आज समझ ही नहीं आ रहा कि यह कॉलम खुश होकर लिखूं या दुखी होकर। मामला ऐसा उलझा है कि तय करना मुश्किल है कि सरकार के फैसले के साथ खड़ा रहूं या एक घटना के साथ। सरकार का फैसला ऐसा है जो उम्मीद जगाता है, लेकिन घटना ऐसी है जो उम्मीदों पर पानी फेरती है।
चलिए, पहले जरा सरकार का उम्मीद जगाने वाला फैसला सुन लीजिए। फैसला यह है कि मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 10वीं के छात्रों को उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों और अपने कॅरियर के विकल्पों की जानकारी देने के लिये स्कूल शिक्षा विभाग उनका अभिरुचि परीक्षण कराएगा।
विभाग ने इसी साल 6 लाख विद्यार्थियों का अभिरुचि परीक्षण (इन्टरेस्ट टेस्ट) कराने के लिए पुणे के श्यामची आई फाउण्डेशन के साथ 3 वर्ष का एमओयू किया है। यह एजेंसी अभिरुचि परीक्षण और कॅरियर काउंसिलिंग का कार्य नि:शुल्क करेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुछ समय पहले अभिरुचि के अनुसार विषय चयन के लिये हर साल एक लाख विद्यार्थियों का एप्टीट्यूड टेस्ट और कॅरियर काउंसिलिंग कराने की घोषणा की थी। यह कदम उसी संदर्भ में है।
इस टेस्ट के माध्यम से यह पता लगाया जाएगा कि विद्यार्थी को क्या पसंद है और उनमें मौजूद क्षमता के अनुरूप वह किस दिशा में बढ़ सकते हैं। इनमें कला, विज्ञान, नृत्य, संगीत, खेल और पेंटिंग जैसे विषय हो सकते हैं। टेस्ट के बाद मार्गदर्शन और कॅरियर काउंसिलिंग के जरिए विद्यार्थियों को बताया जाता है कि उनकी रुचि के अनुसार अध्ययन की व्यवस्था किन शिक्षण संस्थानों में मौजूद है और वहाँ किस तरह प्रवेश लिया जा सकता है।
अब जरा उस घटना की तफसील जान लीजिए जिसने मुझे दुविधा में डाल दिया है। रतलाम जिले के जावरा स्थित सेंट पॉल स्कूल के प्राचार्य देवेंद्र मूणत ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई है कि सोमवार को वार्षिकोत्सव के दौरान स्कूल में पहली से 5वीं तक के विद्यार्थियों का डांस कॉम्पीटिशन था। इसमें बच्चे पैरोडी के रूप में गाने मिक्स कर प्रस्तुति दे रहे थे।
प्रस्तुति के दौरान ही मिक्स गानों में विवादास्पद फिल्म पद्मावत का चर्चित घूमर गाना भी बजा। हालांकि उसे वहां मौजूद शिक्षकों ने तुरंत बंद करवा दिया। लेकिन दोपहर बाद जब प्रतियोगिता आगे बढ़ी तो 20-25 लोग वहां पहुंचे और तोड़फोड़ करने लगे। उन्होंने कुर्सियां, माइक,स्पीकर आदि फेंक दिए। स्कूल के सूचना बोर्ड पर लगा कांच फोड़ दिया और घूमर गाना बजाने के विरोध में स्कूल बंद करवाने की धमकी दी।
घटना के दौरान बच्चों व उनके पालकों के साथ मारपीट की भी खबर है। अचानक हुए इस हमले से वहां अफरा तफरी और भगदड़ मच गई। इसी आपाधापी में कुछ बच्चों को चोट भी आई। बाद में पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को संभाला लेकिन तब तक हुड़दंगी वहां से भाग चुके थे। बाद में चार संदिग्ध आरोपियों को हिरासत में लिया गया।
