मुझे समझ नहीं आ रहा है कि पत्रकार प्रशांत कनौजिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक पत्रकार होने के नाते मैं किस रूप में ग्रहण करूं। चूंकि पिछले चालीस साल से पत्रकारिता ही मेरी रोजी रोटी है इसलिए अभिव्यक्ति की आजादी को संरक्षण देने वाली हर बात मुझे मजबूती देती है। लेकिन इसके साथ ही इन चार दशकों में मैंने जो सीखा और किया वह मुझे कचोटता भी है कि जिस पेशे को ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के नाम पर संरक्षित किया जा रहा है, क्या वह वास्तव में आज उस संरक्षण का हकदार है?
पहले प्रशांत कनौजिया को जान लीजिए। वे इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार हैं और उनका ट्विटर अकाउंट ‘प्रशांत जगदीश कनौजिया’ के नाम से है। उनका ट्विटर हैंडल @PJkanojia है और अपने परिचय में वे खुद को ‘Social Media Ninja and Bawarchi’ बताते हैं। इसी परिचय में दावा किया गया है कि वे देश की जानीमानी न्यूज वेबसाइट ‘द वायर’ के अलावा ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में भी काम कर चुके हैं।
तो इन्हीं प्रशांत कनौजिया ने अपने ट्विटर अकाउंट पर 6 जून को एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें एक महिला उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कथित ‘प्रेमिका’ होने का दावा करते हुए, टीवी चैनलों के माइक थामे लोगों के सामने शपथपत्रनुमा दस्तावेज दिखाते हुए कह रही है कि उसके और योगी के बीच पिछले एक साल से ‘वीडियो कान्फ्रेंसिंग’ चल रही है और अब वह चाहती है कि योगी इस रिश्ते को अमली जामा पहनाएं।
वीडियो में ध्यान देने वाली बात यह है कि महिला खुद ही बयान दे रही है कि उसकी एक बार शादी होकर टूट चुकी है। लखनऊ आने के बारे में पूछने पर वे कहती हैं- ‘’यहां मुख्यमंत्रीजी के लिए हम अपना प्रेम पत्र लेकर आए हैं। मेरी जो फीलिंग है उनके प्रति, वो हम लेटर में लिखकर लाए हैं। एक साल से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के थ्रू मेरी उनसे बातचीत हो रही है। काफी प्यार की भी बातें हो रही हैं। इसलिए हम पूरी लाइफ उनके साथ में रहना चाहते हैं। हम बहुत ज्यादा परेशान हैं… बहुत ज्यादा डिप्रेशन में हैं।‘’
वीडियो में और भी बहुत सी बातें मीडियावीरों ने इस महिला से पूछी हैं और उसने अपनी समझ या मानसिक स्थिति के मुताबिक उनके जवाब दिए हैं। मैं इस वीडियो पर और कोई टिप्पणी करूं इससे बेहतर होगा आप खुद प्रशांत कनौजिया के ट्विटर अकाउंट पर जाकर पहले उस वीडियो को देखें और फिर खुद उस महिला की दावों और उसकी मन:स्थिति के बारे में निर्णय करें। आपकी सुविधा के लिए मैं उसका लिंक भी दे रहा हूं- https://twitter.com/PJkanojia
अब मूल मुद्दे पर आते हैं। प्रशांत कनौजिया ने 6 जून को ‘यूपी न्यूज’ का लोगो लगे हुए, करीब सवा दो मिनिट के इस वीडियो को पोस्ट करते हुए रोमन में कमेंट किया है- Ishq chupta nahi chupaane se yogi ji (इश्क छुपता नहीं छुपाने से योगी जी)। बस यहीं से एक कहानी बनती है। उत्तरप्रदेश पुलिस एक शिकायत के आधार पर, योगी आदित्यनाथ की छवि खराब करने के ‘अपराध’ में प्रशांत को उनके दिल्ली स्थिति घर से गिरफ्तार कर लेती है। बाद में इसी मामले में वीडियो को चलाने वाले एक टीवी चैनल के दो और लोगों को भी गिरफ्तार किया जाता है। मामले में कुल पांच गिरफ्तारियां होती हैं।
