जुबान ‘फिसलने’ और ‘दिल की बात’ जुबान पर आने का सियासी फर्क

अजय बोकिल

राजनीति में भी कभी-कभी दिल की बात जबान पर आ ही जाती है। कई दफा इसे जुबान फिसलना भी कहा जाता है। हालांकि राजनीतिक संदर्भ में जुबान फिसलने का अर्थ अमूमन अभद्र, अवास्तविक, अज्ञानता अथवा दुर्भावना से भरी टिप्पणी से लिया जाता है। कई बार ऐसी बातें जानबूझकर कही जाती हैं ताकि मुख्य मुद्दे से लोगों का ध्यान बंटे। लेकिन बाज वक्त फिसली जुबान ‘सत्य वचन’ का अहसास भी कराती है, जैसे कि कर्नाटक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की जुबान पार्टी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी बी.एस. येद्दियुरप्पा को लेकर ‘फिसली’।

राज्य के दावणगेरे में शाह कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार को भ्रष्ट साबित करने के चक्कर में येद्दियुरप्पा को ही तुलनात्मक रूप से ज्यादा भ्रष्ट बता बैठे। पत्रकारवार्ता के दौरान राज्य में कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए अमित शाह ने कहा कि ‘यदि भ्रष्टाचार में कोई प्रतिस्पर्धा कर ली जाए तो येद्दियुरप्पा सरकार को इस प्रतियोगिता में नंबर वन स्थान मिल जाएगा।’ शाह ने जिस दौरान यह बयान दिया उस वक्त खुद येद्दि भी उनके बगल में बैठे हुए थे।

शाह के बयान से भौंचक दूसरी ओर बैठे बीजेपी नेता ने उन्हें याद दिलाया कि गलती से उन्होंने अपने ही नेता का नाम ले लिया है। जिसके बाद शाह ने तुरंत अपनी ‘गलती’ मानते हुए कहा कि ‘एक्स्ट्रीमली सॉरी’ मेरे कहने का आशय वर्तमान सिद्धारमैया सरकार से था। लेकिन तब तक तीर कमान से छूट चुका था।

शाह की गफलत पर कांग्रेस ने खूब मजे लिए। शाह के बयान की क्लिप शेयर करते हुए कांग्रेस सोशल मीडिया सेल की इंचार्ज दिव्या स्पंदना ने लिखा-‘कौन जानता था कि अमित शाह भी सच बोल सकते हैं और अमित जी हम सभी आपसे सहमत हैं कि बीजेपी और येद्दियुरप्पा सबसे भ्रष्ट हैं।’ दिव्या के अलावा तमाम अन्य लोगों ने भी सोशल मीडिया पर के इस बयान का मजाक उड़ाया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कटाक्ष किया कि ‘ये‍द्दियुरप्पा ने राज्य में आजतक की सबसे भ्रष्ट सरकार चलाई है।’

ध्यान रहे कि बुकानकेरे सिद्धलिंगप्पा येद्दियुरप्पा कर्नाटक में भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं। वे राज्य के शिवमोगा से लोकसभा सांसद और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी हैं। येद्दि कॉलेज के जमाने से संघ के संपर्क में आए और कर्नाटक में भाजपा की जड़े जमाने में उनकी अहम भूमिका रही है। वैसे येद्दि का इतिहास पुरूषार्थ से भरा है। उन्होंने जिस राइस मिल में क्लर्क की नौकरी की, उसी के मालिक के वो दामाद बन गए। उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं। एक बेटा कर्नाटक विधानसभा में एमएलए है।

राजनीति में कामयाबी की सीढि़यां चढ़ते वो 2008 में कर्नाटक में भाजपा की पहली सरकार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन ये‍द्दि की अहमियत इसलिए ज्यादा है कि वे राज्य के उस प्रभावशाली लिंगायत समुदाय से आते हैं, जिसे रिझाने को लेकर आज कांग्रेस और भाजपा में जबर्दस्त खींचतान मची है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यकों का दर्जा देकर हिंदुओं और खुद लिंगायतों में भी फूट डाल दी है। इससे भाजपा हिल गई है। यही कारण है कि अमित शाह लिंगायतों के मठों में जाकर उनके धर्मगुरुओं को मत्था टेक रहे हैं।

