ओमप्रकाश गौड़
एक्जिट पोल के नतीजे सामने हैं। अखबार भी देखे। यारों को खुशी है कि हंग यानि त्रिशंकु विधानसभा बनने जा रही है। मेरे सहित कुछ को यकीन है कि सरकार तो भाजपा की बनेगी। बहुत संभावना है कि स्पष्ट बहुमत से बने। यह टूटी तो फिर भाजपा के प्रबंधक बहुमत का इंतजाम कर लेंगे। अंतिम विकल्प है कि गठबंधन सरकार बने, जेडीएस के साथ। गठबंधन में सीएम येदियुरप्पा के ही बनने की उम्मीद है। लेकिन सामने देवगौड़ा जैसा घाघ राजनेता है। यहां मन विचलित होता है।
फैसला अगर मुझे करना होता तो वही करता जो कह रहा हूं। भाजपा के येदियुरप्पा की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार। लेकिन फैसला हो चुका है जो किसी को पता नहीं है और सामने 15 मई को आएगा। हो सकता है उसके बाद चालबाज, जालसाज सब मैदान में हों और उनके कुकृत्य देख मेरे सहित कई दोस्तों के सिर शर्म से झुक जाएं। ऐसे में सारी संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं। देवगौड़ा पुरानी दुश्मनी भूल जाएं और कांग्रेस के सिद्धारमैया को स्वीकार कर लें और सरकार जेडीएस के समर्थन से कांग्रेस की बन जाए और ताज फिर से सिद्धारमैया के सिर पर सज जाए।
यह भी हो सकता है कि कांग्रेस सिद्धारमैया की बलि चढ़ा कर दूसरे कांग्रेसी नेता को सीएम बनाने को राजी हो जाए और जेडीएस के सहयोग से सेहरा कांग्रेस के माथे पर बंध जाए। यहां सिद्धारमैया से आत्मबलिदानी भावना की उम्मीद भी रखी जा सकती है कि वे स्वयं ही मैदान से हट जाएं और दूसरे कांग्रेसी के लिये रास्ता साफ कर दें। यहां भी घाघ देवगौड़ा अपना सीएम बनाने की जिद पकड़ कर सत्ता के सूत्र अपने हाथ में ले ले तो आश्चर्य नहीं होगा।
राजनीति संभावनाओं का खेल है इसलिये हमें परिदृश्य साफ होने का इंतजार करना ही पड़ेगा। जरा विश्लेषण को परखें तो साफ है कि मुस्लिम मतदाता ने कांग्रेस का साथ दिया है। यहां तक कि देवगौड़ा को उनके गढ़ ओल्ड मैसूर यानि दक्षिण कर्नाटक में मुस्लिम मतदाताओं का साथ नहीं मिला। वहां वे कांग्रेस के साथ गये। जेडी देवगौड़ा को अपनी सवर्ण जाति वोक्कालिग्गा के सहारे रहना पड़ा जिससे उन्हें अपेक्षित संख्या में सीटें नहीं मिली। इससे किंगमेकर के उनके सपने को एक हद तक धक्का लगा है। भाजपा को तो खैर यहां से कभी ज्यादा उम्मीद थी भी नहीं।
भाजपा को तटीय कर्नाटक में अपेक्षा के अनुरूप संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बलिदानों का सुफल मिला और उसे अच्छी संख्या में वोट और सीटें दोनों मिले हैं। यहां भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से था, जेडीएस कहीं थी नहीं, हैदराबाद कर्नाटक में मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच था। यहां कहा जा रहा है कि बदनाम रेड्डी बंधुओं का दबदबा है, क्योकि बेल्लारी इसी में आता है। मोदी-अमित शाह के ठंडे रुख के बाद भी रेड्डी बंधुओं ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया जिससे भाजपा को अपेक्षित लाभ मिला।
