की जिम्‍मेदारियां निभानी पड़ती हैं।

भारत में टैक्स देने वालों के लाई बुनियादी सुविधाएं विकसित करना भी जरूरी है, टैक्‍स देने वाले मानते हैं कि उन्‍हें अस्‍पताल बनवाने के लिए टैक्‍स देने के बाद प्राइवेट हॉस्‍प‍िटल्‍स में इलाज का भारी-भरकम ब‍लि भरना होता है, जिसमें भारी जी एस टी शामिल होता है, स्‍कूल के लिए टैक्‍स देने के बाद बच्‍चों के लिए निजी स्‍कूलों में मोटी फीस देनी होती है प्रवेश के समय एकमुश्‍त रकम के साथ अवसर -अवसर पर भारी चुकानी होती है।

वाहन खरीदते वक्‍त रोड टैक्‍स देने के बाद भी सड़कों पर चलने के लिए टोल टैक्‍स देना पड़ता है। भारत में आज लोगों को डेढ़ दर्जन तरह के टैक्‍स देने पड़ते हैं। हकीकत यह है कि स्‍वास्‍थ्‍य व शिक्षा के लिए सरकार द्वारा बनाए या चलाए जाने वाले संस्‍थानों में सुविधाओं का अभाव है और सुविधा के नाम पर मोटी रकम वसूलने वाले निजी अस्‍पतालों व स्‍कूलों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, गांवों की 70 और शहरों की 80 प्रतिशत आबादी निजी अस्‍पतालों पर निर्भर है। साल 2021 में प्राइवेट हॉस्‍प‍िटल सेक्‍टर को 9995.06 अरब रुपए का आंका गया था और अनुमान है कि 2027 तक यह 25429.49 अरब रुपए हो जाएगा।कोरोना दुष्काल के समय शुरू की गई अन्न योजना अब दिसंबर 2023 तक बढ़ा दी गई है। दुखद पहलू यह भी है कि तीन साल बाद भी इसके लाभान्वितों की संख्‍या कम नहीं हुई है। करीब 81 करोड़ लोगों को इसका फायदा मिलने की बात सरकार कहती है। इनकी गरीबी कम करने के बजाय इन्‍हें मुफ्त अनाज देने पर सरकार का जोर कोरोना काल खत्‍म होने के बाद भी कायम है। यह सब आय और अन्य कर से प्राप्त राशि है।

एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है टैक्‍स छूट की सीमा से ऊपर कमाई करने वाले सभी लोग क्‍या इनकम टैक्‍स जमा करते हैं? आंकड़े ऐसा नहीं बताते। 2011 में आरटीआई के हवाले से आई एक जानकारी के मुताबि‍क देश में वकीलों की संख्‍या 13 लाख थी। नवंबर, 2021 में देश में रजिस्‍टर्ड एलोपैथिक डॉक्‍टर्स की संख्‍या भी 13 लाख से ज्‍यादा थी। जनवरी से दिसंबर 2022 के बीच देश में करीब 38 लाख नई कारें बिकीं। इन आंकड़ों के मद्देनजर आयकर चुकाने वालों की संख्‍या का आकलन करें तो टैक्‍स चोरी की समस्‍या का अंदाज लग सकता है।

सरकार का कर चोरी नहीं रोक पाना, इनकम छिपाने वालों को पकड़ने के बजाय टैक्‍स चुकाने वालों पर ही ज्‍यादा से ज्‍यादा बोझ डालना जैसी विसंगतियां भी लोगों में टैक्स न चुकाने की प्रवृति मजबूत करने में अहम रोल निभाती हैं। आने वाले बजट में यह देखने वाली बात होगी कि सरकार टैक्‍स से जुड़ी जटिलताओं को सरल कर आयकर भरने वाले लोगों को राहत व नहीं भरने वालों को प्रेरणा दे सकती है या नहीं। कर प्रणाली में सरलता और निरंतर निगहबानी के साथ मुफ़्त लेने की प्रवृत्ति पर भी अंकुश ज़रूरी है।(मध्यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता, सटीकता व तथ्यात्मकता के लिए लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए मध्यमत किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है। यदि लेख पर आपके कोई विचार हों या आपको आपत्ति हो तो हमें जरूर लिखें।-संपादक

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