भारत भूषण आर. गांधी

शासन प्रशासन के विभिन्न विभागों में अनेक प्रकार की परिवहन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अलग अलग तरह के वाहन संविदा पर लिए जाते हैं। कई विभागों के पास विभागीय खरीदी वाले वाहन हुआ करते थे लेकिन उनके पुराने हो जाने पर रख रखाव का भारी खर्च हो जाया करता था, जिसके चलते अब वाहन संविदा पर लिए जाते हैं। संविदा पर लगे वाहन की समस्त जवाबदारी अब वाहन मालिकों की रहती है। काम्पिटिशन के कारण सरकारी विभागों को वाहन काफी किफ़ायती दर पर मिल जाते हैं।

इस प्रक्रिया और सरकार और ठेकेदार की बात को छोड़ते हुए जो कुछ आज नजर में आया उसकी बात करते हैं। टैक्सी कोटे की यानि कमर्शियल वीइकल एक कार के पीछे के शीशे पर कुछ पंक्तियों को दर्शाता हुए एक धार्मिक स्टिकर लगा था। कार कमर्शियल थी इसकी पुष्टि पीले रंग की पट्टी पर मध्य प्रदेश की राजधानी के आरटीओ द्वारा पंजीकृत नंबर से होती है। संविदा वाहन के होने की संभावना उसके डिक्की के पैनल पर म प्र शासन लिखे जाने से हो जाती है।

मसला यह है कि क्या शासन प्रशासन द्वारा संविदा वाहनों पर किसी भी प्रकार के धार्मिक पोस्टर या कोई भी प्रिन्ट लगा रहना संविदा की शर्तों में छूट देता है। क्या आरटीओ पंजीयन इस प्रकार के सवारी वाहनों को यह छूट प्रदान करता है कि उसके पिछले शीशे को किसी भी प्रकार से कवर किया जा सकता है? जबकि वाहन खरीदी के समय कंपनी से सभी ग्लास क्लियर कन्‍डीशन में मिलते हैं।

ये बात और है कि कुछ विशेष प्रकार के लोगो वाहनों के ग्लास पर लगे दिखाई देते हैं जैसे वकील का लोगो, डॉक्‍टर का लोगो आदि। कुछ कलर कोड भी विभागों की पहचान देते हैं जैसे पुलिस, आबकारी या वन विभाग आदि। लेकिन इन्हें भी कभी किसी ने वाहन के ग्‍लास पर इस प्रकार लगे नहीं देखा होगा जिससे वह वाहन चालक के विज़न को प्रभावित करता हो।

कुछ स्पेशल केटेगरी के वाहन होते हैं जो पूरी तरह से कवर्ड होते हैं जैसे कूरियर, बड़े-बड़े कैन्टर, सिक्युरिटी या बैंक के कैश आदि को ले जाने वाले वाहन। इस प्रकार के वाहनों के ड्राइवर भी अलग केटेगरी के रहते होंगे, ऐसा मानना चाहिए। लेकिन जिस सवारी गाड़ी के वाहन चालक को पीछे के विज़न के लिए रिव्यू मिरर लगा हो उस वाहन चालक को तो बैक व्यू में कोई व्यवधान नहीं होना चाहिए।

कुछ देशों में स्पेशल नंबर, कुछ स्पेशल डिजाइन के साथ कोई यूनिक नाम के साथ पंजीकृत कराने की व्यवस्था है जिसके लिए बाकायदा अलग से शुल्क अदा करना पड़ता है। जैसे बीएसएनएल द्वारा वैनिटी नंबर के लिए एक्स्ट्रा शुल्क अदा करना पड़ता था वैसे ही। लेकिन हमारे देश में वाहनों के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं है। हमारे यहाँ कई जिलों में बिना नंबर वाले या बिना नंबर प्लेट वाले हजारों वाहन सड़कों पर बेधड़क दौड़ रहे हैं। ऐसे में सरकारी उपयोग में चल रहे वाहनों पर, वाहन चालक के रियर व्‍यू को बाधित करने वाले धार्मिक स्लोगनों या अन्‍य चित्रों को दर्शाते स्टिकर कैसे लगे हैं यह सवाल तो बनता ही है…
(मध्‍यमत) डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता, सटीकता व तथ्यात्मकता के लिए लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए मध्यमत किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है। यदि लेख पर आपके कोई विचार हों या आपको आपत्ति हो तो हमें जरूर लिखें।
—————
नोट- मध्यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्यमत की क्रेडिट लाइन अवश्य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected]  पर प्रेषित कर दें। – संपादक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here