बताया गया कि हमला करने वाले लोग करणी सेना से जुड़े हैं। करणी सेना के रतलाम जिलाध्यक्ष जितेंद्रसिंह बरखेड़ी का कहना है कि प्रदेश भर में फिल्म पर रोक है, इसके बावजूद स्कूल वाले गाना बजा रहे थे। बच्चे नहीं समझते, लेकिन शिक्षकों को तो समझना था। हमारे लोग तो सूचना मिलने पर समझाइश देने स्कूल गए थे। विवाद और तोड़-फोड़ से करणी सेना का कोई लेना-देना नहीं है। यह असामाजिक तत्वों का काम है।
अब जरा इन दोनों खबरों को आमने सामने रखकर देखिए। एक तरफ सरकार है जो कहती है कि वह बच्चों की अभिरुचि के अनुसार उन्हें अपना भविष्य बनाने लायक माहौल देने में मदद करेगी। इसके लिए एक प्रोफेशनल संस्था से बाकायदा एमओयू किया गया है। यह संस्था परंपरागत विषयों के साथ नृत्य, संगीत, खेल और पेंटिंग जैसे विषयों में भी बच्चों की रुचि के बारे में जानकारी लेगी।
दूसरी तरफ खुद को करणी सेना जैसे संगठनों से संबद्ध बताने वाले हुड़दंगी हैं जो छोटे छोटे बच्चों को अपनी अभिरुचि या पसंद के अनुसार गीत संगीत से जुड़ी प्रतियोगिता में भाग लेने पर मारपीट और तोड़फोड़ पर उतर आते हैं। उनका दुराग्रह यह है कि बच्चों को संगीत और नृत्य के विषयों का चयन भी उनके ‘निर्देशानुसार’ या उनकी मर्जी से करना होगा।
जब असलियत में माहौल यह है कि बच्चे अपनी पसंद का गाना तक नहीं बजा सकते, अपनी पसंद का डांस नहीं कर सकते, तो सरकार या कोई भी संगठन क्या खाक उनकी अभिरुचि को बढ़ावा दे सकेगा। और चलो मान लें, उन्होंने अपनी अभिरुचि बता भी दी, तो इस बात की गारंटी कौन लेगा कि कल को कोई भी हुड़दंगी संगठन खड़ा होकर उनकी अभिरुचि का गला नहीं घोट देगा?
आखिर ये कौनसा माहौल पनपने दिया जा रहा है, जिसमें स्कूल के छोटे छोटे बच्चों तक को नहीं बख्शा जा रहा। कभी हम उनके द्वारा स्कूलों में गाई जा रही प्रार्थना को सांप्रदायिक या धार्मिक बताने लगते हैं तो कभी हम उनके द्वारा गाए जाने वाले गीतों या उनके नृत्य को समाज के अपमान का फतवा देकर बंद करवा देते हैं।
मेरे हिसाब से ऐसे मामलों में असामाजिक तत्वों के साथ साथ सरकारें भी कम दोषी नहीं हैं। विभिन्न समाजों के बहाने, वोटों के तुष्टिकरण के लिए, अविवेकपूर्ण फैसले करना और बयान देना सरकारों की आदत बन गई है। ‘पद्मावती’ या ‘पद्मावत’ के बारे में भी यही हुआ है। बिना फिल्म को देखे या सचाई को जाने, कई राज्यों और वहां के मुख्यमंत्रियों ने आंख मूंदकर फिल्म को प्रतिबंधित करने का फैसला किया है।
ऐसे अविवेकपूर्ण फैसलों से वोट बैंक भले ही थोड़ी देर के लिए पट जाता हो, लेकिन उसके दूरगामी परिणाम बहुत गंभीर होते हैं। वे समाज को जोड़ते नहीं तोड़ते हैं और जावरा की घटना के बाद तो आप यह भी कह सकते हैं कि वे बच्चों का सिर तक फोड़ते हैं… और जब बच्चों का सिर ही सलामत नहीं तो उनकी अभिरुचि की आपने भली पूछी…!!!