ये ‘काली सूची’ में अव्‍वल आने की जिद हम कब छोड़ेंगे?

कुछ दिन पहले नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्‍यूरो (एनसीआरबी) ने वर्ष 2016 की अपनी रिपोर्ट में मध्‍यप्रदेश को बलात्‍कार के मामले में देश में सबसे अव्‍वल बताया था। यह खिताब कई सालों से हम अपने सिर पर रखे हुए हैं और लगता है अब या तो उसे हमारा सिर रास आ गया है या हमारे सिर को यह खिताब कुछ ज्‍यादा ही पसंद आ गया है। एनसीआरबी के उस आंकड़े पर काफी कुछ लिखा जा चुका है लिहाजा आज कुछ नई बात करते हैं।

वैसे यह बात भी अव्‍वल आने से ही जुड़ी हुई है। दरअसल यह अव्‍वल आने का मामला, हमारी तासीर से अजीब तरह से जुड़ता जा रहा है। हम विकास दर में अव्‍वल आते हैं तो रेप के मामले में भी अव्‍वल आते हैं। इससे एक अनुमान यह भी लगाया जा सकता है कि हमें बस अव्‍वल आने से मतलब है चाहे वह विकास हो या बलात्‍कार। हम अव्‍वल से कम किसी भी बात पर समझौता करने को राजी नहीं हैं।

अव्‍वल आने की इसी कड़ी में मध्‍यप्रदेश को सिरमौर बनाने वाली एक और खबर सोमवार को मीडिया में आई। खबर के मुताबिक एनसीआरबी की 2016 की ही रिपोर्ट पर आधारित एक विश्‍लेषण कहता है कि अनुसूचित जाति वर्ग यानी दलितों के साथ होने वाले अपराध और अत्‍याचार में बढ़ोतरी के मामले में भी हम देश में अव्‍वल हैं। वहीं अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अपराध और अत्‍याचार में वृद्धि के मामले में हम देश के टॉप पांच राज्‍यों में शुमार हैं।

एक गैर सरकारी संगठन ने, एनसीआरबी द्वारा उपलब्‍ध कराए गए, अनुसूचित वर्गों के खिलाफ अपराध और अत्‍याचार के आंकड़ों का जो अध्‍ययन किया है वह बताता है कि वर्ष 2014 की तुलना में 2016 में मध्‍यप्रदेश में दलितों पर अत्‍याचार के मामले 49.4 फीसदी बढ़े हैं जबकि आदिवासियों के संबंध में यह बढ़ोतरी 15.6 फीसदी है। दलित अत्‍याचार में बढ़ोतरी वाले टॉप पांच राज्‍यों की सूची में मध्‍यप्रदेश टॉप पर है। जबकि आदिवासी अत्‍याचार में बढ़ोतरी वाले टॉप पांच राज्‍यों की सूची में केरल अव्‍वल आया है।

यह अजीब संयोग है कि आरक्षित या कमजोर वर्ग के लोगों पर होने वाले अत्‍याचार में बढ़ोतरी को लेकर टॉप पांच राज्‍यों की सूची में पहला और दूसरा स्‍थान केरल और मध्‍यप्रदेश ने आपस में बांट लिया है। एससी और एसटी दोनों के खिलाफ अपराध के मामले में केरल में संयुक्‍त रूप से 65.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है तो मध्‍यप्रदेश में बढ़ोतरी का यह आंकड़ा 65 फीसदी है।

विश्‍लेषण के मुताबिक केरल में एससी पर अत्‍याचार के मामले में 13.8 फीसदी की और एसटी के मामले में 51.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। एससी अत्‍याचार के मामले में टॉप पर रहने वाले राज्‍य हैं- मध्‍यप्रदेश, हरियाणा, उत्‍तरप्रदेश, गुजरात और केरल जबकि एसटी के मामले में टॉप 5 राज्‍य हैं केरल, ओडिशा, गुजरात, मध्‍यप्रदेश और तेलंगाना।