निश्चित रूप से पुलिस की इस ताबड़तोड़ कार्रवाई पर सवाल भी उठते हैं और इसे सरकार की तानाशाही भी करार दिया जा सकता है। रही बात मीडिया की तो उसे तो हमेशा से यह हक हासिल ही रहा है कि वह इस तरह की किसी भी कार्रवाई को तुरंत ‘अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला’ करार देते हुए, मीडिया के अपराधियों पर हमलावर हो जाए। और यही हुआ भी…
खैर, पुलिस की इस कार्रवाई को प्रशांत कनौजिया की पत्नी जगदीशा अरोरा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रशांत की तुरंत रिहाई के आदेश देते हुए उत्तरप्रदेश सरकार से कहा कि आजादी का अधिकार मौलिक अधिकार है और इस तरह आप किसी भी नागरिक के अधिकारों का हनन नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत की पत्नी को विधिवत रूप से यह मामला हाईकोर्ट के समक्ष ले जाने को भी कहा है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत को रिहा करते समय इस बात को भी रेखांकित किया है कि आपत्तिजनक पोस्ट पर विचार अलग अलग हो सकते हैं। हम पत्रकार के काम की तारीफ नहीं कर रहे हैं न ही उन पर लगे आरोपों का खंडन कर रहे हैं। इस तरह वीडियो शेयर करना भी सही नहीं था, लेकिन फिर भी गिरफ्तारी को उचित नहीं माना जा सकता।
मैं सुप्रीम कोर्ट की ठीक इसी बात पर बात करना चाहता हूं। मेरा सवाल यह है कि ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की तमाम दलीलों व तमाम हिमायत के बावजूद क्या समाज को और खुद मीडिया को इस बात पर गंभीरता से विचार नहीं करना चाहिए कि इस आजादी की सीमा आखिर क्या हो? जिस हरकत के औचित्य को खुद सुप्रीम कोर्ट गले नहीं उतार पा रहा उसे क्या ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के नाम पर हमें न्यायोचित ठहराना चाहिए? याद रखें यह आजादी एक तरफ जहां हमें सर्वोच्च संरक्षण देती है, वहीं यह भस्मासुर भी बनती जा रही है।
प्रशांत कनौजिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार के आदेश की खबरें पढ़ते समय मुझे अभी कुछ ही दिन पहले हुआ पश्चिम बंगाल का केस याद आया। वहां भाजपा कार्यकर्ता प्रियंका शर्मा ने मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के फोटो से छेड़छाड़ कर उनका मजाक उड़ाने वाला एक मीम सोशल मीडिया पर डाला था। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। प्रियंका शर्मा भी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट आईं थी। लेकिन उस समय कोर्ट ने उन्हें इस ‘शर्त’ के साथ जमानत दी थी कि वे अपने कृत्य के लिए माफी मांगें।
मेरा सवाल है कि क्या प्रशांत कनौजिया के मामले में भी ऐसा नहीं होना चाहिए था। और चलिए, सुप्रीम कोर्ट ने मामला चूंकि हाईकोर्ट में ले जाने को कहा है, तो अब हमें हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। लेकिन क्या पत्रकार संगठनों को, खुद पत्रकारों को यह नहीं कहना चाहिए कि सरकार ने जो किया वह गलत था, लेकिन प्रशांत ने जो किया वह भी गलत था और उसे अभिव्यक्ति की आजादी के दुरुपयोग पर माफी मांगनी चाहिए।
यह तो कोई बात नहीं हुई कि सरकार करे तो अपराध और आप करें तो आपकी आजादी… याद रखिये, एक दिन आजादी का यही भस्मासुर आपको ले डूबेगा। आपकी साख को तो उसने लील ही लिया है, कहीं ऐसा न हो कि वह आपके अस्तित्व को ही राख कर दे…