निधन से पहले क्‍या बोले थे हॉकी खिलाड़ी मोहम्‍मद शाहिद

आज के बच्चों के पास हॉकी खेलने का वक्त कहां है?

राकेश थपलियाल

हॉकी में इस समय हालात अच्छे नहीं हैं। कुछ अच्छा नहीं हो रहा। ऐसा होना नहीं चाहिए था। हम आठ बार के ओलंपिक चैंपियन हैं और ये बहुत बड़ी बात है। हमें इस पर गर्व होता है। यह अच्छी बात है कि हम ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर चुके हैं। लेकिन जैसे हालात बन गए हैं उसमें भारतीय टीम से ओलंपिक पदक की उम्मीद नहीं की जा सकती। 2008 के बीजिंग ओलंपिक के लिए जब हम क्वालिफाई नहीं कर सके थे तो बहुत दु:ख हुआ था। वह हमारी हॉकी के इतिहास का बहुत बुरा दिन था। हम सोच कर बेचैन हो गए थे कि ऐसा दिन आ गया है कि हम ओलंपिक में खेल भी नहीं पाएंगे। हमें निश्चित रूप से ओलंपिक पदक जीतने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

मैं हमेशा से एक बात कहता हूं कि भारतीय टीम के साथ लगाया जाने वाल विदेशी कोच अगर इतना अच्छा होता तो वह अपने देश की टीम को कोचिंग दे रहा होता। पिछले दो दशक में बहुत ज्यादा कोच बदले गए हैं। इससे न तो कोच टीम के साथ सेट हो पाए और न ही खिलाड़ी उनके साथ सेट हो पाए। मेरा तो यही मानना है कि हिन्दुस्तान में भी बहुत बड़े खिलाड़ी हुए हैं, उन्हें टीम को संवारने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

भारतीयों से दुनिया ने हॉकी सीखी है। मेरे हिसाब से यह एकदम फिजूल की बात है कि विदेशी आएंगे और हम उनसे सीखेंगे। हम क्यों उनसे सीखें। देखिए कोच की नियुक्ति के बारे में पूर्व खिलाड़ियों के बयान आते रहते हैं, लेकिन उससे क्या होता है? जो करना है वो तो फेडरेशन को करना है। अगर हमारे बोलने से कुछ हो सकता है तो लीजिए हम कह देते हैं कि भारतीय हॉकी टीम का कोच विदेशी नहीं होना चाहिए।

मुझे नहीं लगता कि मैं कोच की भूमिका निभा सकता हूं। मैंने अपनी जिंदगी के पन्द्रह साल हॉकी खेलने में लगाए हैं। मेरे पास वक्त नहीं है कि हॉकी टीम के साथ काम कर सकूं। देश में और बहुत से योग्य खिलाड़ी हैं, जो कोचिंग देने के इच्छुक हैं उन्हें यह कार्य देना चाहिए।

मैं ऐसा नहीं मानता कि स्कूलों में बेहतर कोचिंग देने से है हॉकी के स्तर में सुधार होगा। आजकल के बच्चों के पास हॉकी खेलने का वक्त कहां है? उनकी पढ़ाई का सिलेबस देखिए। वे स्कूल में पढ़ते हैं और ट्यूशन भी जाते हैं। वे परेशान रहते हैं कि पढ़ाई करें या हॉकी खेलें। हमारे समय में दो ही चीजें होती थीं, खेलना और पढ़ना। अब ऐसा नहीं है। मनोरंजन के साधन बढ़ गए हैं। बच्चों को समय मिलता है तो वे मोबाइल और लैपटॉप से चिपके रहते हैं। उनके पास खाने और आपसे बातचीत करने का भी वक्त नहीं है।

जहां तक हॉकी के विकास के लिए दीर्घकालीन योजना बनाने की बात है तो मैं यही कहूंगा कि योजनाएं कम बनाओ और खेलो ज्यादा। हमारे खेलने के समय में भी हॉकी के बारे में काफी कुछ सोचा जाता था। लेकिन हम खेलते भी खूब थे। टीम को परिणाम देने होंगे। जब तक टीम जीतेगी नहीं, कुछ सुधार नहीं हो सकता है। टीम को बहुत सुविधाएं मिल रही हैं। स्तर उठाने के लिए ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन करना ही होगा।

(राकेश थपलियाल दिल्‍ली से प्रकाशित प्रतिष्ठित खेल पत्रिका खेल टुडे के प्रधान संपादक हैं। यह आलेख हाल ही में दिवंगत हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी मोहम्‍मद शाहिद से कुछ समय पहले हुई उनकी बातचीत पर आधारित है।)

परिचय# मोहम्‍मद शाहिद-

मोहम्मद शाहिद हॉकी के भारतीय सितारे और देश के मशहूर फॉरवर्ड रहे। वह रेलवे में कार्यरत थे। वे 1980 में भारत की ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम के सदस्य रहे। उन्‍हें ड्रिबलिंग कला का महारथी माना जाता था। 1979 में उन्‍होंने जूनियर और सीनियर स्तर एक साथ भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। देश के लिए एक ओलंपिक और दो एशियाई खेलों में शिरकत की। उन्‍हें अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया। वे 1986 में एशियन ऑल स्टार टीम के सदस्य रहे। 1980 की चैंपियंस ट्रॉफी में उन्‍हें सर्वश्रेष्ठ फॉरवर्ड खिलाड़ी का पुरस्कार प्रदान किया गया था।

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