गुरुवार का दिन मध्यप्रदेश की लाड़लियों से जुड़ी जो खबरें लेकर आया उसने प्रदेश का माथा गर्व से ऊंचा कर दिया। आमतौर पर मध्यप्रदेश को बालक बालिका अनुपात, बालिका मृत्यु दर और महिला उत्पीड़न के लिए ही जाना जाता है, लेकिन गुरुवार को जो खबरें आईं वे बताती हैं कि तमाम विपरीतताओं के बावजूद प्रदेश की बच्चियां कड़े संघर्ष से समाज में न सिर्फ अपना खास मुकाम बना रही हैं बल्कि देश प्रदेश का नाम भी रोशन कर रही हैं।
पहला सलाम प्रदेश के अपेक्षाकृत पिछड़ा समझे जाने वाले विंध्य क्षेत्र की बिटिया अवनि चतुर्वेदी के नाम। अवनि रीवा जिले से हैं और उनकी स्कूली शिक्षा शहडोल में हुई है। वे इन दिनों इसलिए चर्चा में हैं क्योंकि वे भारतीय वायुसेना की ऐसी पहली महिला पायलट बन गई हैं जिन्होंने अकेले ही फायटर जेट उड़ाया।
2014 में राजस्थान के वनस्थली विश्वविद्यालय से आईटी में ग्रैजुएशन करने के बाद ही अवनि एयरफोर्स में भर्ती हो गईं। उन्होंने हैदराबाद की एयरफोर्स एकेडमी से ट्रेनिंग ली। भारतीय वायुसेना ने जून 2016 में जिन तीन फ्लाइंग ऑफिसर्स को महिला फायटर पायलट बनने का अवसर दिया था उनमें अवनि भी शामिल थी। उनके अलावा बिहार के बेगूसराय की भावना कांत और गुजरात के वड़ोदरा की मोहना सिंह को भी यह गौरव मिला था।
अवनि ने सोमवार को गुजरात के जामनगर एयरबेस से रूस में बने मिग-21 की अकेले ही उड़ान भरी और अपना मिशन पूरा किया। भारत में इससे पहले किसी महिला पायलट ने यह गौरव हासिल नहीं किया था। फाइटर जेट की उड़ान भरना जीरो एरर प्रोफेशन है और इसके लिए पायलट को अनेक कठिन टेस्ट से गुजरना होता है।
अवनि की उपलबिध को जगजाहिर करते हुए एयरफोर्स के प्रवक्ता और फाइटर पायलट अनुपम बैनर्जी ने कहा, “अवनि अकेले फाइटर एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला पायलट बन गई हैं। यह फाइटर पायलट बनने का पहला कदम है। अब भारतीय वायेसुना में महिला पायलट भी ऑपरेशनल फील्ड के लिए जल्द ही तैयार होंगी। हालांकि, पूरी तरह से ऑपरेशन में आने के लिए अभी उन्हें दो साल और ट्रेनिंग से गुजरना होगा।”
दूसरी खबर मध्यप्रदेश की बच्चियों के सामूहिक हौसले और उपलब्धि से जुड़ी है। इसके मुताबिक महिलाओं में रोजगार पाने की क्षमता (हाई एम्पलॉयबिलिटी) के मामले में भोपाल देश में दूसरे स्थान पर रहा है। भोपाल की युवतियां नौकरी पाने में बेंगलुरू के बाद सर्वाधिक सक्षम हैं। वहीं कुल रोजगार क्षमता (टोटल हाई एम्पलॉयबिलिटी स्कोर) के मामले में इंदौर देश में तीसरे नंबर पर है।
पिछले दिनों जारी हुई स्किल इंडिया-2018 की रिपोर्ट के मुताबिक इंदौर में शैक्षणिक संस्थानों से डिग्रियां लेकर निकलने वाले करीब 50 फीसदी युवा नौकरी पाने के योग्य होते हैं। महिला रोजगार क्षमता के मामले में टॉप 9 शहरों में जहां भोपाल का नाम शामिल है वहीं समग्र रोजगार क्षमता वाले टॉप 9 शहरों में इंदौर का नाम शरीक है। दोनों मामलों में बेंगलुरू टॉप पर है।
केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों का असर भी अब दिखने लगा है और रिपोर्ट कहती है कि मध्यप्रदेश के रोजगार कौशल में 2.22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस मामले में हालांकि 13 राज्यों की सूची में मध्यप्रदेश का नाम अंतिम पायदान पर है। महाराष्ट्र के रोजगार कौशल में सर्वाधिक 16.51 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
देश की 120 से ज्यादा बड़ी कंपनियों और पांच लाख से अधिक नौकरी योग्य युवाओं से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट बताती है कि बीएससी करने वाली युवतियां रोजगार क्षमता में सबसे आगे हैं और इनका प्रतिशत 65 है। रोजगार क्षमता बढ़ाने में दूसरा नंबर एमबीए कोर्स का है जो 47 प्रतिशत है, जबकि 46 फीसदी के साथ एमसीए का कोर्स इस मामले में तीसरे नंबर पर है।
रिपोर्ट के मुताबिक देश भर के कॉलेजों से पासआउट हो रहे 52 फीसदी इंजीनियर्स नौकरी पाने के योग्य हैं। इंजीनियरिंग की सभी ब्रांच में आईटी और कंप्यूटर साइंस अब भी सबसे आगे है। आईटी में रोजगार संभावना 64.7 प्रतिशत है, जबकि कंप्यूटर साइंस में 56.05 प्रतिशत। मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन (एमसीए) में रोजगार संभावना 13 फीसदी और बीफॉर्मा में 6 फीसदी बढ़ी है, जबकि मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) में यह 3 फीसदी घट गई है।
एक और चौंकाने वाला तथ्य जो इस रिपोर्ट से उजागर हुआ है, वह कहता है कि कृषि क्षेत्र से जुड़े युवा तेजी से गैर कृषि क्षेत्र का रुख कर रहे हैं। जिन क्षेत्रों की ओर युवाओं का रुझान बढ़ रहा है उनमें मुख्य रूप से निर्माण, व्यापार और ट्रांसपोर्ट कारोबार शामिल है। इन क्षेत्रों में आय कृषि क्षेत्र से 70 फीसदी ज्यादा है। कृषि क्षेत्र के प्रति बढ़ती यह उदासीनता देश के लिए चिंता का विषय है।
लेकिन आज मूल बात मध्यप्रदेश की बच्चियों की उपलब्धि पर केंद्रित है। जैसाकि मैंने कहा मध्यप्रदेश में सामाजिक और आर्थिक दोनों लिहाज से लड़कियों के लिए परिदृश्य सुखद या अनुकूल नहीं है। उसके बावजूद यदि बच्चियां अपने बूते प्रतिस्पर्धा में आगे आ रही हैं तो उनकी इस उपलब्धि को सलाम किया जाना चाहिए।
इस बदलते परिदृश्य के लिए समाज और सरकारों के प्रयासों की पूरी तरह अनदेखी करना भी ठीक नहीं होगा। आमतौर पर सरकारों के प्रयास सिर्फ आलोचनात्मक या नकारात्मक दृष्टि से ही देखे जाते हैं, लेकिन यदि सरकारी योजनाएं पांच दस प्रतिशत लोगों को भी लाभ पहुंचाकर उनका सामाजिक या आर्थिक उन्नयन करने में कामयाब हो रही हैं तो उन्हें इसका श्रेय मिलना चाहिए।
अभी 15 दिन पहले ‘सुबह सवेरे’ में ही बैतूल से एक खबर छपी थी जो कहती थी कि वहां एक व्यक्ति ने बेटा न होने का गुस्सा अपनी पत्नी पर निकाला और उसे रस्सी से बांधकर कुंए में लटका दिया। जिस तरह से लड़कियां तमाम जंजीरों को तोड़कर आगे बढ़ रही हैं उससे लगता है कि सामाजिक मूढ़ता के अंधकूप में डले लोगों को वहां बाहर निकालने का काम भी एक दिन वे ही करेंगी।