राजनीति का अपराधीकरण, अपराध का राजनीतिकरण जैसी बातें दशकों पुरानी हो चली हैं। जब सिविल सेवा की तैयारी करने उत्तर प्रदेश से वाया उत्तरांचल, दिल्ली पुलिस कप्तान बनने का ख्वाब लिए वर्ष 1999 में पहुंचा, तो ये बातें सोचने को मजबूर करती थीं। बहस का विषय भी यही हुआ करता था। वक्त बीतता गया, दो दशकों बाद यह लगने लगा कि कहीं हम सामाजिक संरचना के किसी वीभत्स आयाम पर केन्द्रित तो नहीं हो रहे हैं।
वास्तव में, 2020 में विकसित देश की परिकल्पना लिए, युवा शक्ति के साथ हम आगे तो बढ़ रहे हैं, लेकिन समय-समय पर देश के विभिन्न राज्यों, क्षेत्रों में घटित होने वाली घटनाएं-दुर्घटनाएं सोचने को विवश करती हैं। विशेष कर दिल्ली का निर्भया काण्ड हो, हरियाणा का जाट आंदोलन हो, दादरी का अखलाक प्रकरण हो एवं कुछ दिन पूर्व घटित मथुरा की जवाहर बाग दुर्घटना हो। ये सब सामाजिक संरचना, व्यक्ति के मनोविज्ञान, महत्त्वाकांक्षाओं की अंधी दौड़ का ही वीभत्स रूप हैं।
आज देश के रक्षक ये पुलिस वाले भी किसी के बच्चे, पिता और पति हैं। इस वर्दी के अंदर भी सांस लेता, परिवार पालने वाला इंसान है। हम इस देश के लोग समाज के अपराधीकरण में अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं। या हमारी कायरता, स्वार्थ अथवा परिवार के बाहर, समाज में घटित होने वाली दानवी प्रवृतियों को समझ नहीं पा रही है।
एक न्यूज चैनल के एंकर ने अपनी वेदना पुलिस वालों को खत लिख कर व्यक्त की। उसके जवाब में उत्तर प्रदेश के एक अधिकारी ने पुलिस की पीड़ा, वेदना, वस्तुस्थिति को रखने का प्रयास किया। इनका स्वागत किया जाना चाहिए। मुकुल द्विवेदी एवं संतोष यादव को सच्ची श्रद्धांजलि हम तभी दे पाएंगे, जब हम ऐसे रामवृक्षों को समय रहते पहचानेंगे। ऐसे रामवृक्षों को खाद, पानी, वातावरण देने वाले सूरमाओं, आकाओं को चिन्हित करने का भी वक्त आ गया है।
मैंने पिछले 15 वर्षों में चार नौकरियां की, पुलिस सेवा मेरी चौथी जॉब है। पुलिस विभाग के पिछले सात वर्षों का अनुभव यही बताता है कि पुलिस बल के 92 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करने वाले जवान उच्च अधिकारियों से सकारात्मक दृष्टिकोण एवं एक परिवार का हिस्सा होने का बोध चाहते हैं। परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से लिखने को मजबूर होना पड़ रहा है कि वर्तमान में अधिकांश वरिष्ठ अधिकारी ट्रांसफर, पोस्टिंग को लेकर किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। जिसका प्रभाव इन जवानों पर भी पडऩा लाजमी है। फिर स्वाभिमान, देश-प्रेम, उपकार, अपराध पर नियंत्रण आदि बातें प्रभावित होने लगती हैं।
मीडिया के एक मित्र से मैंने चर्चा में पूछा, आप नकारात्मक खबरों पर ज्यादा फोकस क्यों करते हो? उनका जवाब था क्या करें? ये समाज मसालेदार खबरें पसंद करता है। हमारी भी तमाम सीमाएं एवं बाधाएं हैं। अरे भाई सब्जी थोड़े बना रहे हैं कि मसाला जरूरी है। भारत देश संभावनाओं से भरा है, सच्ची, सहज, सरल बात रखें सब ठीक हो जाएगा।
महाभारत के शिखण्डी की भूमिका से सभी वाकिफ होंगे, जो खुद सक्षम नहीं था, परन्तु दूसरों के कंधे इस्तेमाल कर अपने काम निकलता था। कानाफूसी, षडय़ंत्र, धोखा, धूर्तता उसके प्रमुख लक्षण थे। कलयुग में नित्य घटित होने वाली दुर्घटनाओं में शामिल इन शिखण्डियों को पहचानना आवश्यक है।
मथुरा के जवाहर बाग की घटना का मास्टर माइंड रामवृक्ष यादव जिंदा है या मारा गया, इस पर बहस चल रही है। वो तो सिर्फ एक प्यादा है या था? असली शिखण्डियों की तलाश यह समाज कब करेगा? मुकुल द्विवेदी, संतोष यादव आपने वीरता से अपनी ड्यूटी अंजाम दी, सारा देश शोकाकुल है, सिवाय शिखण्डियों के। प्यारे देशवासियो अपने-अपने क्षेत्र के शिखण्डियों को पहचानने का अब समय आ गया है। थोड़ी मेहनत कर इनको ढूंढो, मेरा विश्वास है इनका हिसाब आप खुद कर सकते हो। विश्वास करो न कोई दंगा फसाद होगा, न अव्यवस्था होगी, न भेदभाव होगा, न शोषण होगा, सभी सहज, सरल, शांतिपूर्वक जीवन यापन कर सकेंगे।
मुकुल तुम्हारे एक करीबी साथी की मर्म वेदना से मैं पूरी तरह सहमत हूं, इस देश में दुबारा तब तक जन्म नहीं लेना, जब तक इन शिखण्डियों का समग्र नाश नहीं हो जाता। रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा, हंस चुगेगा दाना, कऊआ मोती खाएगा। इन कऊओं का शाब्दिक तात्पर्य समाज के शिखण्डियों से है। आम जनता बखूबी जानती है, वर्तमान में ये कऊवे एवं शिखण्डी कौन हैं। ये शिखण्डी जाति, धर्म, क्षेत्र के आधार पर भेदभाव कर समाज में अपना शिकार ढूंढते हैं। इसलिए-
न जाति, न धर्म, न क्षेत्र – देश सर्वोपरि
जय हिन्द
(पंकज चौधरी 2009 बैच के आई.पी.एस. अधिकारी हैं। लेखन से गहरा लगाव रखते हैं। विशिष्ट कार्यशैली के चलते देश के चर्चित युवा आई.पी.एस. अधिकारियों में उनकी गिनती होती है।)