रमेश रंजन त्रिपाठी
‘मेरे पास इस साड़ी का मैचिंग मास्क नहीं है, क्या करूँ?’ पत्नी अनमनी हो गई।
‘हमें देर हो रही है।’ पति भुनभुनाया- ‘सस्पेंस फिल्म में लेट पहुंचे तो शुरुआती थ्रिल से वंचित रह जाएंगे।’
‘मैं तो साड़ी बदलूंगी।’ पत्नी ने जवाब दिया- ‘वैसे भी फिल्म के शुरू में धूम्रपान, मदिरापान, सेनेटरी पैड के साथ कोरोना से बचने के लिए मास्क, दस्ताने पहनने का पाठ पढ़ाया जाता है। लॉकडाउन खुलने के बाद सभी लोग मास्क और दस्ताने पहनने लगे हैं फिर भी पता नहीं क्यों दिन में सौ बार मोबाइल, अखबार, रेडियो तो कभी टीवी में मास्क पहनने की चेतावनी देते रहते हैं?’
‘मास्क के फायदे भी तो देखो’, पति मुस्कुराया- ‘तुम्हारे लिपस्टिक और तीन चौथाई चेहरे के मेकअप का खर्च बच जाता है। दस्ताने की वजह से नेल पॉलिश और महंगी अंगूठियां नहीं पहननी पड़तीं। मुझे मूछों की चिंता नहीं रहती।’
‘पूरा चेहरा न दिखाई देने से मर्दों का ध्यान नहीं भटकता।’ पत्नी ने हंसते हुए पति की बात को आगे बढ़ाया।
‘सच कहती हो।’ पति भी मजे लेने से नहीं चूका- ‘अब तो यही गाने को मन करता है कि ये जो चिलमन है दुश्मन है हमारी या रुख से जरा मास्क हटा दो मेरे हुजूर।’
‘कोरोना पूर्व का युग ही ठीक था।’ पत्नी ने आह भरी- ‘हमारा चेहरा चौदहवीं का चांद हुआ करता था। होंठ गुलाब की पंखुड़ी और रुखसार दहकते अंगारे होते थे। हाथ मांगने के लिए लड़कों की लाइन लगी रहती थी। हाथों में हाथ डालकर घूमने का मजा ही कुछ और था। सत्यानाश हो इस कोरोना का जिसने लोगों को एक-दूसरे से नौ हाथ दूर कर दिया है।’
पति-पत्नी तैयार होकर निकले तो उनकी छटा देखते ही बनती थी। पत्नी साड़ी से मैच करता हुआ लेडीज मास्क मुंह में बांधे, हाथों में दस्ताने पहने पति से छह फुट की दूरी बनाकर चल रही थी। पति ने भी जीन्स से मैच करती हुई टी-शर्ट और इनसे मैच करते हुए मास्क तथा दस्ताने पहन रखे थे। उन दोनों की आंखों में गजब की चमक थी। उनकी ऑनलाइन बुलाई गई टैक्सी कार भी विशेष थी। सभी सीटों को पारदर्शी कांच से पृथक कर एक कैबिन का रूप दे दिया गया था ताकि उसमें बैठने वाले एक-दूसरे के संपर्क में न आएं। गाड़ी में सीट-बेल्ट, एयरबैग के अलावा मास्क सेंसर भी लगे हुए थे जो किसी एक सवारी के भी बिना मास्क के होने पर इंजन को चालू नहीं होने देते थे।
‘देखो जी, फैशन शो में अपने देश की सबसे महंगी मॉडल ने एक नई डिजाइन का मास्क लगाकर कैट वॉक किया है, मैं अपने लिए उसी डिजाइनर मास्क का ऑर्डर दे रही हूं, आपको भी कुछ मंगाना हो तो बताएं।’ पत्नी ने ऑनलाइन ऑर्डर का ऐप खोलते हुए पूछा।
‘मैडम, इन दिनों सभी सामानों पर पहले के आईएसआई निशान की तरह कोरोना फ्री की सील भी लगी होना जरूरी है न?’ टैक्सी ड्राइवर ने पूछ तो लिया लेकिन बीच में टोकने की भूल का अहसास होने पर तत्काल माफी भी मांग ली। पत्नी माफ करतीं तभी लाल-बत्ती पर रुकी गाड़ी की खिड़की में एक भिखारी प्रकट हुआ जो फटे कपड़े को चेहरे पर लपेटे भीख के लिए बिना दस्ताने वाला हाथ फैलाए खड़ा था। पत्नी ने पहले तो नाक-भौंह सिकोड़ी, फिर परोपकार के अहंकार की तुष्टि के लिए उसे रुपए देने लगीं।
‘मैडम, आप नोट को जमीन पर डाल दें, यह उठा लेगा।’ टैक्सी चालक ने चेताया-‘आप इससे दूर ही रहें, यह कोरोना संक्रमित हो सकता है!’
‘और, मैं कोरोना पॉजिटिव हुई तो?’ पत्नी के मुंह से अनायास निकल गया-‘इस बेचारे का क्या होगा?’
‘मैडम, बेहतर है आप इसे भीख डिजिटली ट्रांसफर कर दें।’ ड्राइवर ने सुझाव दिया-‘सरकार ने सभी भिखारियों को भीख के ऐप वाला मोबाइल दे रखा है जिसमें दस रुपये तक की रकम दी जा सकती है।’
‘ज्यादा क्यों नहीं?’ पति को ताज्जुब हुआ।
‘इनकम टैक्स का लफड़ा बन सकता है न!’ ड्राइवर बोला-‘आप नहीं जानते, आजकल ये भिखारी कोरोना से बचे रहने की दुआ देकर लोगों को इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं और खूब कमाई कर रहे हैं।’
‘ऐसा आशीर्वाद तो एक बाबाजी भी देते हैं और डोनेशन बटोरते हैं।’ पत्नी बोली-‘वे तो कोरोना रक्षा यज्ञ कराते हैं। सिद्ध किया हुआ कोरोना कवच यंत्र देते हैं। एक फकीर तो कोरोना से बचने के लिए अपनी कृपा बेचते हैं। जिसके लिए एडवांस बुकिंग तक होती है।’
‘बाबूजी, कोरोना का फुलप्रूफ टीका आने में कितना समय लगेगा?’ ड्राइवर ने उसांस भरी-‘बहुत दिन हो गए कोरोना पूर्व युग का आनंद उठाए हुए।’
पति-पत्नी एक-दूसरे का मुंह (वास्तव में मास्क) देखने लगे। तभी टैक्सी चालक ने किसी को बचाने के लिए जोर का ब्रेक लगाया तो झटके से पति की आंख खुल गई। वह सामने टंगे कैलेंडर में लॉकडाउन के शेष दिनों की गिनती करते हुए आनेवाले समय की कल्पना में खो गया।
(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)