रिश्वतखोरी के विश्व गुरु हैं हम

राकेश अचल

बुरा तो लगेगा लेकिन ये हकीकत है कि हम रिश्वतखोरी में दुनिया में नहीं तो कम से कम एशिया में तो विश्व गुरु हैं ही। रिश्वतखोरी अथवा घूसखोरी के मामले में भारत ने पूरे में एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया है, जिस पर हर भारतीय को शर्म महसूस होगी। भ्रष्टाचार के मामले में भारत की स्थिति एशिया में सबसे अधिक खराब है, क्योंकि भारत में घूसखोरी की दर 39 फीसदी है।

देश में चल रहे किसान आन्दोलन के कारण ये खबर सुर्खियों में नहीं आ सकी जबकि भ्रष्टाचार पर काम करने वाले ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ये रिपोर्ट बुधवार को ही जारी हो चुकी है। इसमें दावा किया गया है कि एशिया में घूसखोरी के मामले में भारत शीर्ष पर है, वहीं दूसरे नंबर पर कंबोडिया (37 फीसदी) और तीसरे पर इंडोनेशिया (30 फीसदी) है। दुनिया की नाक में दम करने वाले चीन में घूसखोरी की दर 28 फीसदी है। सबसे कम घूस देने वाले देश में मालदीव और जापान संयुक्त रूप से है।

अजब संयोग है कि मैंने मालदीव और जापान को छोड़ एशिया के इन सभी महाघूसखोर देशों की यात्रा की है। कंबोडिया में तो हमसे सीमा पर ही घूस धरा ली गई, तब देश में प्रवेश करने दिया गया। इंडोनेशिया में घूस शर्माते हुए ली गई। दोनों गरीब देश है। चीन में तो रिश्वत को नैतिक अधिकार समझा जाता है। हमें अपने गाइड को चंदा कर ये काम करना पड़ा।

निजी संपर्कों का सहारा लेने में भी हम सबसे आगे हैं। हमारे यहां तो इस संस्कृति को भाई-भतीजावाद कहा जाता है। इस मामले में भारत के बाद इंडोनेशिया और चीन का नंबर आता है। भारत में जहां 46 फीसदी लोगों ने निजी संपर्कों का सहारा लिया, वहीं इंडोनेशिया में 36 और चीन में 32 फीसदी लोगों ने इसका इस्तेमाल किया। ठीक इसके उलट, जापान और कंबोडिया में महज 4 और 6 फीसदी लोगों ने सार्वजनिक सेवाओं का लाभ उठाने के लिए भाई भतीजावाद का सहारा लिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि रिश्वत देने वाले करीब 50 फीसदी लोगों से घूस मांगी गई थी। वहीं 32 फीसदी लोगों ने कहा कि अगर वे घूस नहीं देते तो उनका काम नहीं हो पाता। आप गर्व कर सकते हैं कि जनवरी में विश्व आर्थिक मंच पर दावोस में जारी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी एक पूर्व रिपोर्ट में भारत को भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में 180 देशों के बीच 80 वें स्थान पर रखा गया था।

आपको बता दें कि ‘ग्‍लोबल करप्‍शन बैरोमीटर-एशिया’ के नाम से प्रकाशित सर्वे रिपोर्ट के लिए ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने जून और सितंबर के बीच 17 देशों के 20 हजार लोगों से सवाल पूछे। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा सर्वे के दौरान लोगों से पिछले 12 महीनों में भ्रष्‍टाचार के अनुभवों और धारणाओं की जानकारी मांगी गई थी। सर्वे में छह तरह की सरकारी सेवाएं शामिल गई थीं- पुलिस, स्कूल, कोर्ट, सरकारी अस्पताल, पहचान पत्र और सेवा लाभ।

भारत में घूस लेने में हमारी पुलिस अव्वल दर्जे की है। पुलिस को घूस देने वाले लोगों की संख्या 42 फीसदी है। वहीं, पहचान पत्र जैसे कागजात बनवाने के लिए करीब 41 फीसदी लोगों ने रिश्वत दी है। पुलिस वाले उदार भी है वे भाई भतीजावाद में भी यकीन रखते हैं। निजी संपर्कों का उपयोग कर सबसे अधिक 39 फीसदी ने अपना काम निकलवाया है। वहीं, पहचान पत्र हासिल करने के लिए 42 फीसदी और अदालती मामलों में काम निकलवाने के लिए 38 फीसदी लोगों ने निजी संपर्कों का इस्तेमाल किया है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि पड़ोसी देश नेपाल में घूसखोरी की दर महज 12 फीसदी है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सर्वेक्षण में शामिल 47 फीसदी लोगों का मानना है कि पिछले 12 महीनों में भ्रष्टाचार बढ़ा है, जबकि 63 फीसदी लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए सरकार अच्छा काम कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 46 फीसदी लोगों ने सार्वजनिक सेवाओं का लाभ उठाने के लिए निजी संपर्कों का सहारा लिया है। आप चाहें तो इसका श्रेय पंत प्रधान को दे सकते हैं।