मध्य कर्नाटक येदियुरप्पा का गढ़ कहा जाता है। उनकी जाति लिंगायतों ने उनका साथ दिया। वे अलग धर्म के सिद्धारमैया के दाव पर बंटे नहीं। यह बात साफ दिख रही है जिसका अपेक्षित फायदा वोट और सीटों दोनों में भाजपा को मिला है, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी येदियुरप्पा के प्रति गर्मजोशी नहीं बताई। अमित शाह ने भी उनके बेटे को टिकट नहीं देने दिया। लेकिन वे जीत जाएंगे और भाजपा की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री भी होंगे, यह तय है। पर हिमाचल दोहरा जाए और वे अपनी सीट ही हार जाएं तो कोई क्या कर सकता है। यहां भी जेडीएस गायब थी और कांग्रेस ने अच्छी टक्कर बीजेपी को दी।
ग्रेटर बेंगलुरू में मोदी का जादू चला। उनके मैदान में न आने तक तो सिद्धारमैया ही हावी थे। लेकिन मोदी ने बाजी पलट दी। संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं की टीम ने मुहिम को अंजाम तक पहुंचाकर भाजपा को बहुत अच्छा परिणाम दे दिया। मुंबई कर्नाटक का सीन भी बैंगलुरु कर्नाटक जैसा ही रहा। दोनों जगह के शहरी मतदाता ने समान रुझान बताया। पर दोनों जगहों पर कांग्रेस ने भी कम ताकत से टक्कर नहीं दी है। हां भाजपा-संघ के संगठन के आगे सिद्धारमैया की दाल ज्यादा गली नहीं और कांग्रेस काफी पिछड़ गई।
जेडीएस से कांग्रेस में आये समाजवादी रुझान वाले सिद्धारमैया की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने तीन साल भले ही रुपया का खेल खेला हो पर बाकी के एक डेढ़ साल में सीन बदल दिया और उनकी गरीब समर्थक योजनाओं और सफल कार्यान्वयन ने भाजपा की नींद उड़ा दी। राजनीतिक कुशलता और पैसे के दम पर उन्होंने कांग्रेस का संगठन खड़ा कर दिया। उसने संघ और भाजपा को हर मौके पर ऐसी टक्कर दी कि उन्हें नानी याद आ गई। जब तक लड़ाई सिद्धारमैया बनाम येदियुरप्पा रही, कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा। वो तो मोदी की एंट्री ने बाजी पलटी और भाजपा हावी हो गई।
हालांकि प्रधानमंत्री इसे मोदी बनाम राहुल गांधी बनाना चाहते थे लेकिन ज्यादा कामयाब नहीं हो पाए। यह ज्यादातर मोदी बनाम सिद्धारमैया ही बनी रही। कांग्रेस ने गुजरात में भाजपा को टक्कर दी थी, तो कर्नाटक में तो नाकों चने चबवा दिये। पर मोदी, अमित शाह, भाजपा और संघ ने मिलकर ऐसा कठोर परिश्रम किया कि बाजी भाजपा के हाथ लगेगी, इसका अहसास फिलहाल सभी को है। सिद्धारमैया का रुपया भ्रष्टाचार तो बोल गया लेकिन कांग्रेस रेड्डी बंधुओं और येदियुरप्पा के भ्रष्टाचार को बुलवाने में ज्यादा कामयाब नहीं हो पाई।
मोदी और अमित शाह तथा संघ इनके भ्रष्टाचार को न चाहकर भी अमृत समझ गटक गये। यह सिस्टम की पराजय है। कांग्रेस के साठ साल के भ्रष्टाचार से जो माहौल बना उसकी सफलता है। एक्जिट पोल बंटे हुए हैं तो उसका कारण कांग्रेस को लेकर दुविधा और भाजपा को लेकर दुराग्रह है। जहां जहां भाजपा का अच्छा प्रदर्शन लगता है वहां वहां वे उसे कमजोर बता रहे है और कांग्रेस को मजबूत।
दावा यही है कि तीन क्षेत्रों में भाजपा की क्लीन स्वीप है और दो में भाजपा और कांग्रेस की कड़ी टक्कर जिसमें कांग्रेस थोड़े अंतर से हावी है। एक में टक्कर जेडीएस और कांग्रेस में है। भाजपा कहीं नहीं है। इस क्लीन स्वीप की धारणा ने ही भाजपा को सरकार बनाने की ताकत दी है और क्लीन स्वीप नहीं है तो मौका कांग्रेस को मिल जाएगा ऐसा कहा जा सकता है। होगा क्या यह तो 15 मई को ही पता चलेगा और हो सकता है तब भी नहीं चले और परिदृश्य लंबे दावपेंचों के बाद ही साफ हो पाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, उनकी फेसबुक वॉल से साभार)