भोपाल में शिवाजी नगर और तुलसी नगर में बनाई जाने वाली स्मार्ट सिटी के प्रस्ताव को खारिज करने के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के फैसले के बारे में हमारा मानना है कि ‘’चूंकि स्वयं मुख्यमंत्री ने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए स्मार्ट सिटी के स्थान परिवर्तन की बात कही है, इसलिए जाहिर है,अगले प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार करवाने में सारा दारोमदार भी उन्हीं के कंधों पर आ गया है। जो बड़ा दिल पुराना प्रोजेक्ट वापस करने में दिखाया गया है, उससे भी बड़े दिल से यदि नए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की रचना होगी तो उससे शहर का भी भला होगा और लोगों का भी।‘’
इसी के अनुरूप मुख्यमंत्री ने सारी स्थितियों को भांपते हुए अगले मोर्चे पर तत्काल काम शुरू कर दिया है। पहला वाला फैसला उलटने के अगले ही दिन वे स्मार्ट सिटी के लिए वैकल्पिक तौर पर सुझाए गए इलाके नार्थ टी.टी. नगर (मूल रूप से तात्या टोपे नगर) के दौरे पर थे। उन्होंने प्रस्तावित स्थल का निरीक्षण किया और एक बात जोर देकर कही कि भोपाल शहर को स्मार्ट बनाने वाली व्यवस्थाएँ करते समय यहां के प्राकृतिक सौंदर्य, हरियाली और खुले क्षेत्र की विशिष्टता को बरकरार रखा जायेगा। दरअसल यही वे मुद्दे थे जिन्हें लेकर शिवाजी नगर और तुलसी नगर क्षेत्र के प्रस्ताव का जमकर विरोध हुआ था। यानी पेड़ से जली सरकार ने पत्ते भी फूंक फूंक कर देखना शुरू कर दिया है। इस बार यदि कोई गलती हुई तो सरकार के साथ साथ वह शिवराजसिंह की व्यक्तिगत छवि को भी प्रभावित करेगी इसलिए एक बार फिर सारा दारोमदार मुख्यमंत्री पर ही आ पड़ा है। शिवराज भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं, इसलिए उन्होंने पहला प्रस्ताव खारिज करने के 24 घंटे के भीतर ही नए स्थान का दौरा कर लिया।
स्मार्ट सिटी के नए प्रस्तावित स्थल को लेकर मुख्यमंत्री के दौरे के कुछ संकेत बहुत साफ हैं। पहला संकेत तो यही है कि सरकार ऐसा कोई संदेश नहीं जाने देना चाहती कि मध्यप्रदेश शासन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर किसी अनिर्णय का शिकार है। इसके अलावा मुख्यमंत्री का अधिकारियों को दिया गया यह निर्देश भी महत्वपूर्ण है कि नई योजना पर काम युद्धस्तर पर शुरू हो जाना चाहिए। यानी सरकार इस चिंता से वाकिफ है कि पहला प्रोजेक्ट खारिज हो जाने के बाद नया प्रोजेक्ट तैयार करने में समय लगेगा और पूरी संभावना है कि प्रोजेक्ट पूरा होते होते अपनी तय सीमयसीमा से काफी लेट हो जाए। लेकिन जिस आत्मविश्वास के साथ शिवराज ने नए स्थल की बात कही है, उससे लगता है कि उनकी इस बारे में ऊपर तक पहले ही बात हो चुकी है और केंद्र से नए स्थल को लेकर वैसा कोई बड़ा अड़ंगा नहीं आने वाला जैसाकि आशंका जताई जा रही है। हां, शिवराज को बिना वजह अड़ंगा लगा देने वालों से जरूर सावधान रहना होगा।
दूसरा मामला जनता और समाज के नुमाइंदों का है। स्मार्ट सिटी योजना यहां नहीं तो वहां, कहीं तो क्रियान्वित जरूर होगी। यह केवल भोपाल के एक इलाके का नहीं बल्कि पूरे शहर से जुड़ा मसला है। इसलिए इसमें सिर्फ सरकार और भोपाल नगर निगम की ही नहीं बल्कि पूरे भोपालवासियों की भूमिका होनी चाहिए। सबसे बड़ी भूमिका तो उस समूह की ही है, जिसने तमाम तर्क और मुद्दे उठाते हुए शिवाजी नगर और तुलसी नगर वाले प्लान का विरोध किया था। उस समूह की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो गई है। उसे यह सोचकर चुप नहीं बैठ जाना चाहिए कि अपना इलाका तो बच गया अब जहां जो बनना हो बनता रहे। पहले प्रस्ताव का विरोध करने वाले समूह में जो विशेषज्ञ शामिल थे, उन्हें अपनी सेवाएं और राय नए प्रोजेक्ट के बारे में भी सरकार और समाज दोनों से साझा करनी चाहिए। सरकार की ओर से भी पहल होनी चाहिए कि वो राजधानी के उन विषय विशेषज्ञों को साथ लेकर चले जो भोपाल के लिए चिंता रखते हैं।
एक भूमिका राजनीतिक दलों की भी है। अकसर ऐसे मौकों पर राजनीतिक हितों के लिए, विरोध के नाम पर विरोध खड़ा कर दिया जाता है। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि मुख्यमंत्री ने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए, एक अति महत्वकांक्षी योजना से कदम वापस खींचे हैं। अब सभी की जिम्मेदारी है कि स्मार्ट सिटी जहां भी बने, वहां पहले से ही सारी बातों को लेकर शहर के हित में एक समझ विकसित हो। बगैर समाज और शहर के सहयोग के इस तरह का कोई भी प्रोजेक्ट आकार नहीं ले सकता। यह भी नहीं हो सकता कि योजना का लगातार विरोध होता रहे और सरकार लगातार स्थान बदलती रहे। सरकार को भी विश्वास दिलाना होगा कि नार्थ टीटी नगर का फैसला अचानक सामने ला दिया गया विकल्प नहीं है बल्कि उस स्थान का चयन सोच समझकर किया गया है। ऐसा नहीं है कि इस स्थान को लेकर कोई चूं-चां नहीं होगी। यह सोचकर निश्चिंत न हो जाएं कि यहां तो खाली जमीन और मलबे का ढेर है, तो काम आसान हो जाएगा। रायता फैलाने वाले लोग यहां भी खड़े मिलेंगे। इसलिए जरूरी है कि जो भी हो वह सभी पक्षों को विश्वास में लेकर हो। वरना नए निर्माण की बात तो छोड़ दीजिए,हमारे यहां तो ऐसे ही विरोधों के चलते, मलबे के ढेर भी बरसों-बरस पड़े रहते हैं।
गिरीश उपाध्याय (सुबह सवेरे)