विकीपीडिया कहती है कि जब किसी व्यक्ति को धन या कोई उपहार इसलिये दिया जाता हैं कि किसी मामले में धन प्राप्त करने वाले का व्यवहार अपने पक्ष में हो जाए, तो इसे घूस (Bribe) कहते हैं। इसे एक आर्थिक और दण्डनीय अपराध होने के साथ-साथ एक सामाजिक बुराई भी है। हमारे देश में रिश्वतखोरी व भ्रष्‍टाचार का प्रचलन प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। यह हमारा नहीं, प्राचीन शिलालेख का कहना है। बिहार के रोहतास से मिले ताराचंडी शिलालेख में रिश्वत की परंपरा का उल्लेख है।

विदित हो कि ताराचंडी देवी प्रतिमा के बगल में 12वीं सदी के खरवार वंशी राजा महानायक प्रतापधवलदेव ने अपने पुत्र शत्रुघ्न के माध्यम से एक बड़ा शिलालेख लिखवाया है, जो 212 सेमी लंबा व 38 सेंमी चौड़ा है। शिलालेख में राजा के अधिकारियों को रिश्वत दे, दो गांवों को प्राप्त कर लेने का वर्णन है। इसमें रिश्वत से लिए गए एक जाली ताम्रपत्र का वर्णन है। राजा का जाली हस्ताक्षर कर ताम्रपत्र भी जारी करा दिया गया था। हालांकि, राजा ने इस बात की जानकारी होते ही जाली ताम्रपत्र को रदद् कर दिया था।

ताराचंडी शिलालेख 16 अप्रैल 1169 का है। इसमें प्रतापधवलदेव को जपिलापति कहा गया है। संस्कृत में लिखे इस शिलालेख में कहा गया है कि ऐश्वर्यशाली देव स्वरूप प्रताप धवल जिनकी कीर्ति चहुंओर फैली हुई है, अपने वंशजों से कहते हैं कलहंडी के समीप के गांव सुवर्णहल (वर्तमान शिवसागर प्रखंड का सोनहर गांव) के विप्रों द्वारा छद्मनाम से रिश्वत देकर शासक के बेइमान दासों से जो दोषपूर्ण ताम्रपत्र प्राप्त किया गया है, उसपर आसपास के लोगों का विश्वास करने का कोई आधार नहीं है।

संवत 1229 में जपिलाधिपति महानायक प्रतापधवल देव अपने पुत्रों, पौत्रों आदि के अतिरिक्त अपने वंशजों से कहते हैं कि कान्यकुब्ज के सौभाग्यशाली महाराज विजयचंद्र के बेईमान दासों को घूस देकर उन्हें परलोकगमन संबंधी धार्मिक अनुष्ठान के प्रयोजन की जालसाजी से कलहंडी व बरैला गांवों को छद्म नाम से मिलने का ताम्रपत्र प्राप्त किया है। ऐसा सुवर्णहल के आमजनों से सुना गया है कि वे विप्र व्यभिचारी हैं। जमीन का एक टुकड़ा यहां तक कि सुई की नोक के बराबर भी उनके अधिकार में नहीं है। इनकी उपज से शुल्क प्राप्त करने का अधिकार तुम्हें है।

सोनहर से प्राप्त उक्त ताम्रपत्र पटना संग्रहालय में रखा गया है। इसमें वर्णित है कि उस समय के कन्नौज के राजा विजयचंद्र, जिनका शासन काशी तक था, ने दो विप्रों को बरैला व सोनहर गांवों को दान में दिया है, जिसका स्वामित्व उन्हें प्राप्त हो गया है। यह राज्यादेश ताम्रपत्र पर लिखा गया था। लेकिन, उस ताम्रपत्र को प्रतापधवलदेव ने झूठा घोषित कर उन गांवों पर से अपना दावा छोड़ने से इनकार कर दिया।

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