ऐसा नहीं है कि विश्‍लेषकों ने केवल अपराधों में बढ़ोतरी को ही लक्ष्‍य किया हो। उन्‍होंने दोनों ही वर्गों के खिलाफ होने वाले अपराधों में कमी के आंकड़े भी जुटाए हैं और दुर्भाग्‍य से इनमें मध्‍यप्रदेश का नाम कहीं नहीं है। एससी के मामले में अपराधों में सबसे ज्‍यादा 41.9 फीसदी की कमी झारखंड में आई है, जबकि एसटी के मामले में उत्‍तरप्रदेश 83.3 फीसदी कमी लाकर टॉप पर रहा है।

एनसीआरबी के आंकड़ों का विश्‍लेषण करने वाले गैर सरकारी संगठन का निष्‍कर्ष है कि आरक्षित श्रेणी में आने वाले कमजोर वर्गों के लोगों के खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी के बड़े कारण सामाजिक और आर्थिक कारकों से जुड़े हैं। इनमें जमीन का विवाद, बटाईदारी, बंधुआ मजदूरी, कर्ज,न्‍यूनतम मजदूरी का भुगतान न होना, जबरिया मजदूरी या बेगार, पारिवारिक विवाद, अंतरजातीय विवाह और आर्थिक विवाद जैसे कारण शामिल हैं।

आंकड़े कहते हैं कि पूरे भारत में 2014 से 2016 के बीच अनुसूचित जाति पर अत्‍याचार और अपराध के कुल 1.2 लाख केस रिपोर्ट हुए जबकि अनूसूचित जानजाति के मामले में यह आंकड़ा 19 हजार 671 है। लेकिन अध्‍ययन यह भी बताता है कि इसकी तुलना में बड़ी संख्‍या में ऐसे मामले हुए हैं जो कही भी रिपोर्ट नहीं हुए।

हम देश और अन्‍य राज्‍यों की बात भूल जाएं और यदि सिर्फ अपने मध्‍यप्रदेश की ही बात करें, तो यह एक और शर्मनाक तथ्‍य है जो हमारा माथा नीचा करता है। हमने आर्थिक प्रगति के मापदंडों पर भले ही सिर ऊंचा करने लायक आंकड़े खड़े कर लिए हों, लेकिन यदि समाज के कमजोर और वंचित वर्ग उनका फायदा नहीं उठा पा रहे या समा‍जिक अथवा आर्थिक परिस्थितियां इन वर्गों को अभी भी सुकून और सिर उठाकर जीने लायक माहौल नहीं दे पा रहीं, तो हमारी अव्‍वल सूची के तमाम आंकड़े बेमानी हो जाते हैं।

इस मामले में मध्‍यप्रदेश को खासतौर से इसलिए भी सचेत रहना होगा क्‍योंकि हमारे यहां दलितों और आदिवासियों की आबादी प्रदेश की कुल आबादी का करीब एक तिहाई है। आदिवासी आबादी के मामले में तो हम देश में सबसे ज्‍यादा जनसंख्‍या वाले राज्‍य हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में अनुसूचित जाति की आबादी एक करोड़ 13 लाख से अधिक और अनुसूचित जनजाति की आबादी एक करोड़ 53 लाख से अधिक थी।

विडंबना देखिए कि 16 वीं लोकसभा में प्रदेश में अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटें राज्‍य में सत्‍तारूढ़ दल के पास हैं। वर्तमान विधानसभा में भी अधिकांश आरक्षित क्षेत्रों का प्रतिनिधित्‍व सत्‍तारूढ़ दल के विधायक ही कर रहे हैं। इसके बावजूद इन वर्गों पर अत्‍याचार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।

कमजोर एवं वंचित वर्गों पर अत्‍याचार न हों और उनके विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्‍या में कमी आए इसके लिए सामाजिक और आर्थिक माहौल खड़ा करना जरूरी है। इसमें समाज की बड़ी भूमिका है, लेकिन उससे भी बड़ी और उससे भी ज्‍यादा सक्रिय भूमिका राजनीतिक व प्रशासनिक नेतृत्‍व की है। यदि वहां कमजोरी है तो फिर मानकर चलिए कि साल दर साल ऐसे ही आंकड़े आते रहेंगे और हमें काली सूची में भी अव्‍वल बनाते रहेंगे।

 

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