‘उसने मरने से पहले ईश्वर से क्या कहा होगा?’

अजय बोकिल

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के एक गांव में दलित युवती के साथ गैंगरेप की यह घटना दरअसल ‘बेटी बचाओ’ नारे के साथ पूरे सिस्टम का ही घृणित बलात्कार है। जिसमें दंबगों ने न सिर्फ एक 19 वर्षीय बेटी के साथ बर्बर बलात्कार किया, बल्कि उसकी हड्डियां तक तोड़ दीं।  मानो इतना ही काफी नहीं था, पीडि़त युवती जिंदा रहने पर मुंह न खोल सके, इसलिए उसकी जबान भी काट ली। बाद में तड़पती हालत में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। 16 दिनों तक मौत से संघर्ष करते हुए दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में उस बदनसीब युवती ने दम तोड़ दिया।

बताया जाता है कि युवती अपनी मां और भाई के साथ घास काटने गई थी। परिजनों के साथ वह पीछे चल रही थी कि दरिंदे बीच में ही उसे खींचकर ले गए और बलात्कार कर उसे अधमरी हालत में छोड़ दिया। बिलखती मां को अपनी बेटी बेहोशी की हालत में मिली। युवती के ‍परिजनों ने पुलिस को सूचना दी तो पहले उसने इसे गंभीरता से नहीं लिया। जब हो हल्ला हुआ तो युवती को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी मौत हो गई।

युवती की मौत के बाद पुलिस को उसके अंतिम संस्कार की भी इतनी जल्दी थी कि रात में ही चिता रचकर उसे फूंक‍ दिया गया। पीडि़ता के परिजनों का आरोप है ‍कि अंतिम संस्कार के पहले उनसे पूछा ही नहीं गया। इस नृशंस घटना के बाद न सिर्फ दलित समुदाय ‍बल्कि हर उस संवेदनशील व्यक्ति के मन में गहरा आक्रोश है, जिसका थोड़ा भी भरोसा इंसानियत में बाकी है। इस मामले में पूरे देश में बवाल मचने के बाद योगी सरकार मरहम लगाने की कोशिश कर रही है। पीडि़ता के परिजनों को आर्थिक मदद व नौकरी की पेशकश की गई है।

लेकिन परिजनों का आरोप है कि उनकी आवाज को हर तरीके से दबाने की कोशिश की जा रही है। ताकि मामला और न भड़के। राज्य सरकार का यह भी कहना है कि उसने मामले की जांच के लिए एसआईटी बना दी है। दोषियों को सख्‍त सजा दिलाई जाएगी। उधर यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है। कई मामलों में असाधारण तत्परता दिखाने वाली यूपी पुलिस और राज्य की योगी सरकार की इस मामले में भूमिका पर कई सवाल उठ रहे हैं। हाथरस की इस निर्भया को न्याय कब मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं, इस पर भी सवालिया निशान हैं।

विडंबना है कि आठ साल पहले दिल्ली में हुए निर्भया बलात्कार कांड के बाद उभरे देशव्यापी रोष और सख्त कानूनों के बाद भी निर्भयाओं की संख्या घटने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। उलटे इसमें रेप के बाद अब दरिंदगी और क्रूरता के और नए काले अध्याय जुड़ते जा रहे हैं। मानो दुष्टता की पुरानी फिनिश लाइनें ही काफी नहीं थीं। इस शर्मनाक घटना ने हैदराबाद में एक डॉक्‍टर युवती के साथ बलात्कार के बाद उसे जिंदा जलाने की घटना की याद दिला दी।

हाथरस गैंगरेप के बाद उस लड़की से हुए पाशविक व्‍यवहार की खबर जिसने भी पढ़ी, वो भीतर से कांप गया। लेकिन स्थानीय पुलिस तब भी कई तथ्‍यों को छुपाती-सी लग रही थी। आशा की क्षीण किरण इतनी थी कि अस्पताल में इलाज से उसकी जिंदगी की लौ शायद फिर जल उठे। लेकिन मंगलवार को यह उम्मीद भी बुझ गई। जो खबरें छन कर आई हैं, उनसे पता चला कि पीडि़ता कटी जबान से आखिर तक अपनी पीड़ा कहने की कोशिश करती रही। उसने किसी तरह उन लोगों के नाम बताए, जिन्होंने उसके साथ दरिंदगी की। पर जो हकीकत सामने आ रही है, उससे लगता है कि पीडि़ता के दर्द को समझने के बजाए निष्ठुर तंत्र उसके पूरी तरह खामोश हो जाने का इंतजार करता रहा।

