संजय स्वतंत्र
आज महाशिवरात्रि है। वसंत की मादक हवाओं से अलसाई पीढ़ी के लिए आज का दिन एक खास संदेश है। राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी दुनिया की सबसे सुंदर प्रेम कथा जरूर है मगर शिव और पार्वती का प्रेम सबसे दुर्लभ है। वैसे तो राधा ने भी प्रेम में डूब कर कृष्ण की प्रतीक्षा की, मगर पार्वती की प्रतीक्षा उनसे भी गहरी और लंबी है। उन्होंने सिखाया कि प्रतीक्षारत रहना भी प्रेम का सघन स्वरूप है। आज शिव और पार्वती के विवाह की रात्रि है। कृष्ण सचमुच प्यारे हैं, मगर शिव जैसा जीवन साथी कम ही नारियों को मिलता है। इसलिए शिव अनमोल हैं। प्रेम में और प्रतीक्षा में वे भी बेमिसाल हैं।
शिव और पार्वती का रिश्ता दुनिया भर के दंपतियों और प्रेमी युगलों को अनूठे भाव से अपने संबंध संभालने की प्रेरणा देता है। किस तरह? यह हमें जानना चाहिए। आज जब हर तरह के रिश्तों में तल्खियां या कहें कि कड़वाहट आ रही है, तो ऐसे में स्त्री-पुरुष संबंध भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। जब दोनों पक्षों में खटास आ रही हो, तो यह शिव ही हैं जो पुरुषों को संदेश देते है कि समाज और परिवार के लिए किस तरह उन्हें नीलकंठ बन जाना चाहिए। यानी विष पीकर भी अमृत भाव रखें। रिश्ते को बचाएं। चाहे वह कोई भी रिश्ता हो।
आज दंपतियों या प्रेमी युगलों में नोकझोंक या बहस के बाद अलगाव कोई नई बात नहीं रह गई। छोटी बातों पर, मामूली विवाद पर अलग हो जाने की नौबत आ रही है। दोनों पक्ष एक दूसरे को कैसे शांत कर सकते हैं, यह लोक कल्याणकारी शिव से सीखिए। याद कीजिए जब पार्वती मां काली का रौद्र रूप धारण करती हैं तो शिव किस तरह उनके आगे पृथ्वी पर लेट जाते हैं। और मां पार्वती जैसे ही उनके सीने पर अपना पांव रखती हैं, उनका गुस्सा शांत हो जाता है। वे पश्चाताप करती हैं और अपने वास्तविक स्वरूप में लौट आती हैं।
शिव और पार्वती का रिश्ता सच्चे प्रेम का प्रतीक है। इसमें एक दूसरे के लिए सम्मान की भावना सर्वोपरि है। याद कीजिए, वो पार्वती ही थी जिन्होंने पति के मान-सम्मान के लिए अपने प्राणों का भी न्योछावर कर दिया था। इसलिए चाहे वैवाहिक जीवन हो या प्रेम संबंध दोनों में ही एक दूसरे प्रति सम्मान की भावना ही रिश्ते को मजबूत करती है। यह सती ही थीं जो दूसरे जन्म में शिव को वैराग्य से बाहर निकालती हैं। सदियों की प्रतीक्षा और अपने तप से उन्हें दोबारा पा लेती हैं। इस तरह हम देखते हैं कि प्रेम, सर्मपण और सम्मान ही ही सभी रिश्तों का आधार है। जन्म जन्मांतर का साथी कोई यूं ही नहीं बनता। आपको शिव और पार्वती जैसा बनना पड़ता है। इंतजार करना पड़ता है।
स्त्री-पुरुष संबंधों में इन दिनों पारदर्शिता का अभाव दिखता है। यानी दोनों के बीच सच्चाई, ईमानदारी और एक दूसरे के प्रति कमिटमेंट की कमी आ रही है। नतीजा रिश्ते बिखर रहे हैं। वे एक दूसरे को छोड़ रहे हैं। क्या कोई शिव की तरह आज के दौर में वैराग्य का जीवन जीते हुए भी प्रतीक्षारत रह सकता है? विष पीकर भी अमृत वचन बोल सकता है? अपने साथी की तल्खियों पर मुस्कुरा कर शांत रह सकता है? यही वजह है कि पार्वती उन्हें ही पाना चाहती हैं। वे शक्ति हैं और और शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं। इसलिए महादेव उनके बिना रह नहीं सकते। उनका साथ पाकर ही सृष्टि का लोकमंगल करते हैं।
शिव संभवत: सबसे पहले पुरुष हैं जो नारी सशक्तीकरण के पुरोधा हैं। उन्होंने ही पार्वती को अहसास कराया कि वे शक्ति स्वरूपा हैं और राक्षसों का वध कर दुनिया को बचा सकती हैं। इसका संदेश यही है कि नारी को रचनात्मक बनाना, आगे बढ़ते जाने के लिए प्रेरित करना पुरुषों का ही दायित्व है। वे इसका बोध निरंतर कराते रहें। यह उनके लिए भावनात्मक संबल बने रहने से भी बड़ा कार्य है। कोई दो राय नही कि सशक्त स्त्रियां ही इस संसार को सुरक्षित रख सकती हैं।
(सोशल मीडिया से साभार)