विक्रम हमें माफ़ कर देना

राकेश अचल

गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी ने जैरे इलाज अस्पताल में दम तोड़ दिया। अपनी भानजी से छेड़छाड़ का विरोध करने पर बदमाशों ने उनके ऊपर बीती रात जानलेवा हमला किया था। विक्रम पर जब हमला हुआ और उन्हें गोली मारी गयी तब उनके साथ उनकी दो बेटियां भी थीं। अब ये बेटियां ताउम्र इस बात के लिए अफ़सोस करेंगी कि उनके पिता गाजियाबाद में क्यों रह रहे थे, क्या वे नहीं जानते थे कि यूपी में उस महात्मा का राज है, जहां की पहचान अब अराजकता बन चुकी है।

तीन दिन पहले आरोपी युवकों ने उनकी भांजी पर अश्लील फब्तियां कसी थी, जिसको लेकर मारपीट भी हुई थी। भांजी के साथ हुई छेड़छाड़ की घटना की बाबत रिपोर्ट विजय नगर थाने में दर्ज कराई थी, जिसके बाद से उपरोक्त घटनाक्रम में आरोपी युवक लगातार धमकी दे रहे थे। मुकदमा होने के 3 दिन बाद तक उनके खिलाफ पुलिस द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की गई। इसी का नतीजा था कि उन्होंने विक्रम को घेरकर गोली मार दी।

विक्रम भूल गए थे कि यूपी की पुलिस गुंडों के हाथों से जब अपने जवानों को मरने से नहीं बचा सकती तो उन्हें आखिर किस मुंह से बचाती? पुलिस उनके हत्यारों को विकास दुबे की तरह मुठभेड़ में भी नहीं मार गिरा सकती क्योंकि गुंडों ने पुलिसकर्मियों की नहीं बल्कि एक पत्रकार की हत्या की है।

कलम के सिपाही विक्रम की हत्या के बाद यूपी की बहादुर पुलिस ने उनकी हत्या के आरोपियों को पकड़ कर अपनी कथित कर्तव्यनिष्ठा का परिचय दिया है, लेकिन इस वारदात से यूपी की सरकार और पुलिस के दामन पर अराजकता का जो कलंक लगा है उसके बारे में अब बाक़ी लोगों को सोचना चाहिए।

विक्रम की अकाल मौत से उनका परिवार अनाथ हो गया है। मुमकिन है कि यूपी के उदारमना मुख्यमंत्री हमेशा की तरह मृतक के परिजनों को मुख्यमंत्री आवास पर बुलाकर उनके सर पर सांत्वना का हाथ भी रखें और कुछ नगद इमदाद भी दे दें। लेकिन ये भी सूबे में दिनोंदिन बढ़ रही अराजकता की आग को कम नहीं कर पायेगा, ये आग तो लगातार बढ़ रही है। बदमाश सरेआम अपना काम कर रहे हैं। यूपी में ही बलात्कार के एक आरोपी ने फरियादी लड़की और उसकी माँ को ट्रेक्टर से कुचल कर मार दिया।

चूंकि मेरी जन्मभूमि यूपी है इसलिए मैं इस सूबे को लेकर हमेशा संवेदनशील रहता हूँ। मुझे अब लगने लगा है कि यूपी में राम राज दरअसल वक्त से पहले आ गया। यूपी के राम राज (योगी राज) में शिकार और शिकारी एक घाट पर हैं। शिकारी अभय हैं और शिकार भयाक्रांत। मुख्यमंत्री को किसी की चिंता नहीं है, वे अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास की तैयारियों में व्यस्त हैं। वे तो कोरोनाकाल में भी इतने व्यस्त थे कि अपने पिता की अंत्येष्टि में भी शामिल नहीं हुए थे। तो वे विक्रम की मौत से आहत क्यों होंगे, वे तो योगी हैं और योगी सुख-दुःख से ऊपर होते हैं। उनके ऊपर दैहिक, दैविक आपदाओं का कोई असर नहीं होता।

हमारे अनेक पत्रकार मित्र योगी के अनन्य भक्त हैं और मुमकिन है कि वे इसी भक्तिभाव के कारण विक्रम की मौत के लिए यूपी की सरकार, मुख्यमंत्री और पुलिस को दोषी न मानें। उनके लिए विक्रम की मौत क़ानून और व्यवस्था का साधारण सा मामला हो, इसलिए वे कोई आंदोलन भी न करें। लेकिन मैं इस हत्या के लिए यूपी के प्रथम पुरुष को ही जिम्मेदार मानता हूँ। मेरी भगवान से प्रार्थना है कि वो सूबे की जनता को इस अराजकता से बचाये, क्योंकि यूपी में सरकार को नाथने वाला न विपक्ष है और न मीडिया। सब शीतनिद्रा में हैं।

रिवायत के तहत यूपी में कांग्रेस की जड़ें सींच रहीं श्रीमती प्रियंका गांधी ने और आप के संजय सिंह के अलावा दूसरे नेताओं ने विक्रम की मौत को लेकर ट्वीट कर दिए हैं। लेकिन इन ट्विटर मास्टरों को नहीं पता की विरोध सड़कों पर किया जाना चाहिए, ट्वीट करने से कुछ नहीं होता। जैसा कि हमारे लेख लिखने से कुछ होने वाला नहीं है। हम अपना गुस्सा थूक रहे हैं और विक्रम से माफी चाहते हैं कि हम उनकी शहादत का न बदला ले सकते हैं और न उनके खून की शहादत को बेकार जाने का भरोसा दिला सकते हैं, क्योंकि हम भी विक्रम की तरह असुरक्षित हैं।

यूपी में कभी भी, किसी भी दूसरे विक्रम को गोली मारी जा सकती है, क्योंकि यहां वक्त से पहले राम राज आ चुका है। विक्रम की हत्या की जांच की जरूरत ही नहीं है क्योंकि पुलिस ने उनकी हत्या के आरोपियों को पकड़ लिया है। चौकी प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है। इसलिए पत्रकारों को खामोश बैठना चाहिए और सूबे में 5 अगस्त को राम मंदिर के शिलान्यास समारोह में आ रहे प्रधानमंत्री के स्वागत की तैयारी करना चाहिए।

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