वायु प्रदूषण के खतरे को समझना होगा

भोपाल/ वायु प्रदूषण पर बात करते हुए हम ज्‍यादा से ज्‍यादा यही सोचते हैं कि यह हमारी सांस लेने की क्षमता को प्रभावित करेगा या कि हमारे फेफड़ों पर असर डालेगा। इससे हमें सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। लेकिन हममें से ज्‍यादातर लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि वायु प्रदूषण से हमारे स्‍वास्‍थ्‍य पर होने वाले खतरनाक असर का दायरा दिल की बीमारियों से लेकर गर्भस्‍थ शिशुओं तक फैला हुआ है।

यह बात बुधवार को नीले आसमान के लिए- अंतरराष्ट्रीय स्वच्छ वायु दिवस पर आयोजित एक वेबिनार में डॉ. राजश्री बजाज ने कही। राजश्री बजाज मध्‍यप्रदेश के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण विभाग के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन और मानव स्‍वास्‍थ्‍य पर बनाए गए राष्‍ट्रीय कार्यक्रम की नोडल अधिकारी हैं। उन्‍होंने बताया कि मध्य प्रदेश ने अपने स्‍तर पर भी मानव स्वास्थ्य के लिए जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित योजना बनाई है और इसके जरिये वायु प्रदूषण कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

इस वेबिनार का आयोजन इंदौर के देवी अहिल्‍या विश्‍वविद्यालय के स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन ने यूनीसेफ के साथ मिलकर किया था और इसमें मीडिया छात्रों एवं मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाले 50 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए।

डॉ. बजाज ने बताया कि वायु प्रदूषण अपनी विनाशकारी प्रतिक्रिया से न केवल जलवायु परिवर्तन पर असर डालता है बल्कि यह अन्य खतरों को भी बढ़ा देता है। वायु प्रदूषण का प्रभाव पांच साल से कम उम्र के बच्चों और मातृ मृत्यु दर पर भी पड़ता है। शोध से पता चला है कि वायु प्रदूषण समय से पहले प्रसव और जन्म के समय बच्‍चों के कम वजन जैसे जोखिम को बढ़ा सकता है। एक प्रेजेंटेशन साझा करते हुए उन्होंने कहा कि पांच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों में निमोनिया के कारण होने वाली आधे से अधिक मौत का कारण वायु प्रदूषण है। बॉयो-मास ईंधन के कारण खतरनाक वायु प्रदूषण साँस के माध्यम से फेफड़ों को प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण के जोखिम को आधा करने से गंभीर निमोनिया के मामलों में 33 प्रतिशत की कमी आई है। वायु प्रदूषण को और अधिक घटा कर इस जोखिम को और कम किया जा सकता है।

यूनिसेफ इंडिया के आपातकालीन परिस्थिति विशेषज्ञ सरबजीत सिंह सहोटा ने कहा कि मध्य प्रदेश ने ‘मानव स्वास्थ्य के लिए जलवायु परिवर्तन’ पर राज्य योजना’ बनाकर एक बड़ा कदम उठाया है। अब हमें इसके क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि मध्य प्रदेश एक समुदाय-आधारित प्रक्रिया के माध्यम से जिलेवार स्रोत विभाजन अध्ययन कर सकता है। इस अध्ययन से उच्च वायु प्रदूषण वाले जिलों और क्षेत्रों की पहचान में मदद मिलेगी।

यूनिसेफ मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ वंदना भाटिया ने बच्चों और महिलाओं को प्रभावित करने वाले वायु प्रदूषण में कमी लाने के लिए मानसिकता बदलने की आवश्यकता पर जोर दिया। यूनिसेफ मध्य प्रदेश के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी ने सेमिनार का संयोजन किया और विषय का परिचय दिया। डीएवीवी, इंदौर की विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसे मुद्दों पर पत्रकारिता के विद्यार्थियों को बहुत कुछ सीखना है, उम्मीद है कि वायु प्रदूषण के मुद्दे पर मीडिया रिपोर्ट्स में वे इन जानकारियों का उपयोग करेंगे। बैठक में वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय भी उपस्थित थे। उन्होंने अपने पोर्टल पर इस मुद्दे को लेकर विद्यार्थियों की रिपोर्ट्स और खबरों को प्रस्तुत करने की पेशकश की।(मध्‍यमत)
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