इसमें पेंच यह है कि येद्दि असरदार लिंगायत नेता होने के बावजूद भ्रष्टाचार के आरोप भी अपने माथे ढो रहे हैं। मुख्यमंत्री के रूप में उन पर अवैध उत्खनन, लौह अयस्क का अवैध ढंग से निर्यात करने में मदद करने और बंगलुरू के पास बड़े भूखंड को अवैध तरीके से डी नोटिफाई करने जैसे आरोप हैं। इन आरोपों को पूर्व में लोकायुक्त ने जांच कर सही पाया था। पार्टी नेतृत्व के दबाव के चलते येद्दि को तीन साल मुख्यमंत्री रहने के बाद बेमन से इ्स्तीफा देना पड़ा था। पार्टी ने भी उन्हें अकेला छोड़ दिया था। तत्कालीन राज्यपाल एच.आर. भारद्वाज ने येद्दि के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में एफआईआर दर्ज करवाई।

गिरफ्तार येद्दि 23 दिन जेल में भी रहे। तब कहीं जाकर उन्हें हाईकोर्ट से जमानत मिली। येद्दि उन पर लगे आरोपों के खिलाफ हाईकोर्ट गए, जहां से उन्हें राहत मिली। शक की धुंध अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। लेकिन लिंगायत वोटों के मद्देनजर भाजपा ने येद्दि को पूरी तरह बेदाग मान लिया है और विधानसभा चुनाव में उन पर ही दांव खेला है।

अब सवाल यह है कि ये सब जानते हुए पत्रका‍र वार्ता में अमित शाह की जुबान ‘फिसली’ या सच बोली? वे न चाहते हुए सत्य वचन कह गए? सपाट तर्क कहता है कि य‍दि दाग साबित न हो तो उसे बेदाग माना जाए। इस तर्कभाव से येद्दि भी बेदाग ही हुए। लेकिन वो पूरी तरह निर्दोष भी हैं, यह (उनके लोकसभा चुनाव में जीतने के बावजूद) जनता की अदालत में अभी साबित होना है। शाह की जुबान फिसलने का औचित्य यह भी है कि कांग्रेस के वर्तमान मुख्यमंत्री प्रशासनिक दृष्टि से भले ‘अक्षम’ ठहराए जा सकते हों, लेकिन पांच साल में उन पर करप्शन का कोई दाग नहीं लगा है।

जबकि खुद येद्दि करप्शन के ही कई मामलों में फंसे रहे हैं। हालांकि उनके बचाव में कमजोर सी दलील यह है कि जो आरोप लगे, वो राजनीति से प्रेरित थे। इसी के साथ यह भी सही है कि येद्दि को राजनीतिक कारणों से बचा लिया गया है। वोटों की बल्लेबाजी में रांग फुट पर खेलना गलत नहीं होता। बशर्ते कि उससे सत्ता हासिल हो। अमित शाह इस हकीकत को जानते हैं, लेकिन उसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर सकते। हो सकता है कि पत्रकार वार्ता के दौरान उनके अंतर्मन में येद्दि के अतीत का कोई चलचित्र चल रहा हो और वो धोखे से सच की बयानी कर गए हों।

राजनीति में ‘सत्य का स्वीकार’ भी खतरे से खाली नहीं होता। और फिर येद्दि को तो स्वयं से ज्यादा भाग्य पर भरोसा है। इसीलिए उन्होंने ज्योतिषियों की सलाह पर अपना नाम ‘येदियुरप्पा’ से ‘येद्दियुरप्पा’ कर लिया लिया है। लेकिन क्या नाम बदलने से चरित्र भी बदल जाता है?

(सुबह सवेरे से साभार)

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