इस पर पराकाष्ठा यह कि पुलिस ने परिजनों की मर्जी के बगैर पीडि़ता का रात में ही दाह संस्कार कर दिया। ऊपर से पुलिस की लीपापोती है ‍कि घर वालों से पूछ कर ही ऐसा किया गया कि क्योंकि युवती के शव को 24 घंटे से ज्यादा हो चुके थे। अगर पुलिस सही है तो युवती के ‍परिजनों और सफाई कामगारों को सड़क पर क्यों उतरना पड़ा?  ऐसी कौन-सी आफत या दबाव था कि परंपरा के विपरीत आधी रात में ही युवती की चिता को फूंकना पड़ा? परिजनों को उसके अंतिम दर्शन भी नहीं करने दिए गए।

पीडि़ता के भाई का यह भी आरोप है कि पुलिस ने ताबड़तोड़ तरीके से जिस का अंतिम संस्कार किया, वह मेरी बहन थी भी या नहीं, मुझे नहीं पता। और तो और घटना के 12 दिन बाद पुलिस यह ‍कहती दिखी कि युवती की जबान नहीं काटी गई है। सोशल मीडिया पर गलत जानकारी फैलाई जा रही है। दरिंदों ने युवती की जबान काटी है या नहीं, इस पर भी पुलिस को जबान खोलने में इतना वक्त क्यों लगा? यह भी कहा गया कि युवती से बलात्कार हुआ है या नहीं यह मेडिकल रिपोर्ट से साफ नहीं हो रहा। जाहिर है ‍कि पूरी कहानी में कई झोल हैं, जो न केवल पुलिस बल्कि पूरे तंत्र की संवेदनहीनता के बैरीकेड्स हैं।

इस घटना के बाद राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस ने योगी सरकार से इस्तीफा मांगा है तो भीम आर्मी इसको लेकर सड़कों पर उतर आई है। उधर योगी सरकार भी इस घटना के बाद भीतर से हिल गई है। क्योंकि राज्य में बेटियों की सुरक्षा के तमाम दावों पर इस एक घटना ने पानी फेर दिया है। पुलिस के मुताबिक पीडि़ता ने इशारों में ही अपना बयान दर्ज कराया था, जिसमें उसने गांव के ऊंची जाति के चार लोगों के नाम लिए थे। पुलिस के मुताबिक चारों को गिरफ्‍तार कर लिया गया है। इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी।

सवाल यह है ‍कि आखिर कौन हैं ये दरिंदे? ये शक क्यों है कि सरकार इन्हें बचा रही है? इन सवालों का जवाब विश्व हिंदू सेना के संरक्षक अरुण पाठक के उस सवालिया बयान में ढूंढा जा सकता है कि (ऐसे मामलों में) बिरादरी का नाम आने पर खामोश क्यों हो जाते हैं योगी?

उत्तर प्रदेश देश का वो राज्य (थोड़ा बहुत तो हर राज्य में है) है, जहां जिस जाति का मुख्यमंत्री होता है, वो समूची जाति ही खुद को सीएम समझने लगती है। मानो अपना ही राज हो और पूरा तंत्र चलाने की मास्टर की अपने हाथ आ गई हो। यह हमारे लोकतंत्र का ऐसा विद्रूप है, जिसकी कोई दवा शायद है ही नहीं और है भी तो वो कड़वी दवा देने का नैतिक साहस किसी में नहीं है। दुर्भाग्य से हाथरस गैंगरेप कांड का भी यह वो एंगल है, जिसके आगे सारी प्रतिबद्धताएं पानी भरती हैं।

यह असंभव नहीं है कि इस मामले में भी जातिवाद का अदृश्य कवच दरिंदों को बचा ले जाए। सरकार की छवि बचाने के लिए अभी जो मदद के ताबड़तोड़ उपाय किए जा रहे हैं, उसके पीछे यह डर भी समाहित है कि इस घटना का राजनीतिक काला साया कहीं यूपी से सटे मप्र के उन इलाकों पर न पड़े, जहां उपचुनाव होने हैं। और उस बिहार पर न पड़े जहां विधानसभा चुनाव होने हैं।

अफसोस यही कि इतना कुछ होते हुए भी समाज नहीं सुधर रहा। उसका मानस नहीं बदल रहा। दबंगों और दुराचारियों की सोच नहीं बदल रही। उनकी निर्भयता खत्म नहीं हो रही और तंत्र की निष्ठुरता घट नहीं रही। तमाम कोशिशों के बाद भी इन पिशाचों के पंजों से हम अपनी ही बेटियों को नहीं बचा पा रहे? उन बेटियों को, जिनके सपने साकार होने से पहले ही रौंद दिए गए। वो कुछ कह पाती, उसके पहले ही जिनकी जबान काट डाली गई। अपनी अस्मत और जीने की आस खो चुकी उस युवती ने मौत का हाथ थामने के पहले क्या सोचा होगा? संवेदनशील कवयित्री जोश्ना बनर्जी आडवाणी के शब्दों में कहूं तो ‘उसने मरने से पहले ईश्वर से क्या कहा होगा…?

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