पहली कहानी
सेल्फी– एक
शाम को जब भी हनी के चाचा उसे लेने नही आ पाते,उसे घर पहुंचने वाली गली के मोड़ तक छोड़ कर आना ट्यूशन वाली दीदी की ज़िम्मेदारी थी।
बारिशों की एक ऐसी ही शाम जब दीदी, हनी को छोड़ने जा रही थी,गली में सूअर का बच्चा साइकिल के स्पोक्स में फंसा छटपटा रहा था। उसकी दारुण चीत्कार सुन न जाने कितने लोग इकठ्ठे थे।
ज़्यादातर उसका वीडियो बनाने में मशगूल थे, कुछ एक क़दम आगे उसके साथ सेल्फ़ी लेने की जद्दोजहद में लगे थे।
“ओहोहो, कितने निर्दयी लोग हैं, कितने इंसेंसिटिव। देखो वह कैसे तड़प रहा है। कोई उसकी मदद नहीं करता। कोई उसे बाहर नहीं निकाल रहा।”
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“तो आप ही उसे निकाल दो न दीदी।”
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दूसरी कहानी
सेल्फी- दो
वे बेहद ज़हीन हैं। ज्ञान, तर्क और व्यवाहारिकता का अपूर्व समन्वय। यौवन, ऊर्जा और मेधा से भरी-पूरी प्रखर वक्ता। इकहरी काया, चमकीली त्वचा, तेजस्वी ललाट और उस पर बड़ी लाल बिंदी। महिला अधिकारों की प्रबल समर्थक एवम् पैरोकार। देश के लगभग सभी मंचों पर उनकी उपस्थिति मात्र आयोजन की सफलता की गारंटी है। कार्यक्रम तब मेगा हिट हो जाता है, जब वे छोटे बड़े का भेद भूलकर, सबके साथ मुस्कराकर सेल्फ़ी खिंचवाती हैं। अक्सर वे कार्यक्रमों में अपनी छः वर्ष की गदबद बेटी के साथ होती हैं। बेटी की उपस्थिति में उनके ओजस्वी वक्तव्य के साथ वात्सल्य और ममत्व का झरना सा बह उठता है। उनका यह दुर्लभ संयोजन अनेक वक्ताओं की ईर्ष्या का कारण है।
आज वे थोड़ी उद्विग्न हैं। डॉ. साहिबा ने उन्हें तुरंत क्लीनिक पर बुलाया है। पहुंचकर रिपोर्ट देखते ही उनका रक्ताभ गौरवर्ण चेहरा मलिन हो गया। उँगलियाँ मोबाइल पर थिरकीं और उन्होंने तुरंत अपने पति को फ़ोन लगाया-
‘हेलो’! वे किंचित चिंतित स्वर में बोलीं।
‘हाँ। बोलो।’उधर से आवाज़ आई।
“आई हैव टू टर्मिनेट दिस प्रेग्नेंसी।”
“क्यों?”
“इट्स अ फीमेल।” वे लगभग फुसफुसाते हुए बोलीं।
“ओके। अगले हफ्ते मेरी भी छुट्टी है तब…।”
“नहीं आज और अभी।” पति की बात को काटकर वे सख़्त और निर्णायक स्वर में बोलीं।
“अरे! इतनी जल्दी क्या है।”
“बात समझो। आई हैव टू बी फिट नेक्स्ट वीक। अगले हफ्ते मुझे डेल्ही जाना है। फीमेल फिटिसाइड के नेशनल प्रोग्राम में लेक्चर है, एंड इट्स अ लाइफ टाइम ऑपरचुनिटी यू नो…..।”
पर उपदेश कुशल बहुतेरे। दोनों ही लघु कथाओं में वर्तमान संवेदनहीन समाज और व्यक्तित्व को दर्शाया गया है।
पहली तथा के लिये यह भी कह सकते हैं कि भले ही कोई निरीह प्राणी चाहे वो मानव हो या जानवर कितनी भी व्यथा और मुश्किल हालातों में हो हम उन परिस्थितों में भी आनन्द का भाव ढूढ़ लेते हैं।
दूसरी कथा आधुनिक समाज की तथाकथित प्रगतिशील विचारों की द्योतक है जो अपने उद्देश्य और झूठे सम्मान के लिये कुछ भी करने में गुरेज नहीं करता।