जमाना जिस तेजी से बदल रहा है, उसकी गति से तालमेल बैठाना पुराने लोगों के लिए कठिन होता जा रहा है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि इस बदलाव की ताल से ताल मिलाना पुरानी पीढ़ी के लोगों के लिए शायद ही संभव हो। खासतौर से तकनीक के मामले में चीजें जिस तेजी से बदल रही हैं वे हैरान कर देने वाली हैं।
लेकिन इस सारी आपाधापी में, घटनाओं के तेजी से घूमते पहिये के साथ, खामोशी से एक और चीज भी समानांतर रूप से चल रही है और वह है नई तकनीक के खतरों को लेकर जागरूकता। नई पीढ़ी जिस तेजी से इस तकनीक की आदी या फिर गुलाम होती जा रही है, उसीके समानांतर समाज की एक धारा उस तकनीक के दुष्परिणामों के प्रति सचेत होकर उसमें जरूरी करेक्शन के लिए दबाव भी बनाती चल रही है।
आप सूचना और संचार तकनीक के मामले को बारीकी से देखें। फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, इंस्टाग्राम जैसे सोशल प्लेटफार्म्स का इतिहास एक दशक से ज्यादा पुराना नहीं है। संचार क्रांति के दौर में ये कथित ‘सामाजिक मंच’ धूमकेतु की तरह आए और देखते ही देखते पूरी दुनिया पर छा गए। एक तरह से इन्होंने लोगों को अपना गुलाम बना लिया।
कहने को इन्हें सोशल मीडिया या सोशल प्लेटफार्म्स कहा गया लेकिन इन ‘वर्चुअल सोशल प्लेटफार्म्स’ ने हमारे वास्तविक समाज के ताने बाने को बुरी तरह छिन्न भिन्न कर दिया। प्रत्यक्ष मेल मिलाप और संवाद की जगह, हवाहवाई मुलाकातों और संवादों ने ले ली। ऐसा संवाद जिसमें कहने को संवाद जरूर हो रहा था लेकिन उसमें मुलाकात की वो ऊर्जा और संवेदना गायब थी।
शुरुआती दौर में यारी दोस्ती और आपसी बातचीत का सबब बने ये मंच धीरे धीरे भस्मासुर हो गए और देखते ही देखते इन्होंने ऐसा विकराल रूप धारण किया कि संवाद और संचार के नाम पर ये समाज को विघटन और विनाश की ओर धकेलने के वाहक बन गए। इनके जरिये अफवाहों और गलत सूचनाओं का ऐसा मायाजाल फैला कि सच तो छोडि़ए, अब तो झूठ पर भी शक होने लगा है।
ऐसे ही बारूदी और भड़काऊ माहौल में भारत सरकार ने टेलीकॉम ऑपरेटरों और इंटरनेट सर्विस प्रदाता (आईएसपीएआई) कंपनियों से कुछ तकनीकी जानकारी मांगी है। टेलीकॉम विभाग ने सभी संबंधित पक्षों को पत्र लिख कर पूछा है कि अगर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में है, तो क्या इन सोशल प्लेटफार्म्स को ब्लॉक किया जा सकता है?
दरअसल सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने पर व्हाट्स एप, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि को बंद करना चाहती है। उसका मानना है कि बीते कुछ समय से देश में अफवाह फैलाने में व्हाट्स एप और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। चाहे वे मॉब लिंचिंग की घटनाएं हों या फिर सामाजिक सौहार्द को नष्ट करने की। उनके पीछे इन मंचों के जरिये फैलाई जाने वाली गलत जानकारियों का बहुत बड़ा हाथ रहा है।
ऐसी घटनाओं के बाद समाज के विभिन्न वर्गों से बड़ी ताकत के साथ यह आवाज उठी है कि सामाजिक ताने बाने को नुकसान पहुंचाने वाली इन गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए। इसके अलावा हिंसक घटनाओं का कारण बनने वाली गलत सूचनाओं को फैलाने वाले लोगों की पहचान सुनिश्चित कर उन्हें सजा भी दी जानी चाहिए।
चौतरफा दबाव के बाद सरकार में भी हलचल हुई है और अब उसकी ओर से भी इस प्रवृत्ति को रोकने की कोशिश की जा रही है। इस संबंध में फेसबुक और व्हाट्स एप को नोटिस भी दिए गए हैं। ये संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं कि हालात बेकाबू होने पर ऐसे मोबाइल एप कैसे ब्लॉक किए जा सकते हैं? दूरसंचार विभाग ने आईटी कानून की धारा 69ए के तहत इन एप्स को ब्लॉक करने पर राय मांगी है।
दरअसल आईटी (संशोधन) एक्ट-2008 की धारा-69 ए सरकार को इंटरनेट पर आपत्तिजनक सामग्री ब्लॉक करने का अधिकार देती है। यदि सरकार महसूस करती है कि किसी कंटेंट से देश की सुरक्षा, संप्रभुता या अखंडता को खतरा है तो उस कंटेंट को वह ब्लॉक कर सकती है। विदेशों से संबंध बिगाड़ने की आशंका वाला कंटेंट भी ब्लॉक किया जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि सोशल प्लेटफार्म्स को संचालित करने वाली कंपनियां इस खतरे से वाकिफ नहीं हैं। उन पर केवल भारत से ही नहीं बल्कि दुनिया के विभिन्न भागों से यह दबाव बना है कि वे अपराध और हिंसा के साथ-साथ सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाली सामग्री पर लगाम कसें। इसीका नतीजा है कि पिछले दिनों गूगल, फेसबुक और वाट्सएप ने फेक न्यूज और आपत्तिजनक सामग्री की पहचान करने और उनके प्रवाह को रोकने के कदम उठाए हैं।
भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले सोशल मीडिया प्लेटफार्म वाट्स एप ने मैसेज फॉरवर्ड करने की सुविधा सीमित कर दी है। लेकिन संदेश के स्त्रोत का पता लगाने की कार्रवाई करने पर असहमति जताई है। जबकि सरकार इस पर ज्यादा जोर दे रही है। दरअसल ऐसे लोगों की पहचान का मुद्दा किसी सूरत में टाला नहीं जा सकता क्योंकि ऐसे दोषियों को सजा मिलना जरूरी है।
आईटी मंत्रालय ने पिछले दिनों व्हाट्सएप को लिखे पत्र में साफ कहा था कि समाज या देशविरोधी घटनाओं के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। ऐसे संदेश बनाने वालों की पहचान अनिवार्य है। इसी सिलसिले में फेसबुक को भी चेतावनी दी गई थी कि भेजे जाने वाले संदेशों की पर्याप्त जांच करने पर सोशल साइट को भी भड़काने वाली हरकत का भागीदार माना जाएगा और वैसी स्थिति में कंपनी भी सख्त कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहे।
अब जरूरत इस बात की है कि समाज के दबाव से हरकत में आई सरकार के इन कदमों को सही परिप्रेक्ष्य में देखा समझा जाए और उस पर राजनीति न हो। सरकार भी अपने कानूनी हथियारों का इस्तेमाल खुद के विरोधियों को निपटाने में न करे। भ्रामक सूचनाओं के इस बवंडर से सभी को मिलजुल कर निपटना होगा।